भाजपा के चुनाव हारने के डर तक देश में लोकतंत्र बचा रह सकता है

punjabkesari.in Sunday, Nov 28, 2021 - 04:38 AM (IST)

अमीर बड़े बन जाते हैं तथा बड़े अमीर। जब वे बड़े तथा अमीर हो जाते हैं तो एक स्पष्ट तथा मौजूद खतरा यह होता है कि वे जवाबदेह नहीं रहते। अमरीकी सीनेटर जॉन शेरमन (1890 के पहले एंटीट्रस्ट एक्ट को आमतौर पर शेरमन एक्ट के तौर पर जाना जाता है) ने कहा था कि ‘यदि हम एक राजा को एक राजनीतिक ताकत के तौर पर नहीं सहेंगे तो हमें एक राजा को उत्पादन, परिवहन तथा जीवन की हर तरह की आवश्यकताओं को बिक्री को लेकर सहन नहीं करना चाहिए।’ 

अमरीका में स्टैंडर्ड ऑयल तथा ए.टी. एंड टी. टूट गईं। चीन ने अलीबाबा, टेंसेंट तथा दीदी पर धावा बोल दिया। कई देशों में माइक्रोसॉफ्ट, गूगल तथा फेसबुक को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। क्यों? क्योंकि वे बहुत बड़ी, बहुत अमीर तथा अनुत्तरदायी बन गईं। ठीक वैसे ही, जैसे हम एक राजा को एक शासक के तौर पर सहन नहीं करेंगे। हमें एक शासक को भी सहन करने की जरूरत नहीं जो राजा बनना चाहता हो। कई देशों में उनके राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री के लिए शब्द लिमिट्स यानी सीमाओं का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि वह निरकुंश शक्ति प्राप्त कर सकता है। 

लोकतांत्रिक तथा अमीर
व्लादिमीर पुतिन ने वास्तविक सत्ता में बने रहने का एक तरीका पा लिया है चाहे राष्ट्रपति के तौर पर या फिर प्रधानमंत्री के तौर पर। शी जिनपिंग ने अपनी ताकत को और बढ़ा लिया है, शब्द लिमिट्स को समाप्त कर दिया है तथा अगले वर्ष अपने तीसरे कार्यकाल की शुरूआत के लिए सब तैयारी कर ली है। किसी भी परिभाषा में दोनों देश लोकतांत्रिक नहीं हैं। न ही वे अमीर देशों की सूची में आते हैं। 

प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से विश्व के शीर्ष 10 अमीर देश हैं : 1. लक्समबर्ग, 2. आयरलैंड, 3. स्विट्जरलैंड, 4. नॉर्वे, 5. अमरीका, 6. आईसलैंड, 7. डेनमार्क, 8. सिंगापुर, 9. आस्ट्रेलिया तथा 10. कतर। कतर जो एक राजशाही है तथा सिंगापुर जो एक सीमित लोकतंत्र है के अतिरिक्त अन्य 8 देश पूरी तरह से लोकतांत्रिक हैं। 

इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई देश तथा इसके लोग अमीर तथा  लोकतांत्रिक बन सकते हैं चाहे उनका नेतृत्व एक शांत, संकोची तथा चेहराविहीन नेता कर रहा हो। जहां तक मेरी जानकारी है इनमें से किसी भी नेता पर घमंडी अथवा गुस्सैल होने के आरोप नहीं लगे हैं। 

अनुत्तरदायी होने की ओर झुकाव
एक लोकतंत्र में ‘मैं यह सब जानता हूं’ अथवा ‘मैं ही बचाने वाला हूं’ शब्दों के लिए कोई स्थान नहीं है। ये गुण तब आते हैं जब एक राजनीतिक दल अत्यंत बड़ा, अत्यधिक अमीर तथा अनुत्तरदायी बन जाता है। भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है तथा हम जानते हैं कि यह भारत में सबसे अमीर है। 

इसके पास लोकसभा में (543 में से) 300 सीटें हैं तथा राज्य विधानसभाओं में (4036 में से) 1435 सीटें हैं। यह (28 में से) 17 राज्यों में सत्ताधारी पार्टी है। यह इसे अत्यंत बड़ी बनाता है। भाजपा अत्यधिक अमीर भी है। एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक राइट्स के अनुसार 2019-20 में भाजपा ने अज्ञात स्रोतों से (सभी पार्टियों के लिए 3377 करोड़ रुपयों में से) 2642 करोड़ रुपए एकत्र किए जिनमें कुख्यात चुनावी बांड्स शामिल हैं। 5 राज्यों में चुनावों के अंतिम दौर में भाजपा ने 252 करोड़ रुपए खर्च किए जिनमें से 151 करोड़ केवल पश्चिम बंगाल में खर्चे गए। 

गत 7 वर्षों में भाजपा और अधिक अनुत्तरदायी बन गई है। यह संसद में चर्चा से बचती है, संसदीय समितियों द्वारा जांच के बिना  तथा आमतौर पर दोनों सदनों में चर्चा के बिना विधेयक पारित करती है, प्रधानमंत्री ने संसद तथा मीडिया को नजरअंदाज करना अपना धर्म बना लिया है तथा सरकार को राजनीतिक विरोधियों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं, पत्रकारों व छात्रों के खिलाफ सी.बी.आई., ई.डी., आयकर, एन.आई.ए., और अब एन.सी.बी. का इस्तेमाल करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। 

बहुत बड़ी, अत्यंत अमीर तथा अनुत्तरदायी होने के बावजूद भाजपा ने कई चुनाव जीते हैं। जहां यह हारी है वहां इसे विधायकों को खरीद कर आभारी गवर्नरों की सहायता से सरकार बनाने में कोई शर्म नहीं है। उन्होंने बड़े गर्व से इस घिनौनी कार्रवाई को ‘आप्रेशन लोटस’ यानी कमल अभियान का नाम दिया है। 

केवल हारने का डर
तीन कृषि कानून अध्यादेश के माध्यम से बनाए गए तथा संसद में चर्चा के बिना विधेयक में परिवर्तित कर दिए गए। किसानों ने 15 महीनों तक प्रदर्शन किया लेकिन सरकार झुकी नहीं। किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रण गंभीरतापूर्वक नहीं था तथा बातचीत राजनीति प्रेरित थी। किसानों तथा उनके समर्थकों को दिए गए नाम (खालिस्तानी, राष्ट्रविरोधी)तथा उनका अपमान अभद्र सीमा तक पहुंच गए। किसानों पर पुलिस का धावा जघन्य था। सुप्रीमकोर्ट के प्रति प्रतिक्रिया उपेक्षापूर्ण थी। इस सबके दौरान सरकार स्वयं आत्मसंतुष्ट तथा दंभी थी-जब तक कि उन तक खूफिया रिपोर्ट्स तथा सर्वेक्षणों के परिणाम नहीं पहुंचे। 

यह अत्यंत स्पष्ट है कि मोदी सरकार को केवल एक चीज का डर है-कोई चुनाव हारना। 30 विधानसभा सीटों के लिए हुए उप-चुनावों के परिणामों के कुछ घंटों के भीतर ही, जहां भाजपा केवल 7 सीटें ही जीत सकी, पैट्रोल तथा डीजल की कीमतें कम कर दी गईं। मंत्रिमंडल की सलाह के बिना मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने का अचानक लिया गया निर्णय स्पष्ट संकेत था कि इसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर तथा गोवा (इन सभी राज्यों में उनकी पार्टी का शासन है) में भारी पराजय और पंजाब में पूरी तरह से सफाया होने का डर था। 

उनके मंत्रियों द्वारा प्रधानमंत्री की ‘राजनीति’ के लिए प्रशंसा केवल इस बात का पर्दाफाश करती है कि वे बहरी चीयरलीडर्स की एक भीड़ बन गए हैं-जब मोदी ने कानून पारित किए तो वह एक राजनीतिज्ञ थे तथा जब उन्होंने कानून वापस लिए तो वह और भी बड़े राजनीतिज्ञ बन गए। भारत में लोकतंत्र फिर भी तब तक बचा रह सकता है जब तक भाजपा को कोई चुनाव हारने का डर है। इससे भी बेहतर तब होगा जब फरवरी 2022 में एक असल पराजय भाजपा को अपना कुछ घमंड तथा हेंकड़ी त्यागने को मजबूर कर दे।-पी. चिदम्बरम


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