राजनीतिक ‘सरपरस्ती’ में तैनाती अधिकारियों को कमजोर कर देती है

punjabkesari.in Saturday, Jul 25, 2020 - 03:25 AM (IST)

पिछले सोमवार मैंने सभी आई.पी.एस. अधिकारियों को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें उनसे खुला पत्र लिख कर कहा कि वे राजनीतिक सरपरस्ती के माध्यम से तैनातियों के सफल हो जाने के प्रभाव से अपने आपको बचा कर रखें क्योंकि इससे उनका भविष्य उनके संरक्षकों को खुश रखने पर निर्भर करता है। संरक्षक ऐसा करने से अधिकारियों के कद को अपने आदमियों की आंखों में छोटा कर देते हैं तथा अधिकारियों की कमान करने की योग्यता को कमजोर कर देते हैं। 

आई.पी.एस. बिरादरी का एक पूर्व गौरवमयी सदस्य होने के नाते मैंने उनसे निवेदन किया। मैं महाराष्ट्र के 6 विभिन्न ग्रामीण जिलों में लोगों की सेवा कर चुका हूं। उसके बाद मैंने पुणे और मुम्बई जैसे दो बड़े शहरों में भी अपनी सेवाएं दीं और उसके बाद मैंने गुजरात तथा पंजाब में अपनी सेवाएं दीं। इन सभी तैनातियों में मैंने यह पहचान की कि एक साधारण नागरिक एक अधूरे रूप में न्याय के लिए उदास रहता है। ऐसे अधिकारियों जिन्होंने अन्यों की सेवा की तथा उनमें न्याय बांटा वे सराहे गए तथा उन्हें कभी भी नहीं भुलाया जा सका। 

1987 में मुझे पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। जब मुझे यह सम्मान मिला तब मैं बेहद खुश हुआ। मगर अब 33 वर्षों के बाद मैंने महसूस किया कि कोई भी परवाह नहीं करता और यहां तक कि सम्मान के बारे में नहीं जानता मगर जिन लोगों ने मेरे से न्याय को प्राप्त किया वे लोग अभी तक नहीं मुझे भुला पाए कि मैंने उनकी आदर सहित तथा न्यायपूर्वक सेवा की। एक अधिकारी होने के नाते यह मेरा सबसे महत्वपूर्ण कत्र्तव्य था कि मैं प्रत्येक व्यक्ति को न्याय दिलवाऊं, जो लोग संकट के समय मेरे तक पहुंचे थे। यह मेरा कत्र्तव्य बनता था मगर वे लोग मुझे कभी भी नहीं भूले और मेरे लिए यही एक पुरस्कार है। मेरे लिए पद्म भूषण से भी यह पुरस्कार बड़ा है। 

मैं 1985 तक लोकतांत्रिक सरकारों, अपराध तथा अपराधियों से निपटा जिसका संचालन लोकतांत्रिक राजनीति में हो रहा था। कुछ आपराधिक नेताओं ने पुलिस अधिकारियों को रिश्वत दी तथा उन्हें अपना दोस्त बनाने में सफल हुए। उसी समय चुनावों को लडऩे के लिए बल तथा पैसों का प्रस्ताव देकर सत्ता में मौजूद राजनीतिज्ञों का संरक्षण प्राप्त किया। भ्रष्टाचार ने उनको अपनी कार्रवाई करने में योग्य बनाया और यहां तक कि उनके संचालन के क्षेत्र का विस्तार किया। 

उसके बाद 1986 में मुझे पंजाब में आतंकवाद से निपटने के लिए कहा गया। जब मैंने पंजाब पुलिस की बागडोर अपने हाथों में ली तब मुझे आतंकवाद का कोई भी अनुभव नहीं था। मैंने पाया कि आतंकवादी एक अलग ही किस्म की नस्ल थी। यह एक अलग प्रकार का युद्ध था जिसे पुलिस को लडऩा था और इस युद्ध के नियम भी भिन्न थे। यहां तक कि हाईकोर्ट के जजों ने मुझसे की गई निजी वार्ता के दौरान मुझसे कहा कि मैं मैजिस्ट्रेट के सामने गुनाहगारों को लेकर न आऊं क्योंकि इससे जजों तथा उनके बच्चों के जीवन का जोखिम बढ़ जाता है।

ऐसा कोई दूसरा सोच भी नहीं सकता। आतंकियों की जब पहचान हुई तब उनसे अग्र भाग में मुठभेड़ हुई। इसके साथ ही उन्होंने उस समुदाय को अपना दोस्त बनाया जिससे वह संबंध रखते थे और इससे उन्हें पूरी सफलता मिली। आतंकवादी के राष्ट्रवादी रूप को झेलने का यह एक प्रतिष्ठित तरीका था। इसने अपना काम किया जिससे आप सभी वाकिफ हो। 

अपराध तथा अपराधी जो पुलिस तथा राजनेताओं के बॉस को रिश्वत देने में कामयाब रहे, से निपटने के दौरान यही तरीका उन आतंकियों संग अपनाया गया जिनका मन बदल दिया गया था। भ्रष्टाचार पर निर्मित मेलजोल को तोडऩे तथा राजनेता, अपराधी तथा पुलिस के तीन टांगों वाले स्टूल को कमजोर करने  के लिए यहां पर इसका समाधान है। आप राजनेताओं के बारे में बहुत कम कार्य कर सकते हैं मगर आप निश्चित तौर पर इस स्टूल की पुलिस वाली टांग को कमजोर कर सकते हैं और यह आरामदायक प्रबंधन को अस्थिर कर देगा। अधिकारियों की चापलूसी की जाती है। राजनेता खुले तौर पर आप पर दबाव नहीं डालेंगे ताकि अपराधी लोग अपनी लूटपाट जारी रखें। वे तो आपको बदल ही देंगे। मगर ऐसा होने से समझदार जनता रोकती है। ऐसा मैंने मुम्बई में निजी तौर पर अनुभव किया था। 

हाल ही में नकली मुठभेड़ जिसमें एक कुख्यात डॉन विकास दुबे मार गिराया गया। विचार करने के लिए यह हमारे लिए शुरूआती बिंदू है। इससे पहले स्पष्ट रूप से दुष्कर्म तथा पशु चिकित्सक एक युवा महिला की हत्या के लिए 4 युवकों का नकली एनकाऊंटर कर दिया गया। हैदराबाद के बाद घटी इस घटना ने हम में से कइयों को विचलित किया। उस मामले में उन युवकों को पकडऩे के लिए अपराध के लिए जुटाए गए साक्ष्य जनता को आसानी से बताए नहीं गए। ज्यादातर लोगों ने इसकी प्रशंसा की।

जब कभी इस फैशन में अपराधियों को मार मुकाया जाता है तब सुरक्षा का बोलबाला होता है। वहीं तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले में पुलिस हिरासत में बाप तथा उसके बेटे की निर्मम हत्या कर दी गई। इससे मेरे जैसे पुलिस कर्मियों का सिर शर्म से झुक गया। इस मामले में 2 व्यक्तियों की गिरफ्तारी का कोई औचित्य नहीं था। उनका अपराध तो केवल इतना था कि उन्होंने कोविड-19 के दौरान दुकानों के बंद होने के समय के बाद अपनी दुकान खुली रखी। 

ऐसी नकली मुठभेड़ों को पलटने के लिए आप भी सहमत होंगे कि ऐसे असभ्य तरीकों के लिए लोगों की अनुमति मिल जाती है। इससे न्यायालय से प्राप्त न्यायिक निर्णय की शक्ति पुलिस को ट्रांसफर हो जाती है। पुलिस को यहां पदासीन, अभियोक्ता तथा जज बना दिया जाता है। तीनों विभिन्न संस्थानों को एक में ढाल दिया जाता है। यह बड़ा खतरनाक प्रस्ताव है जो शुद्ध तथा अनियंत्रित शक्ति को उन लोगों के लिए जारी कर दिया जाता है जो पहले से ही यूनिफार्म में रह कर कानून द्वारा अनिवार्य दंड मुक्ति का आनंद उठा रहे होते हैं। ऐसी दंड मुक्ति को प्रशासन संवारता ही नहीं बल्कि ऐसे पुलिस कर्मियों को यूनिफार्म में अपराधियों में तबदील कर देता है। इस पर विचार कीजिए  और अपने लिए यह तय कीजिए कि हम कहां जाना चाहते हैं? हम लगातार पुलिस स्टेट की तरफ मार्च कर रहे हैं। 

एक सच्चा राष्ट्रवादी वह है जो अपने देश से प्यार करता है। वह न तो राष्ट्र विरोधी और न ही चरमपंथी राष्ट्र हो सकता है। एनकाऊंटर विशेषज्ञों को छोडऩे में शामिल खतरे को उसे समझना चाहिए। साधारण अपराधियों में से एक राक्षस को उत्पन्न करना भी पूरी तरह से खतरनाक है। विकास दुबे कभी भी एक दैत्य नहीं बन सकता था जो उन लोगों की हत्या करने की हिम्मत रखता था जिन्होंने उसे उत्पन्न किया था। उसे आम जनता को भयभीत करने की अनुमति दी गई। उसे तब ही दबा दिया जाना चाहिए था जब वह प्रफुल्लित हो रहा था।-जूलियो फ्रांसिस रिबेरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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