अच्छे की करें उम्मीद, अत्यंत ‘बुरे’ के लिए रहें तैयार

punjabkesari.in Sunday, Jan 26, 2020 - 12:37 AM (IST)

एक और वर्ष शुरू हो चुका है। एक और बजट दस्तक देने वाला है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक और निर्णायक वर्ष का उदय होने वाला है। 2016-17 से लेकर प्रत्येक वर्ष कुछ आश्चर्यजनक घटता है और आंसू टपकते हैं। 2016-17 का वर्ष विपत्तिपूर्ण नोटबंदी का था। 2017-18 का वर्ष त्रुटिपूर्ण जी.एस.टी. का रहा और इसे जल्दबाजी में लागू किया गया। 2018-19 का वर्ष अर्थव्यवस्था को ढलान पर ले गया और विकास दर प्रत्येक तिमाही में (8.0, 7.0, 6.6 तथा 5.8 प्रतिशत) गिरती रही। कुल मिलाकर 2019-20 का वर्ष फालतू साबित हुआ, जब सरकार ने चुनौतियों की अनसुनी कर दी तथा विकास दर को 5 प्रतिशत से भी नीचे गिरने की अनुमति दे दी। 

हिम्मत हारने की कोई सीमा नहीं रही
यह स्पष्ट है कि 

  • 2019-20 में जब अंतिम संशोधन बनाए जाएंगे तब विकास दर 5 प्रतिशत से भी कम रिकार्ड की जाएगी। 
  • सरकार का राजस्व तेजी से गिरेगा (कुल कर राजस्व तथा विनिवेश)।
  • वित्तीय घाटा बी.ई. के 3.3 प्रतिशत के लक्ष्य को भेदेगा तथा यह 3.8 से 4.0 पर बंद होगा। 
  • व्यापार के आयात तथा निर्यात में पिछले वर्ष की तुलना में नकारात्मक विकास दर रिकार्ड की गई। 
  • वर्तमान कीमतों में प्राइवेट सैक्टर इंवैस्टमैंट जो ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फार्मेंशन (जी.एफ.सी.एफ.) द्वारा मापी गई, 57,42,431 करोड़ रुपए होगी (सकल घरेलू उत्पाद का 28.1 प्रतिशत)। यह निवेशक के जोखिम/विरोध तथा शिथिलता को दर्शाता है। 
  • प्राइवेट उपभोग पूरे वर्ष तक सुस्त रहा। 
  • कृषि क्षेत्र दबाव में रहा तथा इसकी विकास दर की वापसी 2 प्रतिशत के करीब होगी। 
  • नौकरियां पैदा करने वाले सैक्टर जैसे विनिर्माण, खनन तथा निर्माण ने 2019-20 में लोगों को नौकरी से निकाला जिससे कुल रोजगार में 
  • कमी देखी गई। 
  • पूरी तरह से उद्योग में उधार वृद्धि तथा एस.एम.ई. सैक्टर में विशेष तौर पर पिछले वर्ष की तुलना में नकारात्मक रहने की आशा है। 
  • सी.पी.आई. आधारित मंदी 7 प्रतिशत रहेगी (खाद्य मंदी 10 प्रतिशत से ऊपर)। जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी तथा मजदूरी तथा आय ठहरी हुई दिखाई देगी। 

पूर्व प्रमुख आर्थिक सलाहकार डा. अरविंद सुब्रह्मण्यण के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था आई.सी.यू. में है। नोबेल पुरस्कार विजेता डा. अभिजीत बनर्जी का कहना है कि अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई। आलोचकों के आकलन ने सरकार को जरा भी चिंतित नहीं किया जिन्होंने यह कहा था कि अगली तिमाही में चढ़ाव देखा जाएगा। सरकार के शुतरमुर्ग जैसे व्यवहार के कारण इसने सभी सुधारों के उपायों को सिरे से नकार दिया है और इसके स्थान पर इसने गलत तरीके अपनाए हैं।

मिसाल के तौर पर यदि करों में कटौती की गई तो सरकार को अप्रत्यक्ष कर में भी कटौती करनी चाहिए। इसके विपरीत इसने कार्पोरेट सैक्टर को 1,45,000 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि दे दी, जिसके बदले इसको कुछ नहीं मिला। सरकार को चाहिए कि वह गरीबों के हाथों में और पैसा रखकर मांग को बढ़ाए। इसके उलट सरकार ने मगनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन, सफेद क्रांति तथा प्रधानमंत्री आवास योजना के व्यय में कटौती कर दी तथा इस पर कम ही खर्च किया। 

प्रधानमंत्री का बजट : वह क्या करेंगे?
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 12 उच्च कोटि के व्यवसायियों (निर्मला सीतारमण या उनके सहायकों के बिना) से मुलाकात की तब उनमें भरोसे की कमी के साथ-साथ घबराहट भी देखने को मिली। मीडिया में ऐसी खबरें भी आईं कि बजट एक फरवरी 2020 को पेश किया जाएगा। 
1. प्रति वर्ष 10 लाख की आय वाले व्यक्ति के लिए आयकर दर में कटौती। 
2. 2 वर्षों तक सिक्योरिटी को होल्ड करने के बाद लम्बी अवधि वाले पूंजी फायदों पर कर में कमी या फिर इसका उन्मूलन।
3. लाभांश वितरण कर की दर में कमी। 
4. प्रत्यक्ष कर कोड को पेश करने का वायदा। 
5. निर्माण जैसे कुछ सैक्टरों के लिए जी.एस.टी. की चुङ्क्षनदा अल्पवधि कमी। 
6. वर्तमान 6000 रुपए प्रति वर्ष के स्तर से पी.एम. किसान राशि में बढ़ौतरी या फिर लाभार्थियों के और वर्गों तक स्कीम का विस्तार। 
7. रक्षा, मगनरेगा, एस.सी./एस.टी., ओ.बी.सी. तथा अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप तथा आयुष्मान भारत (स्वास्थ्य बीमा) हेतु व्यय में बड़ी बढ़ौतरी।  
8. दो विकास वित्तीय संस्थानों (डी.एफ.आई.) की स्थापना ताकि उद्योग को लम्बी अवधि की वित्तीय सहायता उपलब्ध हो सके।  विशेष तौर पर जनरल तथा एस.एम.ईज में। 
9.  स्रोतों को बढ़ाने के तंग उद्देश्यों के साथ एक विशाल विनिवेश कार्यक्रम या फिर सम्पत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम। 

अर्थव्यवस्था को खींचना
उक्त सभी बातों का सारांश सरकार की एक लाइन की सोच में है कि यह कोष के लिए कार्पोरेट सैक्टर पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है, वहीं वोट के लिए मध्यम वर्ग पर तथा भारत की रक्षा के लिए व्याकुलता पर निर्भर करती है। ढांचीय सुधारों पर इसकी सोचने की क्षमता सीमित है। सरकार को यह भरोसा नहीं कि बैंकिंग सिस्टम उधार उपलब्ध करवाएगा। इसको संरक्षणवादी लॉबी का धन्यवाद करना होगा जिसने विदेशी व्यापार के इंजन को गति दी। यह स्टॉक माॢकट की अधिकता को कम करने की तमन्ना नहीं रखती, न ही यह आर.बी.आई. के साथ अपने संबंधों का व्याख्यान करती है। न ही यह निर्धारित कर पाती है कि दोनों ही वित्तीय स्थिरता को कायम रख सकते हैं तथा वृद्धि को प्रोत्साहित तथा मंदी पर अंकुश लगा सकते हैं। 

भाजपा सरकार अर्थव्यवस्था के प्रति गम्भीर नहीं। वह तो हिंदुत्व एजैंडे पर बल देती है या फिर यूं कहिए कि लोग नौकरियां, बेहतर उत्पादकता कीमतें, मजदूरी, आय, कीमत स्थिरता, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं तथा मूलभूत ढांचों को सही करने के प्रति गम्भीर हैं। यह अफसोसजनक बात है कि देश के लोगों के पास ऐसी सरकार है जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की ढलान वाली अर्थव्यवस्था बना दिया है। यही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का घातक निर्णय है।-पी. चिदम्बरम


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