चुनावी जीत बुनियादी सुविधाओं पर आधारित नहीं होती

punjabkesari.in Saturday, May 08, 2021 - 03:51 AM (IST)

एक प्रमुख सबक जो हर भारतीय को ध्यान में रखना चाहिए, फिर चाहे उसका किसी भी राजनीतिक दल से संबंध हो, वह यह है कि ममता बनर्जी न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि अखिल भारतीय चुनावी मंच पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कद के बराबर उभर कर आई हैं। एक नेता के रूप में ममता एक विलक्षण नेता हैं। उनके मन में यह तथ्य था कि भाजपा नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से कम से कम 200 सीटें हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भाजपा के गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जोड़ी अति आत्मविश्वासी थी। 

वास्तव में सत्ता के नशे में चूर भाजपा नेतृत्व अहंकारी हो गया और उसने कभी भी जमीनी हकीकतों और विपक्षी पाॢटयों की ताकत को देखने की ङ्क्षचता ही नहीं की। बेशक अति आत्मविश्वासी होने में कोई बुराई नहीं लेकिन अपने आप में अंधे होते हुए अपनी ही छवि को बिगाड़ा गया है जो नेतृत्व का बुरा होना बताता है। चुनावी अभियान के दौरान शालीनता की मूल समझ को भी खो दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी छवि को उस समय प्रकट किया जब उन्होंने बंगाल की मु यमंत्री को सीधे तौर पर, ‘‘दीदी-ओ-दीदी’’ कह कर उन पर तंज कसा। 

इस प्रक्रिया में मोदी ने देश की संघीय भावना को एक झटका दिया। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनका दाहिना हाथ अमित शाह यह महसूस करेंगे कि चुनावी जीत बुनियादी सुविधाओं पर आधारित नहीं होती। यदि पार्टी की मूल संरचना लक्षित राज्य में अस्थिर है। इसके अलावा उग्र हिंदुत्व के बावजूद भाजपा स्तर को बनाए रखने में विफल रही। हिंदू समर्थन ने इसे 2019 में आगे बढ़ाया था।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि भाजपा ने राजनीति में बंगाली हिंदू मानसिकता को नहीं समझा। यहां पर एकआयामी धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए बहुत सीमित जगह है। इस तथ्य को भाजपा ने बेहद आसानी से लिया। एक बेहद छोटा आश्चर्य यह है कि 2021 का चुनावी नतीजा तृणमूल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी जीत लेकर आया है। पार्टी को 48 प्रतिशत मत हासिल हुए। 66 वर्षीय ममता बनर्जी को  भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति की लाइन में सबसे आगे खड़ा कर दिया है। 

हालांकि इस कार्य में वह कितनी दूर तक सफल होंगी यह कहना इस समय अभी मुश्किल दिखाई दे रहा है। अफसोस की बात है कि भाजपा के खिलाफ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की शानदार जीत को कोलकाता तथा अन्य क्षेत्रों में भाजपा समर्थकों के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं की हिंसा के चलते धब्बा लगा है। चुनावी नतीजों के बाद हिंसा की वारदातों ने 2 दिनों में 14 जिंदगियों को निगल लिया। यहां तक कि तृणमूल कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं के टार्गेट पर कांग्रेस तथा सी.पी.एम. समर्थक भी थे। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बात है। मुझे टी.एम.सी. से उ मीद है कि सभी स्तरों पर अपनी विजय के बाद उसे और भी अनुग्रह और भव्य होना चाहिए। मगर उन्होंने अपनी जि मेदारी और प्रतिष्ठा को खो दिया है। यह दुख की बात है। 

सिद्धांतों और विचारधारा ने एक बार फिर से भारतीय राजनीति को निर्देशित किया है। सिद्धांतों और विचारधारा के आधार पर पार्टी नेताओं के बीच मतभेद होना उचित हो सकता है। आज हम पांच अंधे व्यक्ति और एक हाथी जैसी बात का सामना कर रहे हैं। ज्यादातर नेता और उनकी पाॢटयां विचारधारा और सिद्धांतों पर शपथ ले सकती हैं। लेकिन उनके पास तत्काल रूप से दृष्टि से परे सोचने की क्षमता की कमी है। न

ए लोकाचार की एक विचलित करने वाली नई राजनीतिक शैली है जिसमें संयम और अनुशासन दोनों की कमी है। हालांकि तीसरी बार मुख्यमंत्री की शपथ ग्रहण करने के बाद ममता बनर्जी ने तेजी से काम किया। उन्होंने डी.जी.पी. निरंजन सहित 30 उच्चाधिकारियों का स्थानांतरण कर दिया। जो यह स्पष्ट चेतावनी है कि किसी भी तरह की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 

उन्होंने यह भी कहा कि हिंसा उन क्षेत्रों में हुई जहां पर भाजपा ने विधानसभा चुनावों में अपनी जीत हासिल की। उन्होंने घोषणा की कि ‘‘बंगाल अस्थिरता को बर्दाश्त नहीं करेगा और न ही मैं ऐसा करने दूंगी। आज से ही कानून-व्यवस्था के साथ मैं निपटूंगी।’’।

तमिलनाडु, केरल, पुड्डुचेरी और असम में काफी बड़े पैमाने पर चीजें व्यवस्थित थीं। तमिलनाडु में लोगों ने विकल्प चुना। द्रमुक गठबंधन को मत देकर सत्ता में लाया गया और अन्नाद्रमुक के 10 वर्षों के शासन को सत्ताहीन किया गया। द्रमुक की जीत में सरकार विरोधी लहर और एम. करूणानिधि के बेटे एम.के. स्टालिन के लिए एक कड़े समर्थन ने मदद की। अन्नाद्रमुक के सहयोगी दल भाजपा की तुलना में द्रमुक की सहयोगी पार्टी कांग्रेस की कारगुजारी तसल्लीब श रही। 

ऐसा कहा जाता है कि भाजपा के साथ गठबंधन बनाने में अन्नाद्रमुक का समीकरण बिगड़ गया। केरल विधानसभा में हम राज्य में उनकी आबादी के अनुपात में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई प्रतिनिधित्व पाते हैं। असम में भाजपा और उसके क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस की अगुवाई वाले 10 दलों के विशाल गठबंधन को चुनौती दी है। चुनावी सफलता के लिए जो चीज दाव पर लगी है वह कल के लिए एक दृष्टि है। उस दृष्टि को पूरा करने के लिए एक जन आधारित  कार्यक्रम की जरूरत है।-हरि जयसिंह
   


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