अर्थव्यवस्था अभी भी चिंताजनक अवस्था में

punjabkesari.in Sunday, Jun 05, 2022 - 05:34 AM (IST)

31 मई 2022 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के तिमाही अनुमान तथा राष्ट्रीय आय के अस्थायी अनुमानों को जारी किया। मीडिया को संबोधित करते हुए प्रमुख आर्थिक सलाहकार वशीभूत और आशावादी नजर आए। ज्यादातर अर्थशास्त्रियों की तरह वह भी जानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी अस्त-व्यस्त होने से बाहर नहीं हो पाई। 

बुरा और बदत्तर : सबसे बुरा समाचार यह है कि 31 मार्च 2022 को स्थिर कीमतों पर अर्थव्यवस्था का आकार (147.36 लाख करोड़) 31 मार्च 2000 (145.16 लाख करोड़) की तरह ही दिखाई दिया। इसका अभिप्राय: यह है कि हम अभी भी उसी स्थान पर दौड़ लगा रहे हैं। हालांकि व्यक्तिगत तौर पर देखें तो भारतीय नागरिक और ज्यादा गरीब हो चुका है क्योंकि पिछले 2 वर्षों से प्रति व्यक्ति आय 1,08,247 से 1,07,760 गिर कर रह गई। 

अगला बुरा समाचार यह है कि 2021-22 में  जी.डी.पी. की तिमाही  वृद्धि का ग्राफ एक ढलान वाला ग्राफ है। 4 तिमाहियों के लिए यह संख्या 20.1, 8.4, 5.4 तथा 4.1 प्रतिशत है। उत्पादन के मामले में भी (मूल्य संवर्धन) कोई तेजी वाला उछाल नजर नहीं आया। महामारी से पूर्व 2019-20 के दौरान चौथी तिमाही में जी.डी.पी. 38,21,081 करोड़ रही तथा हमने 2021-22 की चौथी तिमाही में इस संख्या में वृद्धि पाई जोकि 40,78,025 करोड़ रिकार्ड की गई। 

8.7 प्रतिशत की दर पर उछाल के लिए देश में कोई स्थान नहीं। भारत एक तेजी से बढऩे वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है। मंदी, बेरोजगारी, गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोगों की गिनती,  भुखमरी के प्रसार, स्वास्थ्य सूचकों में गिरावट तथा शिक्षा परिणामों में गिरावट  के लिए शेखी बघारने का कोई मतलब नहीं। देखने में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर आकर्षक प्रतीत होती है। मगर इसे संभावनाओं में देखा जाना चाहिए। पहली बात तो यह है कि यह पिछले वर्ष में (-) 6.6 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि पर फिर से वापस आई है। दूसरा यह, जब 2021 में चीन 8.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि पा रहा था तब इसने 12 महीनों (वर्तमान कीमतों पर)में अपनी जी.डी.पी. के लिए 2600 बिलियन अमरीकी डालर सम्मिलित किए। इसके विपरीत भारत 2021-22 में 8.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि पा रहा है और इसने अपनी जी.डी.पी. में पिछले 12 महीनों के दौरान (वर्तमान कीमतों पर) 500 मिलियन अमरीकी डालर जोड़े। 

बाहर की दुनिया : एक बार जब हम गंभीर दिखे तो हमने 2022-23 तथा उसके आगे के लिए संभावनाओं को देखा। अपने आप से उबरने के बाद हम यह भूल गए कि इससे परे बाहर की दुनिया भी है। हमें विश्व का बाजार, उत्पाद, पूंजी, तकनीक तथा नयापन लाने की भी जरूरत है। विश्व की अर्थव्यवस्थाएं दबाव में हैं। अमरीका में ब्याज दरें तथा मुद्रास्फीति  बढ़ रही है तथा मांग में कमी दिखाई दे रही है। चीन की जी.डी.पी. वृद्धि सिकुड़ कर रह जाएगी क्योंकि वहां पर निरंतर ही लॉकडाऊन लगाए जा रहे हैं। यूरोपियन लोगों की खरीद शक्ति गैस कीमतों के बढऩे से कम हो चुकी है। 

आर.बी.आई. की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी ने यह 4 मई 2022 को पाया कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई.एम.एफ.) ने 2022 में 4.4 प्रतिशत से लेकर 3.6 प्रतिशत तक वैश्विक वृद्धि दर को संशोधित किया तथा डब्ल्यू.टी.ओ. ने 4.7 प्रतिशत से 3.0 प्रतिशत तक विश्व व्यापार वृद्धि को संशोधित किया। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आई.एम.एफ. ने 5.7 प्रतिशत तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 8.7 प्रतिशत की मुद्रास्फीति को दर्शाया। एम.पी.सी.ने बदत्तर बाहरी वातावरण, उछाल भरी वस्तुओं की कीमतों, लगातार आपूर्ति की अड़चनों की पहचान की। मुझे आशंका है कि सरकार में कोई एक मेरी बात को सुन रहा होगा। 

निदान अच्छा, उपचार अनुपस्थित : आर.बी.आई. की मासिक रिपोर्ट (मई, 2022) में विकास को बढ़ावा देने के महत्वपूर्ण तत्वों को पहचाना-निजी निवेश, ऊंचा सरकारी पूंजी खर्च, बेहतर बुनियादी ढांचा, निम्र तथा स्थिर मुद्रास्फीति और मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता। इन पांच तत्वों में से सरकार ने केवल ‘सरकारी पूंजी खर्च’ को ही नियंत्रित किया है मगर इस वर्ष पूंजी कार्यों में इसकी बड़ी राशियों में निवेश की क्षमता ईंधन करों में कटौती, सबसिडियों में वृद्धि तथा लोककल्याण खर्चों में वृद्धि जैसे बजट के बाद के कार्य बुरी तरह से संकुचित हुए हैं। बाकी में से निजी निवेश गति नहीं पकड़ेगा जब तक कि आपूर्ति की बाधाएं तथा अनुपयोगी क्षमताएं रहेंगी। 

जहां तक विदेशी निवेशकों जैसे केयर्न, हच्चीसन, हार्ले डेविडसन, जनरल मोटर्स, फोर्ड, होलसिम, सिटी बैंक, बार्कलेज, आर.बी.एस. तथा मैट्रो कैश एंड कैरी का सवाल है, भारत को छोड़ चुके हैं या फिर छोड़ कर जा रहे हैं। मूलभूत ढांचे में किसी प्रकार की बेहतरी के लिए निविदा, कीमतों, निष्पादन तथा जवाबदेही की प्रक्रिया में निरंतर बदलाव अपेक्षित है। ऐसी सब चीजें आजकल लापता हैं। हम मूलभूत ढांचे में ‘गुणवत्ता’ को नहीं ‘अधिकता’ को जोड़ रहे हैं तथा मोदी सरकार का पिछला रिकार्ड दर्शाता है कि इसे मुद्रास्फीति तथा मैक्रो इकोनॉमिक स्थिरता की कोई खबर नहीं है। 

इन बातों पर ध्यान दिया जाए तो हम डूबते हुए जहाज में तभी बच सकते हैं यदि कैप्टन और उसके सहयोगी एक टीम भावना का हिस्सा बनें तथा इन सबका एक सांझा लक्ष्य हो। महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच आज कोई भी सहमति दिखाई नहीं पड़ती। केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच जी.एस.टी. ने विश्वास के धागे को तोड़ दिया है। प्रत्येक विपक्षी पार्टी के खिलाफ केंद्रीय जांच एजैंसियों तथा राज्यपालों द्वारा मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है (केंद्रीय जांच एजैंसियों द्वारा राज्य सरकारों के मंत्रियों की गिरफ्तारियों को देखा जाना)। 

यहां पर देश में एक और बड़ी समस्या है। कोई भी देश आर्थिक तौर पर एक पावर हाऊस नहीं बन सकता जब तक कि श्रमबल भागीदारी दर 40 प्रतिशत न हो जाए। भारत की कार्य करने वाली जनसंख्या का भार या तो कार्य ही नहीं कर रहा या फिर कार्य को ढूंढ ही नहीं रहा। लड़कियों को ज्यादा शिक्षित करने के बावजूद महिलाओं का एल.एफ.पी.आर. मात्र 9.4 प्रतिशत है। इसके अलावा वर्तमान बेरोजगारी 7.1 प्रतिशत की है। हमारे पास एक बीमार अर्थव्यवस्था है। हमारे पास जांचने की शानदार प्रक्रिया है। फार्मेसी में हमारे पास दवाइयां हैं मगर काम पर लगे डाक्टर ध्यान ही नहीं देते यदि मरीज धीरे-धीरे या फिर एक दर्दनाक मौत मर रहा हो।-पी. चिदम्बरम


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