क्या राहुल गांधी का चुनावी जुआ काम कर गया

punjabkesari.in Tuesday, Dec 06, 2022 - 04:28 AM (IST)

क्या राहुल गांधी का चुनावी जुआ काम कर गया है? राहुल ने गुजरात तथा विधानसभा की चुनावी मुहिम को छोड़ दिया था और इन चुनावों के प्रचार में उन्होंने भाग नहीं लिया। इस दौरान राहुल अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में लगे रहे। क्या यह किसी रणनीति का हिस्सा था या फिर उनका एक गलत कदम था? क्या यह राहुल गांधी की पार्टी के गोला-बारूद को बचा कर रखने की एक रणनीति थी ताकि इसका इस्तेमाल महत्वपूर्ण चुनावी युद्धों को जीतने के लिए किया जाए? दिलचस्प बात यह है कि हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में कांग्रेस की हार राहुल की कैसे मदद कर सकती है? जबकि जीत उनसे दूरी बनाकर रखे हुए है। 

राहुल के नजदीकी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि यह  उनका एक सचेत निर्णय था। उनका यह भी कहना है कि पार्टी आगे की तरफ देख रही है और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही है जिसका नेतृत्व राहुल गांधी करेंगे। संघ से निपटने के लिए राहुल गांधी एक बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे जिसका फायदा भविष्य में मिलने वाला है। उनका वास्तविक दुश्मन संघ है न कि भाजपा। 

हालांकि भाजपा नेताओं ने चुनावी प्रचार से राहुल के मुंह मोड़ लेने की आलोचना की है। उनका कहना है कि ऐसा उन्होंने डर के मारे और पार्टी की हार से बचने के लिए किया है। पारंपरिक तौर पर दोनों राज्यों ने भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखा था। हिमाचल का इतिहास ऐसा रहा है कि वह एक ही पार्टी को दोहराता नहीं है, इसी कारण इस बार सत्ता छीनने की बारी कांग्रेस की थी। 

हिमाचल में जीत कांग्रेस के गिरते मनोबल को उठाएगी वहीं इसके पुन:उत्थान के लिए सक्षम होगी। गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की साख दाव पर लगी है क्योंकि दोनों का संबंध गुजरात से है। दोनों ने राज्य में चुनावी प्रचार जोर-शोर से किया और किसी भी पल को नहीं गंवाया। सभी सर्वेक्षणों ने जताया है कि एक कड़े मुकाबले में भाजपा कांग्रेस से आगे है और यदि भाजपा दोनों राज्यों में जीत हासिल करती है तो पार्टी एक नया रिकार्ड बनाएगी। 

गुजरात में 27 सालों से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस यदि एक अन्य हार झेलती है तो पार्टी कैडरों का मनोबल और भी गिरेगा और 2024 के लोकसभा चुनावों पर इसका प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस अभी भी जीत सकती है और ऐसा अपने नेताओं के बल पर नहीं अपने कार्यकत्र्ताओं के बल पर। इस चुनावी युद्ध के मैदान में महत्वाकांक्षी आम आदमी पार्टी भी कूदी हैै। उसने इस चुनाव को त्रिकोणा रंग दिया है। पिछले वर्ष पंजाब में जीत हासिल करने के बाद ‘आप’ का मनोबल बढ़ा है। ‘आप’ के प्रवेश के कारण कांग्रेस और ज्यादा कमजोर हो जाएगी क्योंकि ‘आप’ कांग्रेस के मत भी हासिल कर लेगी। 

2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य पर नजर आने के बाद कांग्रेस ने लगातार एक के बाद एक राज्य में हार का मुंह देखा है। उसके बाद से पार्टी की सफलता या फिर असफलता का कारण राहुल गांधी को माना गया जो 2017 में पार्टी प्रमुख बने थे। उन्होंने 2019 में इस पद से इस्तीफा दे दिया मगर पार्टी के निर्णय लेते रहे। 2014 में कांग्रेस तथा उसकी सहयोगी पाॢटयों ने 13 राज्यों में शासन किया था। इनमें से 9 राज्यों में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें थीं। इन राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें गिरने से भाजपा को सरकार बनाने में मदद मिली थी। अब कांग्रेस पार्टी के पास मात्र राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य हैं। 

दोनों ही पार्टियां अंतर्कलह और अनुशासनहीनता को झेल रही हैं। सरकार विरोधी लहर के बावजूद भाजपा सत्ता हासिल करने के लिए ‘मोदी मैजिक’ पर निर्भर करती है। दोनों ही पार्टियों को राज्य स्तर पर सशक्त नेताओं के निर्माण की जरूरत है। पूर्व में कांग्रेस तथा भाजपा दोनों के पास वीरभद्र सिंह तथा सुखराम (कांग्रेस) और प्रेम कुमार धूमल (भाजपा) जैसे कद्दावर नेता थे। दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल की अनुपस्थिति में गुजरात में कांग्रेस कमजोर पड़ गई है। 2017 के विधानसभा चुनावों का हिस्सा रहने वाले युवा नेता अलपेश ठाकुर और हार्दिक पटेल ने भी पार्टी से किनारा कर लिया। हालांकि जी-23 विरोधी नेता बिखर गए हैं क्योंकि इस ग्रुप के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की अनदेखी हुई है। वरिष्ठ नेताओं का इस्तेमाल सही ढंग से नहीं किया गया, इसकी मिसाल आनंद शर्मा है। 

राहुल तथा उनके सलाहकार इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पार्टी की भविष्य में कार्यकुशलता को सुधार सकती है। हालांकि यदि यात्रा सफल होती है तो इसका असर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ही नजर आएगा। इस बात को लेकर भी हैरानी प्रकट की जा रही है कि पार्टी कार्यकत्र्ताओं के मनोबल को उठाने के लिए राहुल गांधी दोनों राज्यों में जीत देखना क्यों नहीं चाहते हैं। 

शायद राहुल गांधी चुनावी प्रचार से दूर रह कर यह दर्शाना चाहते थे कि कांग्रेस को गांधियों की अभी जरूरत है। अपनी पकड़ बनाने के लिए पार्टी के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अभी और समय की जरूरत है। विडम्बना देखिए कि दोनों राज्यों में से एक जीत का श्रेय गांधी परिवार लेना चाहता है मगर यदि पार्टी की हार होती है तो इसका ठीकरा नए कांग्रेस अध्यक्ष खरगे पर फोड़ा जाएगा। 

चुनावी पंडितों का यह भी कहना है कि कांग्रेस अभी भी अपनी झोली में हिमाचल को पा सकती है। यदि कांग्रेस ने अपनी जीतने की रणनीति पर सही ढंग से काम किया होता तो उससे और भी अच्छा करने की उम्मीद की जा सकती थी। यदि राहुल अपने इस जुए को जीतते हैं तो इसका श्रेय उनको जाएगा और यदि जीत हासिल नहीं होती तो वे वहीं खड़े दिखाई देंगे जहां वह पहले से ही थे।-कल्याणी शंकर
 


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