भूख-प्यास से तड़पते बच्चों के परिवारों के लिए चुनाव परिणाम बेमानी

punjabkesari.in Monday, Mar 07, 2022 - 05:14 AM (IST)

भले ही विभिन्न राजनीतिक दलों के लाखों कार्यकत्र्ता और विधानसभा चुनाव में उतरे हजारों प्रत्याशी 10 मार्च को होने जा रही मतगणना का बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे और मतदाताओं की रहस्यमयी खामोशी के बावजूद उनमें से कइयों ने जीत का जश्न मनाने की तैयारी भी शुरू कर दी होगी, लेकिन रूसी आक्रमण के कारण जो भारतीय विद्यार्थी यूक्रेन में 11 दिनों से फंसे हुए हैं, उनके परिवारों के लिए चुनावी परिणाम और उस पर मनाया जाने वाला जश्न कोई मायने नहीं रखता। 

अबोहर की दीक्षा विज, अमृतसर की हरप्रीत कौर और सरगुनदीप कौर, चंडीगढ़ की शैल्विन कुटलेहरिया उन असंख्य विद्यार्थियों में शामिल हैं, जिन्हें 4-5 दिन से न तो खाना नसीब हुआ और न ही उनके पास पीने के लिए पानी है। भारतीय विदेश मंत्रालय व दूतावासों द्वारा बीते बुधवार शाम को 6 बजे तक खारकीव से निकल जाने के निर्देश मिलते ही वहां फंसे एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई करने वाले अनेक विद्यार्थी बमबारी के बावजूद 6 किलोमीटर पैदल चल कर रेलवे स्टेशन पहुंचे, लेकिन विशेष रेलगाडिय़ां चलाने के मिथ्या आश्वासन के बावजूद उन्हें रेलगाड़ी नहीं मिली। वहां से 8 किलोमीटर पैदल चल कर एक सुरक्षित क्षेत्र के बंकरों में आश्रय लेने वाले विद्यार्थियों को वहां से सुरक्षित निकालने के प्रबंध कर पाने में दूतावास व मंत्रालय की असमर्थता के संदेश शनिवार तक मिलते रहे। 

ऐसे अनेक विद्यार्थी हैं जो दोगुना टैक्सी भाड़ा देकर जैसे-तैसे मैट्रो स्टेशन तो पहुंच गए, लेकिन रेल डिब्बों में पहले से सीटों पर काबिज यूक्रेनी नागरिकों ने भारतीय विद्याॢथयों को भीतर नहीं आने दिया, हालांकि यह बार-बार ‘प्लीज-प्लीज’ की गुहार लगा रहे थे और यह भी कह रहे थे कि हमारी जिंदगी और मौत का सवाल है। सीट नहीं है तो हम खड़े होकर ही सफर कर लेंगे, लेकिन उनकी किसी ने एक नहीं सुनी। टी.वी. चैनलों पर ऐसे हृदयविदारक प्रकरण भी सामने आए कि भारतीय विद्यार्थी जिन आश्रय स्थलों में पहुंचे, वहां अब पीने के लिए तो क्या, हाथ धोने के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं है। कई विद्यार्थियों ने तो अपने वीडियो संदेश में यहां तक कह दिया कि जब तक आपकी सहायता पहुंचेगी तब तक शायद बंकरों में शव ही दिखाई देंगे। 

सोशल मीडिया के माध्यम से विद्याॢथयों के परिवार और उनके शुभचिंतक यह कहने पर मजबूर हो गए हैं कि नेताओं को 7 मार्च के अंतिम मतदान तक फुर्सत नहीं है। उनकी प्राथमिकता रोड-शो आयोजित करने पर केंद्रित रही। दुर्भाग्यवश राजनेताओं व वरिष्ठ अधिकारियों को इतना भी स्पष्ट नहीं कि कितने हजार भारतीय यूक्रेन में फंसे हुए हैं। हर रोज मीडिया ब्रीफिंग में यूक्रेन में फंसे भारतीयों और राहत से प्रभावित लोगों की संख्या बदली जा रही है। 

त्रासदी यह भी है कि एक बड़े राजनेता ने सहायता पर ध्यान देने की बजाय यह सवाल उठाया कि बच्चों को पढऩे के लिए ऐसे छोटे देशों में जाना ही नहीं चाहिए। इन्हीं की पार्टी के एक और नेता ने कर्नाटक निवासी एक विद्यार्थी की यूक्रेन में मृत्यु के बाद शव लाए जाने की तैयारी पर सवाल उठाते हुए यह फरमाया कि हवाई जहाज में जितना स्थान शव घेरेगा उसकी बजाय तो 8 अन्य जीवित विद्यार्थी वापस लाए जा सकते हैं।

नेतागण यह सवाल भी कर रहे हैं कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में भारतीय विद्यार्थी यूक्रेन में एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई के लिए क्यों गए। जब उनके सामने यह तथ्य लाया जाता है कि भारत में एम.बी.बी.एस. की डिग्री हासिल करने का खर्च 1 करोड़ रुपए से कम नहीं बैठता, जबकि यूक्रेन में 20 लाख रुपए में वही डिग्री मिल जाती है और उसकी मान्यता पूरे विश्व में है, तो इन राजनेताओं के पास कोई सटीक जवाब नहीं। 

भारतीय दूतावासों ने भले ही यूक्रेन में फंसे विद्यार्थियों की सहायता के लिए अपेक्षित प्रबंध नहीं किए होंगे लेकिन वहां से लौटे विद्यार्थी रोमानिया के मेयर की तारीफ किए बिना नहीं रहते, जिसने उनके लिए सीमा से लेकर आश्रय स्थल तक समुचित प्रबंध किए। इसी तरह पोलैंड में बी.ए.पी.एस. संस्था ने एक होटल में यूक्रेन से आए भारतीय विद्यार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य देशों के नागरिकों के लिए भी व्यापक व्यवस्था की है, जिसमें 1,000 लोगों के लिए ताजा शाकाहारी भोजन परोसना और उन्हें हवाई अड्डे तक पहुंचाने की सेवा शामिल है। 

यदि पंजाब की बात करें तो यूक्रेन से लौटे एक विद्यार्थी हरजिंद्र सिंह को दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद यह देख कर निराशा हुई कि अन्य राज्यों के प्रतिनिधि तो भारत लौटे विद्यार्थियों के नाम पुकार कर उनका स्वागत और बसों द्वारा घर तक पहुंचाने की व्यवस्था कर रहे थे, लेकिन पंजाब का कोई अधिकारी वहां दिखाई नहीं दिया। 

विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से पूर्व तक हर रोज अपनी ही राजनीतिक पार्टी के विरुद्ध ट्वीट जारी करने वाले नेता की भी कोई भूमिका यूक्रेन में फंसे विद्यार्थियों की सकुशल वापसी में नजर नहीं आई। जो राजनेता मतदान से 2 दिन पूर्व तक सब कुछ मुफ्त बांटने की होड़ में लगे हुए थे, वे अब नदारद हैं।

दूसरी ओर यूक्रेन से बमबारी के साए में स्लोवाकिया पहुंचे विद्यार्थी बताते हैं कि वहां सीमा पर स्वयंसेवी संस्थाओं ने खाने-पीने के सामान के स्टाल लगा रखे थे और उन्हें निर्धारित स्थान पर पहुंचाने के अलावा 20 दिन का वीजा भी दिया गया, ताकि उन्हें भारत वापस लौटने में कोई कठिनाई न हो। अब भला ऐसी विकट परिस्थितियों में चुनाव परिणाम घोषित होने पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मनाए जाने वाले जश्न में पीड़ित विद्यार्थियों के परिवारों के शामिल होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।-राज सदोष


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