शाह फैसल के ‘हसीन सपनों’ का अंत

punjabkesari.in Wednesday, Aug 12, 2020 - 02:46 AM (IST)

हाल ही में पूर्व आई.ए.एस. अफसर, कश्मीर के शाह फैसल ने घोषणा की है कि अब वह राजनीति से संन्यास ले रहे हैं। एक अंग्रेजी समाचारपत्र को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि एक साल की नजरबंदी ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है। जिन लोगों के लिए आप सब कुछ छोड़ देते हैं, मुसीबत पडऩे पर वे आपके साथ नहीं आते। सिर्फ आपका परिवार ही आपके साथ होता है। आपके जल्दबाजी के निर्णयों का सारा खामियाजा परिवार को ही भुगतना पड़ता है। 

बताते चलें कि शाह फैसल पहले कश्मीरी थे, जिन्होंने 2009 में यू.पी.एस.सी. में टॉप किया था। उस समय उन्हें कश्मीर में बदलती फिजा का संकेत और कश्मीरी युवकों का रोल मॉडल बताया गया था। वह कश्मीर के बारे में बड़े अखबारों में लेख भी लिखते रहते थे। 

लेकिन अचानक उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जाग उठीं। उन्हें लगने लगा कि आई.ए.एस. बनकर वह समय बर्बाद कर रहे हैं। उन्हें कश्मीरियों की आशा, आकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए। इसके लिए उन्होंने 2019 के शुरूआत में ही इस्तीफा देने की घोषणा की और एक नया राजनीतिक दल बनाया। इसका नाम था-जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमैंट पार्टी। तब उन्होंने कहा था कि यदि कोई कश्मीरी युवक मरता है, तब उन्हें दुख होता है। उसी तरह सेना का कोई सिपाही मरता है, तब भी दुख होता है। शाह फैसल को यह भी महसूस होता था कि फारूक अब्दुल्ला की नैशनल कान्फ्रैंस या महबूबा की पी.डी.पी. लोगों की आवाज नहीं बन पा रही हैं। 

लेकिन उनका दुर्भाग्य कहिए कि पिछले एक साल में धारा-370 हटा दी गई। लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया। जिस धारा-370 के बारे में जम्मू-कश्मीर की पार्टियां धमकी देती रहती थीं कि अगर इसे हाथ भी लगाया गया तो कश्मीर में खून की नदियां बह जाएंगी, कश्मीर पाकिस्तान में चला जाएगा। वहां तिरंगे का वजूद खत्म हो जाएगा, वैसा कुछ भी देखने में नहीं आया। इसके अलावा वहां के नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। शाह फैसल भी उनमें से एक थे। ऐसे में शाह फैसल की राजनीति से संन्यास की घोषणा उस बदले वक्त को भी बता रही है, जो उनके साथ दूसरे लोग भी महसूस कर रहे होंगे। हालांकि उनकी पार्टी के लोगों ने शाह फैसल के ऐसे किसी भी फैसले से इन्कार किया है। 

वह आई.ए.एस. थे। हर साल लाखों बच्चे आई.ए.एस. का सपना देखते हुए यू.पी.एस.सी. के कड़े इम्तिहान को देते हैं। उनमें से मुट्ठी भर के ही सपने पूरे होते हैं। एक पूर्व आई.ए.एस. का कहना था कि हर आई.ए.एस. चाहता है कि वह जल्दी से जल्दी कलैक्टर या डी.एम. बन जाए क्योंकि डी.एम. को जिले का मालिक कहा जाता है। पूरे जिले की ताकत उसके हाथ में होती है। 

हो सकता है, नौकरी छोड़ने के बाद फैसल को यह एहसास हुआ हो कि यह उन्होंने क्या किया। राजनीति में सफलता तो दूसरों पर निर्भर करती है। वैसे भी उनके पास ऐसा कौन-सा नया विचार था कि लोग उनकी तरफ ङ्क्षखचे चले आते। उनकी पार्टी में जे.एन.यू. की फायर ब्रांड शहला रशीद भी गई थीं। जो यहां खुद को आजाद लड़की और पिंजरा तोड़ आंदोलन की समर्थक बताती थीं। वहां जाते ही उन्होंने सिर ढक लिया था। जब उनसे पूछा गया कि ऐसा क्यों किया, तो बोलीं कि औरतें घूंघट भी तो काढ़ती हैं। यानी कि प्रकारांतर से उन्होंने घूंघट को भी औरतों की अस्मिता से जोड़ दिया था। जबकि उत्तर भारत में मध्य वर्ग के परिवारों से घूंघट की विदाई बहुत पहले ही हो चुकी है। फैसल ने सोचा होगा कि शहला उनके बड़े काम की हैं, लेकिन ऐसा हो न सका। 

फिर जो लड़के किसी कारण से आई.ए.एस. जैसी नौकरी को छोड़ देते हैं, उनके परिवार वाले उनसे काफी नाराज होते हैं, क्योंकि अपना समाज शक्ति का पूजक समाज है। शक्ति जाते ही वे लोग भी साथ छोड़कर चले जाते हैं, जो कल तक आपके सामने विनम्रता की प्रतिमूर्ति बने हुए थे। आई.ए.एस., आई.एफ.एस., आई.पी.एस., सेना के बड़े अधिकारी रिटायर हो जाते हैं, तो वे अपने को बहुत शक्तिहीन महसूस करते हैं। इन दिनों वे किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़ जाते हैं। टी.वी. बहसों में उनके प्रवक्ता बन जाते हैं क्योंकि जिंदगी भर जिन्होंने तरह-तरह से ताकत को भोगा है, उससे मिलने वाले लाभों को देखा है, वे उसके बिना रहें भी तो कैसे। 

जब शाह फैसल ने आई.ए.एस. छोड़ा था, तो कहा भी था कि ऐसा करना आसान नहीं होता। घरवालों और पत्नी को समझाना पड़ता है। हो सकता है कि उन्होंने इन सब बातों को सोचा हो। महसूस किया हो कि राजनीति की काली कोठरी के लिए वह मिसफिट हैं। जो भी हो उनका राजनीतिक करियर बहुत छोटा रहा। हालांकि एक खबर यह भी आई कि वह वापस आई.ए.एस. का पद संभाल सकते हैं, क्योंकि उनका इस्तीफा सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया था। कानूनन ऐसा हो सकता है कि नहीं, कहा नहीं जा सकता क्योंकि किसी भी आई.ए.एस. को राजनीति में भाग लेने की इजाजत नहीं होती है।-क्षमा शर्मा
 


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