‘ऊर्जा संरक्षण की चुनौती’

punjabkesari.in Monday, Dec 14, 2020 - 02:07 AM (IST)

14 दिसंबर को ऊर्जा संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है जो 1991 के बाद से दुनिया भर में हर साल मनाया जाता है। भारत में ऊर्जा दक्षता और संरक्षण के महत्व के बारे में व्यापक जागरूकता फैलाने के लिए राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है।

कोरोना महामारी के मद्देनजर ऊर्जा संरक्षण के महत्व को नजरअंदाज करना आसान है लेकिन ऐसा संभव नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजैंसी (आई.ई.ए) ने पहले ही चेताया है कि कोरोना वायरस के प्रकोप से होने वाली आॢथक उथल-पुथल के कारण कंपनियों को हरित ऊर्जा में निवेश के लिए रोक या देरी कर सकती है। यदि इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो कोरोना का यह प्रकोप संभावित रूप से दुनिया के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में मंदी का कारण बन सकता है, लेकिन यह हरित वसूली के लिए संभावनाएं भी प्रदान करता है। 

अगर कोई एक शब्द है जो औद्योगिक क्रांति की शुरूआत के बाद दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को परिभाषित कर सकता है, तो वह है ‘अधिक’। दुनिया पिछले लगभग 250 वर्षों से प्रतिदिन अधिक ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग कर रही है। आज हमने सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को देखना शुरू कर दिया है, क्योंकि हम हरित ऊर्जा का उपयोग करना चाहते हैं या हम ऊर्जा का संरक्षण करना चाहते हैं, लेकिन क्योंकि पारंपरिक और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत सीमित हैं और ये समाप्त हो रहे हैं। यह अनुमान है कि वर्तमान में उत्पादन स्तर और अनुमानित भंडार के आधार पर तेल के लगभग 45 वर्ष, गैस लगभग 65 वर्ष, कोयला के लगभग 200 वर्ष तक रहने की संभावना है। यही नहीं, दुनिया की ऊर्जा की मांग बढ़ रही है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2040 तक, दुनिया की ऊर्जा खपत लगभग 50 प्रतिशत बढ़ जाएगी। 

संपूर्ण विश्व शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और अधिक डिजिटलीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिसका अर्थ न केवल अधिक ऊर्जा, बल्कि अधिक किफायती ऊर्जा भी है। एक अन्य महत्वपूर्ण कारक यह है कि हर दूसरे संसाधन की तरह, ऊर्जा सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी के पास आधुनिक ऊर्जा सेवाओं की पहुंच नहीं है, और दुनिया भर के अनुमानित 3 बिलियन लोग अपना खाना पकाते हैं और अपने घरों में साधारण चूल्हे या खुली आग का उपयोग करते हैं जो लकड़ी, जानवरों के गोबर या कोयले को जलाते हैं। इनमें से अधिक लोग एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के गरीब देशों में रहते हैं। 

मानव विकास के लिए ऊर्जा
ऊर्जा को किसी भी देश के नागरिकों के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए एक प्रमुख इनपुट के रूप में स्वीकार किया जाता है, जैसा कि प्रति व्यक्ति बिजली (सभी ऊर्जा रूपों के लिए एक जैसी) खपत और मानव विकास सूचकांक (एच.डी.आई.) के बीच संबंध से स्पष्ट है। इसके अनुसार, भारत की ऊर्जा नीतियों का प्रति वर्ष प्रत्यक्ष रूप से प्रति व्यक्ति ऊर्जा (और बिजली) खपत बढ़ाने का लक्ष्य है, जबकि देश के विकास के एजैंडे का मुख्य लक्ष्य गरीबी उन्मूलन पर रहा है। 

भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की राह पर है, इसलिए, ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की मांग और तेजी से बढ़ रही है। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। वर्तमान ऊर्जा का उपयोग ज्यादातर घरेलू खाना पकाने और प्रकाश व्यवस्था, कृषि, परिवहन और औद्योगिक क्षेत्रों में होता है। भारत के लिए प्रमुख चुनौतियां ऊर्जा उपलब्धता की खाई है और विशेष रूप से कच्चे पैट्रोलियम के आयात पर निर्भरता। सरकार ने कई पहल की हैं जो लाखों भारतीयों के भाग्य को बदल रहा है। दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीएवाई) और सौभाग्य योजना ने ग्रामीण विद्युतीकरण में क्रांति ला दी है। अब 99.99 प्रतिशत घरों का विद्युतीकरण हो गया है। 

क्या कर सकता है एक व्यक्ति?
(1) दिन के उजाले का अधिकतम उपयोग करें, ताकि हम विद्युत प्रकाश पर निर्भरता कम कर सकें।
(2) लाइट, पंखे, हीटर और अन्य बिजली के उपकरणों को तब बंद करें जब उपयोग में न हों या जब हमें उनकी आवश्यकता न हो।
(3) ऊर्जा की बचत करने वाले उपकरण और फ्लोरोसैंट लाइट्स का उपयोग करें।
(4) ए.सी. का उपयोग कम करें और जहां ए.सी. का उपयोग किया जाता है, वहां  के दरवाजों और खिड़कियों को ठीक से बंद रखें।
(5) बिजली की खपत को कम करने के लिए बिजली के उपकरणों को साफ रखें और उनका अच्छी तरह रख-रखाव करें। उदाहरण के लिए नियमित रूप से ए.सी. के फिल्टर को साफ करें और रैफ्रिजरेटर की बर्फ को नियमित रूप से साफ करें।-बंडारू दत्तात्रेय (माननीय राज्यपाल हि.प्र.)


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