दक्षिण चीन सागर में परमाणु भंडार बना रहा ड्रैगन

punjabkesari.in Tuesday, Nov 29, 2022 - 07:03 AM (IST)

अमरीका पर जवाबी हमला करने के लिए चीन दक्षिण चीन सागर में अमरीकी ठिकानों के नजदीक परमाणु हथियारों से लैस अपनी पनडुब्बियों का केंद्र बनाता जा रहा है। चीन (ड्रैगन)अमरीका से दबने की जगह उस पर अपनी पनडुब्बियों में परमाणु मिसाइलें लिए उस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। 

चीन की इस हरकत से दुनिया हैरान है क्योंकि चीन पूरे दक्षिण चीन सागर में परमाणु मिसाइलों का जखीरा जमा कर रहा है। अमरीकी एडमिरल सैमुएन पापारो ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि चीन इस समय अपनी जे.एल.-3 सबमरीन लांच बैलिस्टिक मिसाइलों को अपनी पनडुब्बियों में लेकर अमरीकी  समुद्री तटों के नजदीक हमला करने की योजना पर काम कर रहा है। पापारो ने आगे बताया कि इसे लेकर अमरीका और दुनिया में तनाव है हालांकि अमरीका चीन की हरकतों पर नजर बनाए हुए है और चीन की हर चाल का जवाब देने के लिए तैयार है। 

चीन इस समय अमरीका के साथ तनाव इसलिए भी बढ़ा रहा है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है, इसके अलावा कोरोना महामारी के चलते चीन के कई शहरों में लोग लॉकडाऊन में अब नहीं रहना चाहते और पहली बार वे पुलिस और सुरक्षा कर्मियों से मारपीट पर उतारू हो गए हैं। 

चीन की अंदरूनी स्थिति इस समय गृहयुद्ध की तरफ बढ़ती दिखाई दे रही है क्योंकि तिनानमिन चौराहे वाली घटना के बाद बड़े पैमाने पर अब लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं और सुरक्षाकर्मियों से संघर्ष कर रहे हैं। इन सबको शांत करने के लिए चीन ऐसी योजना बना रहा है जिससे वह अपने किसी पड़ोसी देश या फिर अपने चिर प्रतिद्वंद्वी अमरीका से युद्ध का तनाव अपने लोगों को दे जिससे घरेलू मोर्चे को संभालना आसान हो जाए। चीन की हालत अंदर से इतनी खराब है कि चीनी लोग शी जिनपिंग से खासे नाराज हैं और उन्हें सत्ता में देखना तक नहीं चाहते। 

एक वर्ष पहले पेंटागन ने बताया था कि चीन पी.एल.ए. की नौसेना जल्दी ही अपने समुद्री तटों से अमरीका पर मिसाइलें दागने की क्षमता बना लेगी, इसके जवाब में पापारो ने बताया कि फिलहाल चीन की टाइप 094 एस.एस.बी.एन. के पास इतनी क्षमता नहीं है। लेकिन कुछ जानकारों के अनुसार चीनी पनडुब्बियां अमरीका को घेरने की रणनीति के तहत हवाई तक का चक्कर लगा चुकी हैं। 

इस बारे में अमरीका से आधिकारिक पुष्टि तो नहीं हो पाई लेकिन अमरीका चीन की इस हरकत से चिंता में जरूर है। चीन की नौसेना की बढ़ती मारक क्षमता को लेकर अमरीकी चिंतित हैं और इस बारे में अमरीकी रणनीतिक कमांड के कमांडर एडमिरल चाल्र्स रिचर्ड ने अमरीकी सीनेट सैन्य सेवा कमिशन को इस वर्ष की शुरूआत में जानकारी दी थी कि चीन की जे.एल.-3 के पास 10,000 किलोमीटर तक की मारक क्षमता होने की बहुत संभावना है। 

वहीं चीन की जे.एल.-2 की मारक क्षमता के बारे में जानकार कहते हैं कि वह 7200 किलोमीटर तक मार कर सकती है। अमरीकी थिंकटैंक में इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि अगर जे.एल.-2 को टाइप 094 एस.एस.बी. एन. की क्षमता से सुसज्जित किया जाता है तो चीन के बोहाई समुद्र से अमरीका के पश्चिमी तट अलास्का तक चीन मिसाइलें छोड़ सकता है। इस पर अमरीकी रक्षा उपकरण के जानकारों ने बताया कि जे.एल.-2 को 094 एस.एस.बी.एन. से सुसज्जित होने के बाद भी अमरीकी तटों पर हमले के लिए बोहाई से नहीं बल्कि हवाई द्वीप तक आना होगा जो अमरीका होने नहीं देगा क्योंकि चीनी हथियारों की अभी इतनी दूर की मारक क्षमता नहीं है। 

अमरीका के इस आंकलन से चीन बुरी तरह तिलमिला गया है और उसने अपने सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में अमरीका की बुराई करते हुए लिखा है कि अमरीका चीन को एक खतरे के रूप में देख रहा है जिससे वह दुनिया को यह बता सके कि अपनी रक्षा के लिए वह मजबूरी में दक्षिण चीन सागर में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। इस बहाने अमरीका पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी नौसेना के बेड़ों की मौजूदगी बढ़ाना चाहता है। चीन ने अमरीका पर यह भी आरोप लगाया कि अमरीकी सेना चीन को खतरे के रूप में दिखाकर अपनी सरकार से सेना के लिए ज्यादा फंडिंग लेना चाहती है। 

ग्लोबल टाइम्स ने जे.एल.-3 पर सफाई देते हुए कहा कि जिस जे.एल.-3 को अमरीका हव्वा बना रहा है वह अभी चीनी सेना में कमिशन नहीं हुआ है, हालांकि जून 2019 में उसका टैस्ट किया गया था और जे.एल.-3 किसी देश के खिलाफ नहीं है बल्कि चीन की सेना में नियम के तहत कमिशन किया जाएगा। यहां पर चीन अपनी रणनीति के हिसाब से दुनिया के सामने एक शांत देश की छवि पेश करना चाहता है साथ ही चीन ने अपने परमाणु हथियारों के काम को वर्तमान वातावरण को देखते हुए आगे बढ़ाने के संकेत भी दिए हैं वहीं जिस तरह चीन ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में छोटे देशों और उनके दूरदराज के द्वीपों पर अपना अवैध कब्जा जमाकर उसे नौसेना अड्डा और वायुसेना का अड्डा बना लिया है उससे चीन की मंशा को साफ तौर पर समझा जा सकता है। 

चीन इस समय अमरीका को पानी में घेरने की रणनीति बना रहा है और उसी हिसाब से अपने देश में हथियारों को विकसित कर रहा है। इसे देखते हुए अमरीका चीन के हथियारों का आंकलन कर रहा है कि अगर युद्ध या तनाव जैसे हालात बनते हैं तो चीन उसे कितना खतरा दे सकता है। वर्ष 2016 की कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर रीजनल पीस की रिपोर्ट के अनुसार चीन पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने को लेकर वचनबद्ध है। लेकिन वहीं जानकारों का यह भी कहना है कि चीनी नेताओं में लंबे समय से अपनी नो फस्र्ट यूज ऑफ न्यूक्लियर नीति पर बहस चल रही है, इसे देखकर ऐसा लगता है कि जल्दी ही इस नीति में चीन बदलाव कर सकता है। 

वर्ष 2015 की सैंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनैशनल स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार अमरीका और उसके मित्र देश मियाको खाड़ी, बाशी चैनल और सुलू समुद्री क्षेत्र में चीन को रोकने के लिए चैक प्वाइंट बना सकते हैं जिससे चीन को प्रशांत महासागर में आने से रोका जा सके। साथ ही रणनीतिकारों का यह भी मानना है कि चीन अपनी एस.एस. बी.एन. के साथ कम दूरी और अपने तटों के आसपास के इलाकों में मजबूत स्थिति में हो सकता है लेकिन खुले समुद्र में चीन को वह बढ़त अभी हासिल नहीं है जिससे वह अमरीका के लिए खतरा बने। 


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