‘सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे पुराने लोकतंत्र में फर्क’

punjabkesari.in Tuesday, Jan 12, 2021 - 04:59 AM (IST)

किस तरह सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की तुलना सबसे पुराने लोकतंत्र अमरीका के साथ इसके संचालन को लेकर हो सकती है। यहां पर एक व्हाट्सएप संदेश चारों ओर पढ़ा जा रहा है जिसमें कहा गया है कि, ‘‘अमरीकियों ने हाल ही में पाया है कि उनके लिए दूसरे देशों में राष्ट्रपतियों को बदलना अपने देश में उनको बदलने से ज्यादा आसान है।’’ 

पूरे राष्ट्रपति चुनाव की मुहिम के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की थी कि वह व्हाइट हाऊस से बिल्कुल भी नहीं हिलेंगे अगर हार भी जाएं तो भी। उनके प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन ने दोहराया था कि वह सेना द्वारा सुरक्षा के घेरे में रहेंगे। मगर किसी ने भी ‘कैपिटोल’ पर हमले के बारे में सोचा नहीं था जोकि लोकतंत्र का एक मंदिर माना जाता है। ट्रम्प ने पिछले दो माह में अपनी हार मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने दावा किया था कि चुनावों में हेरफेर ने ही कैपिटोल दंगों को भड़काया था। 

अमरीकी मीडिया के अनुसार ट्रम्प ने पिछले बुधवार को एक ट्वीट कर अपने उपराष्ट्रपति माइक पेन्स को दखलअंंदाजी और निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन को बाहर निकालने के लिए कहा था। पेन्स ने सार्वजनिक तौर पर एक बजे के करीब एक पत्र जारी कर घोषणा की कि वह कांग्रेस में गैर कानूनी ढंग से कोई भी दखलअंदाजी नहीं करेंगे। 

ट्रम्प ने अपने समर्थकों को करीब एक बजे संबोधित किया तथा घोषणा की कि, ‘‘हम हार नहीं मानेंगे और न ही हम झुकेंगे।’’ इसके अलावा उन्होंने कैपिटोल में शामिल होने की घोषणा कर डाली। ट्रम्प ने ही रैली को भड़का दिया। हालांकि वह दंगों में शामिल नहीं हुए। मगर व्हाइट हाऊस में वापस जाकर उन्होंने सारे घटनाक्रम को टैलीविजन पर देखा। बुधवार की समाप्ति पर जब कांग्रेस ने ट्रम्प के ऊपर जो बाइडेन की जीत की घोषणा कर दी तब भी ट्रम्प ने कहा कि वह चुनावों के नतीजों से सहमत नहीं हैं और 20 जनवरी को यहां पर एक बदलाव होगा। 

ट्रम्प के हठ वाले व्यवहार के कई कारण हैं। पहला यह कि वह हार को स्वीकार नहीं करते और हार के समक्ष अड़े रहते हैं। यहां तक कि 2016 में भी उन्होंने घोषणा की थी कि वह तभी नतीजों को स्वीकार करेंगे यदि वह जीत जाएं। दूसरा यह कि अब उन्होंने राष्ट्रपति पद खो दिया है। अभियोग के खिलाफ ट्रम्प सभी संघीय संरक्षण को भी खो देंगे। तीसरा कारण यह है कि यदि उन्होंने 2024 के राष्ट्रपति चुनावों के लिए फिर से जाना है तो उन्हें अपने समर्थकों की जरूरत पड़ेगी। इस बार उनके लिए मत करने वाले 73 मिलियन मतदाता थे। अनुमान लगाया जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने अगले चुनावों को लड़ऩे का भी अपना मन बना रखा है तथा एक शहीद की भूमिका निभाना चाहते हैं। चौथा कारण यह है कि उन्हें रिपब्लिकन के एक वर्ग को अपने साथ रखना है जो पार्टी में उनका समर्थन करते हैं। 

अमरीकी लोकतंत्र पर ऐसे हमले की सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ तुलना की जा रही है जिसने पिछले 73 वर्षों के दौरान अनेकों समस्याओं तथा परीक्षणों को देखा है। भारत ने विशेष रूप से 17 बार सत्ता का हस्तांतरण देखा है। सत्तावादी शासकों को दंडित करने में भारतीय मतदाता परिपक्व हो चुके हैं। यहां तक कि भारत की दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1975 में आपातकाल को थोपने के बावजूद उन्होंने एक सिस्टम के भीतर कार्य किया जिसकी वर्तमान में अमरीका के साथ ताजा स्थिति से बहुत कम तुलना की जा सकती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा करने के दौरान इंदिरा गांधी ने अंदरूनी अशांति के लिए सी.आई.ए. के छिपे हुए हाथ होने का आरोप लगाया था।

पूर्व दिवंगत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जो अपने पूरे जीवनकाल तक एक कांग्रेसी रहे, ने आपातकाल को अपनी पुस्तक ‘द ड्रामाटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी ईयर्स’ में कुछ इस तरह लिखा ‘‘मूल अधिकारों का दमन तथा राजनीतिक गतिविधि (ट्रेड यूनियन की गतिविधि सहित), बड़े स्तर पर राजनीतिज्ञों तथा कार्यकत्र्ताओं की गिरफ्तारी, प्रैस पर सैंसरशिप तथा चुनाव आयोजित किए बिना विधायिका की अवधि को बढ़ाना कई बार आपातकाल की ऐसी मिसालें लोगों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।’’ कांग्रेस तथा इंदिरा गांधी को इस दुर्गति की कीमत अदा करनी पड़ी। आधिकारिक रूप से आपातकाल 23 मार्च 1977 को समाप्त हुआ। 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 352 सीटों से गिरकर मात्र 189 सीटों पर आ गई। जनता सरकार सत्ता में आ गई। लोगों का आक्रोश थम गया तथा एक वशीभूत इंदिरा गांधी 1980 में फिर से सत्ता में लौटीं जब जनता सरकार धराशायी हो गई। तब से लेकर उनके उत्तराधिकारियों ने संविधान में सीमित रहकर अपने आपको सीमित रखा है। 

यहां तक कि शिवसेना संस्थापक बाला साहब ठाकरे, तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता या फिर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव बेशक सत्तावादी रहे हों, मगर वे भी संविधान की परिधि में थे। इन सब बातों को देखते हुए भारत सौभाग्यशाली है कि यहां पर लोकतंत्र जिंदा है। कैपिटोल पर हमले के चित्रों को देखने के बाद ऐसा लगता है कि अमरीकी लोकतंत्र पर एक प्रहार हुआ है। अभी इनकी समाप्ति नहीं हुई और 20 जनवरी तक ट्रम्प ऐसे कई प्रयास जारी रखेंगे।अमरीकी संविधान के निर्माणकत्र्ताओं ने यह कभी भी नहीं सोचा होगा कि संविधान की उल्लंघना करने वाले ऐसे राष्ट्रपति का व्यवहार इतना बदतर हो सकता है। बॉब वुडवर्ड के अनुसार ‘‘जब इतिहास लिखा जाएगा, ट्रम्प की असफलता चुनौतियों की ओर ध्यान दिलवाएगी। यह शायद एक अमरीकी राष्ट्रपति की असफलता की कहानी बताएगा।’’-कल्याणी शंकर
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News