भारतीय ‘युवा शक्ति’ का हो विस्तार

punjabkesari.in Saturday, Jul 04, 2020 - 04:54 AM (IST)

यह जानकर चैन की सांस ली जा सकती है कि भारत की आधी से भी अधिक आबादी 25 वर्ष की आयु से ऊपर की है और कुछ ही राज्यों जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा थोड़ा कम है। कुछ राज्यों में तो 25 से कम उम्र की जनसंख्या उनकी चौथाई आबादी से भी नीचे है। हालांकि इस बारे में बहस हो सकती है कि यह आधी युवा आबादी शिक्षा, ज्ञान और वैज्ञानिक सोच रखने के मामले में किस स्तर की है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यदि सम्पूर्ण आबादी की शक्ति को आंका जाए तो देश की विशालकाय छवि उभरती है, मतलब यह कि अगर सरकार चाहे तो अपनी नीतियों से इन्हें मजबूत बना सकती है और न चाहे तो हर बात में अड़ंगा डालते रहने की आदत से उसे बेडिय़ों में जकड़ भी सकती है। 

कोरोना के कारण लॉकडाऊन होने से और वह भी महीनों के लिए घर में ही रहने का एक सुखद परिणाम यह निकला है कि इस दौरान युवा पीढ़ी जो हमेशा वक्त की कमी का रोना रोती रहती थी, उसे अब घर के बुजुर्गों के साथ रहने के कारण आपस में जो संवाद न होने से कम्युनिकेशन गैप आ गया था, उसकी भरपूर भरपाई हो गई है। 

जहां युवावर्ग ने अधेड़ और वृद्ध पीढ़ी की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक जरूरतों को समझा है वहां अब युवा अपने मन की बात भी बुजुर्गों के साथ बांटने में हिचकिचा नहीं रहे। कुछ एेसा माहौल बन गया था कि पहले ये दोनों वर्ग कभी पास आते ही नहीं थे और कभी सामना हो गया तो एक-दूसरे के साथ अजनबियों जैसा व्यवहार करते थे। इन दिनों उम्रदराज पीढ़ी को लगता है कि वे दिन लौट आए हैं जब भरा पूरा परिवार एक साथ बैठा करता था, सब एक दूसरे की सुनते थे, शिकायत भी करते थे और मिलकर समस्याओं का समाधान भी निकालते थे। कदाचित यही कारण है कि चाहे कोरोना हो या चीन दोनों का मुकाबला करने की एकजुट शक्ति का संकल्प साकार हो रहा है। 

चीन की चाल क्या है?
चीन की विस्तारवादी और दूसरों को अशक्त बनाने की नीति को समझने के लिए हमें अपनी गुलामी के दौर की घटनाआें को सामने रखकर सोचना होगा। ब्रिटिश हुकूमत ने देशवासियों के मनोबल को तोडऩे और अंग्रेज के आगे आत्मसमर्पण करने के लिए भारत से कच्चा माल लगभग मुफ्त ब्रिटेन ले जाकर वहां उससे विभिन्न उत्पाद बनाकर भारत में महंगे दाम पर बेचने का रास्ता अपनाया। हमारी खेतीबाड़ी पर कब्जा करने के लिए एेसे नियम बनाए कि किसान भरपूर फसल होने के बावजूद भूखा रहे, उद्योग-धंधों के कारीगरों को बेकार बनाकर अपने दफ्तरों में चपरासी बना दिया और अंग्रेजों के भारी वेतन से लेकर उनकी अय्याशी तथा ब्रिटेन लौटने पर उनकी पैंशन तक को भारत के संसाधनों और जनता से वसूला जाने लगा।

भारत में अंग्रेजों ने जो भी विकास कार्य किए या कानून लागू किए वे उन्होंने अपनी सहूलियत, विलासिता और भारतीयों को अछूत मानते हुए ही किए थे। हमारी दासता का यही सबसे बड़ा कारण था, परिणामस्वरूप हम असहाय, कमजोर और आश्रित होते गए और अंग्रेजी हुकूमत काबिज होती गई। अब चीन ने भी यही नीति बनाई। उसने भारत से ज्यादातर वह सामान खरीदा जो विभिन्न वस्तुआें के बनाने में कच्चे माल की तरह इस्तेमाल होता है और जो सस्ता भी मिल जाता है। चीन ने इससे अपने यहां सस्ते और घटिया क्वालिटी के अधिकतर वह सामान भारत को बेचने शुरू कर दिए ताकि हमारे घरेलू उद्योग धंधे ठप्प पड़ जाएं। चीन ने हमारी रसोई, ड्राइंग रूम, बैडरूम से लेकर रोजाना काम आने वाली चीजों को इतने सस्ते दाम पर हमें सुलभ करा दिया कि हम स्वदेशी उत्पाद बनाने से लेकर उनका उपभोग करना तक भूलने लगे। 

चीन ने इलैक्ट्रिक, इलैक्ट्रॉनिक, मोबाइल और कंस्ट्रक्शन तथा सभी तरह की सवारियों के आधे से भी अधिक बाजार पर कब्जा कर लिया। इंफॉर्मेशन टैक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस में भी उसने हमें बहुत पीछे छोड़ दिया। चीन ने बहुत सोच-समझ कर ही आक्रमण करने की कोशिश के लिए लद्दाख को चुना। वह अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में बहुत पहले से सैन्य अभ्यास और युद्ध सामग्री को जुटाने में लगा हुआ था। हमारी सीमा के भीतर पिछले कुछ वर्षों में की गई तैयारी को छोड़कर कभी वहां का विकास करने और सामान्य जीवन जीने की सुविधाआें को जुटाने का गंभीर प्रयास नहीं किया गया। 

इतिहास से सीखना होगा
अगर विश्व इतिहास पर नजर डालें तो अमेरिका चार जुलाई 1776 को आजाद हुआ था और चीन 1 अक्तूबर 1949 को तथा भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था। अमरीका अनेक शताब्दियों के बाद विश्व शक्ति बन पाया जबकि चीन सत्तर वर्षों में ही उससे टक्कर लेने लगा। भारत भी इसमें पीछे नहीं रहा और हम भी अब विश्व शक्ति हैं, इसका प्रमाण यह कि अब कोई भी देश हमें हल्के में लेने की गलती नहीं कर सकता और चीन तो बिल्कुल नहीं क्योंकि उसके आॢथक, औद्योगिक और व्यापारिक तंत्र को ध्वस्त करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।-पूरन चंद सरीन


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