निराश न हों, आई.पी.एस. में बहुत से अच्छे अधिकारी हैं

punjabkesari.in Friday, Apr 08, 2022 - 04:47 AM (IST)

जैसे ही मैंने भारतीय पुलिस सेवा के एक पूर्व सदस्य होने के तौर पर निराशा महसूस करनी शुरू की, वैसे ही ताजी हवा का एक झोंका मेरे ड्राइंगरूम में संजय पांडे के तौर पर महसूस हुआ जिन्हें हाल ही में उस शहर में पुुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया जिसमें मेरा जन्म हुआ था, उन्होंने लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए नागरिकों तक पहुंच बनाई है। 

आई.आई.टी. कानपुर से इंजीनियरिंग ग्रैजुएट संजय सप्ताह में एक बार अधिक से अधिक लोगों से सम्पर्क बनाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिस चीज की पुलिसिंग में सर्वाधिक कमी महसूस की जा रही है। यह पता चलने पर कि शहर की सड़कों पर शोर-शराबे वाला ट्रैफिक लगभग प्रत्येक नागरिक को परेशान करता है, उन्होंने मुम्बई के जीवन के इस एक पहलू पर ध्यान केन्द्रित करने का निर्णय किया। 

दोपहिया वाहन और कई बार एक कार को भी ड्राइव कर सड़क की उलटी साइड चलना यातायात नियामकों के लिए ङ्क्षचता का एक बड़ा कारण है। मैंने विदेशों की बहुत यात्रा की है। मैंने दुनिया में कहीं भी अन्यत्र यह समस्या नहीं देखी। स्वाभाविक है कि यहां भीषण ट्रैफिक जाम लगने की संभावना है जिसके अतिरिक्त सड़क पर मौतें भी होती हैं। कोविड के आने से पहले एक शाम मेरी पत्नी तथा मैं अपने आवास से एक गिरजाघर के लिए निकले। जैसे ही हमारी कार एक मोड़ पर पहुंची गलत साइड से एक कार ने सामने आकर हमें चौंका दिया। गलती करने वाले वाहन चालक ने आने वाले ट्रैफिक को नहीं देखने के लिए हमारे शोफर को बुरी तरह से फटकार लगाई। 

संजय पांडे ने इन संभावित हत्यारों को कानून की कड़ाई दिखाने का निर्णय किया। उन्होंने अपनी ट्रैफिक पुलिस को इन गैर-जिम्मेदार नागरिकों पर विशेष ध्यान देने तथा हमेशा के लिए ‘गलत साइड पर ड्राइविंग’ रोकने का आदेश दिया। प्रतिदिन समाचार पत्र हमें पुलिस प्रमुख द्वारा की जाने वाली नई-नई खोजों के बारे में बताते रहते हैं, जिन्हें लागू करके जीवन को आसान बनाया जा सके। पहले यही समाचार पत्र पूर्व पुलिस आयुक्त के राक्षसी व्यवहार बारे समाचार छापते थे जो ऐसा दिखाई देता था कानून तोडऩे वालों से धन इकट्ठा करने में जुटे रहते थे ताकि दुष्ट राजनीतिज्ञों तथा दुष्ट पुलिस कर्मियों को अमीर बनाया जा सके। 

जिस राजनीतिज्ञ की हम बात कर रहे हैं वह जेल में है और यह सही भी है। यह अवश्य स्वीकार करना होगा कि पुलिसकर्मी ने कहीं अधिक चतुर दोष से बचने के लिए उसने कुछ राजनीतिज्ञों की मदद करने और यहां तक कि खुद को एक ‘व्हिसल ब्लोअर’ की तरह पेश करते हुए विरोधियों के साथ भी नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की। पहले वह सबकी नजरों से गायब हो गया। शीघ्र ही अदालत ने उसे भगौड़ा घोषित कर दिया। तब से वह अदालती पेचीदगियों से बचने के लिए अपने नए राजनीतिक मित्रों तथा बेहतरीन बचाव दलों की मदद ले रहा है। 

जैसे स्कैनर के नीचे आए पुलिस प्रमुख के बारे में ब्यौरे काफी नहीं थे, समाचार पत्रों में एक अन्य सीधे नियुक्त आई.पी.एस. अधिकारी, पुलिस उपायुक्त की धोखाधड़ी के बारे में लिखना शुरू कर दिया जिस पर कथित रूप से  ‘अंगाडिय़ों’ से प्रति माह 10 लाख रुपए इकट्ठे करने का आरोप है ताकि स्थानीय पुलिस के डर के बिना उन्हें अपना काम जारी रखने की इजाजत मिली रहे। ‘अंगाडिय़ा’ अनतराशे हीरों को पड़ोसी गुजरात में सूरत स्थित हीरों को तराशने तथा पॉलिश करने वाले केंद्रों तक ले जाने वाले विश्वसनीय लोग हैं। यह एक बहुत प्राचीन व्यवस्था है जो समय के साथ जांची-परखी और करीब अपराधमुक्त है। 

जब वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारियों को धन का कीड़ा काट लेता है उन पर रिपोर्टिंग की बाढ़ आ जाती है। यह संभवत: उनके वर्तमान राजनीतिक बॉसेज के अनुकूल हो लेकिन लोगों को किसी भी तरह के न्याय से वंचित रखा जाता है। वे दोबारा ईमानदार तथा विश्वसनीय अधिकारियों की शरण में जाते हैं जो भाग्य से अभी भी मौजूद हैं। मेरे पास ऐसे अधिकारियों की एक लम्बी सूची है। जब उनके पास लोग शिकायत लेकर जाते हैं तो वे अभी भी आई.पी.एस. के झंडे को फहराए हुए हैं। 

1958 बैच के पुंडी राजगोपालन पार्थसारथी मेरे सहायक अधीक्षक थे। जब मैं 1962-64 में शोलापुर जिला पुलिस का नेतृत्व कर रहा था उन्होंने लोगों की सेवा में अपने अनुभवों के बारे में एक रोचक संस्मरण लिखा था, जिसका शीर्षक था ‘नीदर क्लोक नॉर डैगर’। मुम्बई पुलिस प्रमुख और बाद में आई.पी.एस. के एक नियमित बैच से संबंधित उपायुक्त की कहानियों से परेशान होकर मैंने अपनी निजी लाइब्रेरी से पार्थ सारथी की 20 वर्ष पुरानी बुकलैट निकाली और उसमें लिखी 43 कहानियों को फिर से पढ़ा। राष्ट्रीय पुलिस अकादमी को सभी  प्रोबेशनरों को इस तरह के संस्मरण पढऩे आवश्यक बनाने की सलाह देनी चाहिए। युवा अधिकारियों को अवश्य समझना चाहिए कि वे लोगों के सेवक हैं न कि उनके मालिक। 

डा. प्रदन्या सर्वडे ने प्रतिस्पर्धात्मक सिविल सेवा परीक्षा में बैठने से पहले मास्टर ऑफ सर्जरी की थी। आज वह महाराष्ट्र काडर में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं। अपनी निष्ठा तथा दृढ़ता के कारण वह रंगहीन असाइनमैंट्स को भी अपनी इनोवेशन्स के द्वारा रोचक बना देती हैं जो उनके जूनियर्स को लोगों की और सेवा करने को प्रोत्साहित करता है। 

रेलवे की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के तौर पर प्रदन्या ने ‘बियोंड द काल ऑफ ड्यूटी’ कार्यक्रम लागू किया। रेलवे पुलिस के पास खोए हुए लोगों की मदद के लिए बहुत अवसर होते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो आत्महत्या करने के लिए रेल लाइनों पर पहुंचते हैं। इनमें युवा लड़कियां तथा लड़के शामिल होते हैं जो झगड़ों के बाद अपने घर से भाग जाते हैं तथा युवा लड़कियां जिन्हें मजबूरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। परिस्थितियों के शिकार इन सभी लोगों की प्रदन्या जैसे ध्यान रखने वाले रेलवे पुलिस कर्मियों द्वारा मदद की जा सकती है। 

बहुत से ऐसे युवा, जिनमें से कुछ सीनियर अधिकारी हैं, हमें गौरवान्वित करते हैं। कुछ झटकों से लोगों का पुलिस नेतृत्व में विश्वास डगमगाना नहीं चाहिए। वे पुलिस सेवा की छवि को नुक्सान पहुंचा सकते हैं तथा छोटे दर्जे के कर्मचारियों को हतोत्साहित कर सकते हैं लेकिन हमें (लोगों को) यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे लोग उच्च पदों के लिए न चुने जाएं। समय आ गया है कि लोग सरकार को अनुपयुक्त लोगों की सूची सौंपे, विशेषकर संदिग्ध निष्ठा वाले अधिकारियों की, चाहे उन्हें असुखद ही क्यों न लगे।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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