चुनावी बांड योजना में संशोधन किया जाना चाहिए

punjabkesari.in Thursday, Apr 14, 2022 - 03:33 AM (IST)

यह अच्छी खबर है कि भारत के सुप्रीमकोर्ट ने विवादास्पद चुनावी बांड्स के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने का निर्णय किया है। देश की सर्वोच्च अदालत गत 5 वर्षों से अधिक समय से, जब से वित्त कानून 2017 के माध्यम से चुनावी बांड योजना लागू की गई थी इस महत्वपूर्ण मुद्दे से अपने पांव खींच रही थी। 

आलोचक इस ओर इशारा करते रहे हैं कि कैसे यह योजना, जिसे राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग में पारदर्शिता लाने के इरादे से लागू किया गया था, ने वास्तव में इसे और अधिक अस्पष्ट बना दिया है। यह भी एक तथ्य है कि संशोधित कानून ने सत्ताधारी पार्टी का पक्ष लिया जो दान दाताओं की पहचान कर सकती थी, जबकि ऐसी सूचना अन्य राजनीतिक दलों तथा सामान्य जनता से छुपी रहती है। 

चुनाव आयोग के आंकड़े के अनुसार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में बेचे गए चुनावी बांड्स में से लगभग तीन चौथाई या 76 प्रतिशत प्राप्त किए। कांग्रेस को इसी समयकाल के दौरान बेचे गए कुल चुनावी बांड्स में से मात्र 9 प्रतिशत मिले। जहां 2019-20 में 3355 करोड़ रुपए मूल्य के चुनावी बांड बेचे गए, भाजपा एक बड़े अंतर के साथ सबसे बड़ी लाभार्थी बनी। 3355 करोड़ रुपए मूल्य के चुनावी बांड्स में से भाजपा को 2555 करोड़ रुपए मूल्य के बांड मिले जबकि इससे पूर्ववर्ती वर्ष में इसे 1450 करोड़ रुपए के बांड मिले थे। कांग्रेस को 2019-20 में 318 करोड़ रुपए के प्राप्त हुए जो वास्तव में पूर्ववर्ती वर्ष के मुकाबले 17 प्रतिशत की कमी है जब इसने चुनावी बांड्स के माध्यम से 383 करोड़ रुपए प्राप्त किए थे। 

तृणमूल कांग्रेस को 100.46 करोड़ रुपए प्राप्त हुए, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) को 29.25 करोड़ रुपए, शिवसेना को 41 करोड़ रुपए, द्रमुक को 45 करोड़, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को 2.5 करोड़ तथा आम आदमी पार्टी (आप) को 18 करोड़ रुपए प्राप्त हुए। यह योजना व्यक्तियों अथवा कार्पोरेट्स को चुनावी बांड खरीदने की इजाजत देती है जो फिर राजनीतिक दलों को उपलब्ध करवाए जाते हैं। बांड धारक साधन हैं, इसलिए राजनीतिक दलों को राशि प्राप्त करने के लिए महज इन्हें अपने खाते में जमा करवाने की जरूरत होती है, दानदाता अज्ञात रहता है। यद्यपि सत्ताधारी पार्टी यह जानने के लिए कि किसने कीमत चुकाई है गोपनीय जानकारी हासिल कर सकती है तथा अपनी कार्य योजना बनाने के लिए यह भी कि किसने कीमत नहीं चुकाई। 

यहां तक कि भारत का चुनाव आयोग भी इस योजना के खिलाफ अपनी भावनाएं प्रकट कर रहा है तथा उसने अदालत को बताया है कि इसका ‘राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है’। आयोग ने अदालत को यह भी जानकारी दी है कि इसने अपनी चिंताएं जताते हुए मई 2017 में वित्त कानून 2017 पारित होने के तुरन्त बाद कानून तथा न्याय मंत्रालय को एक पत्र लिखा है। मंत्रालय को अपने पत्र में आयोग ने कहा है कि ‘जहां तक दानों की पारदर्शिता का संबंध है यह एक प्रतिगामी कदम है’ तथा इसे वापस ले लिया जाना चाहिए। 

सुप्रीमकोर्ट ने अब एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफाम्र्स तथा कामन कॉज व सी.पी.एम. द्वारा दायर याचिकाओं का संज्ञान लिया है। एसोसिएशन ने योजना को ‘असंवैधानिक, गैर-कानूनी तथा व्यर्थ’ बताया है। सी.पी.एम. ने तर्क दिया है कि यह योजना ‘भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है तथा चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बचाव के उपायों को हटा देती है।’ इसने यह भी कहा कि कैसे कोलकाता स्थित एक कम्पनी, जो जांच के घेरे में है, ने राजनीतिक पार्टियों के पास 40 करोड़ रुपए जमा करवाए। 

स्वाभाविक है कि चुनावी बांड योजना बांड्स को अज्ञात बनाकर तथा कंपनियों के यह खुलासा करने कि वह किस पार्टी को दान दे रही हैं की जरूरत को हटा कर मतदाताओं को इस महत्वपूर्ण जानकारी से वंचित किया जाता है। यह बहुत हैरानी की बात है कि सुप्रीमकोर्ट ने पांच वर्षों से भी अधिक समय तक इस मामले को लटकाए रखा। जहां अच्छी बात है कि अब यह जागी है तथा भारत के प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने कहा है कि अदालत इस पर निर्णय लेगी लेकिन उन्होंने सुनवाई की तिथि निर्धारित नहीं की है  और न ही इस बारे कुछ कहा है कि कितनी जल्दी इस मामले में निर्णय लिया जाएगा। चुनावों की पवित्रता के लिए यह अत्यावश्यक है कि इस मुद्दे पर बिना किसी और देरी के निर्णय लिया जाए।-विपिन पब्बी 
 


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