बिहार चुनावों की हार-जीत पूरा ‘राजनीतिक परिदृश्य’ बदल देगी

punjabkesari.in Saturday, Oct 10, 2020 - 03:14 AM (IST)

नीतीश तथा नड्डा की तिकड़ी बिहार चुनावों के दौरान एक कठिन परीक्षण को झेलने वाली है। यह परीक्षण पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल तथा पुड्डुचेरी के 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए जमीन तैयार करेगा। देश में बिहार चुनावों की हार-जीत पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल कर रख देगी। इतना ही नहीं, हाथरस दलित दुष्कर्म मामले की छाया भी इन चुनावों पर पड़ेगी। 

चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा जोकि नीतीश विरोधी वोटों को अपने हक में कर सकती है, के अलग राग अलापने के बाद भाजपा -जदयू गठजोड़ को झटका लग सकता है। राजग 2014 के बाद विधानसभा चुनावों को एक के बाद एक खो रही है, इसमें एक कड़ी और जुड़ सकती है। नीतीश कुमार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं जो 2015 में राजग तथा कांग्रेस के सहयोग से सत्ता पर काबिज हुए थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में 32 आरोपियों का बरी होना जदयू -भाजपा गठबंधन की डूबती नाव को बचा सकता है। नीतीश कुमार की सरकार 15 वर्षों से प्रशासन के विरोध को झेल रही है। नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ लोग बाढ़ पीड़ितों को अपर्याप्त राहत, महामारी संकट, स्वास्थ्य मूलभूत ढांचे में कमी, बढ़ती बेरोजगारी से युवाओं में आक्रोश तथा प्रवासियों के खिलाफ सरकार की अनदेखी जैसे मामले झेल चुके हैं। 

चिराग पासवान जो अति महत्वाकांक्षी हैं, जिसके तहत वह नतीजों के बाद एक ‘किंग मेकर’ की भूमिका अदा करने की सोच रहे हैं, बिहार में राजग के बाहर होने का कारण बन सकते हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि लोजपा संसदीय बोर्ड का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथ मजबूत करने का है, जो यह स्पष्ट करता है कि भाजपा के साथ कोई रणनीतिक समझ बनी हुई है। वह भाजपा के सरकार के गठन में मददगार हो सकती है यदि नीतीश कुमार ज्यादा सीटें जीतने में असफल रहते हैं। रामविलास पासवान की अचानक मौत हो जाना चिराग के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। पासवान एक प्रभावशाली नेता थे। लोजपा के उम्मीदवारों को समुदाय में सहानुभूति वोट मिल सकते हैं। 

इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस इत्यादि का महागठबंधन लडख़ड़ा कर चल रहा है। मगर इसने  तेजस्वी यादव को सी.एम. का उम्मीदवार घोषित कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। राजद तथा कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति बन चुकी है। वहीं अन्य लोगों का मानना है कि बिहार के पूर्व सी.एम. लालू प्रसाद यादव के जेल में होने से राजद को झटका लग सकता है। लालू इस समय चारा घोटाला मामले में जेल में बंद हैं। यादवों के बीच यह बात भी पार्टी के लिए सहानुभूति की भूमिका अदा कर सकती है। 

2020 वर्ष 2010 जैसा नहीं
राजनीतिक पर्यवेक्षक इस समय मान रहे हैं कि नीतीश की यह भरपूर कोशिश है कि मुसलमानों के बीच उनकी प्रसिद्धि बनी रहे। उन्होंने राज्यसभा में 3 तलाक बिल का विरोध किया था। हालांकि जदयू ने इसके खिलाफ मत नहीं दिया था। बिहार में करीब 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, वहीं महादलित और अनुसूचित जनजाति मिलकर 15 प्रतिशत जनसंख्या का हिस्सा बनते हैं। अनुसूचित जनजाति 1.3 प्रतिशत है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि असुरक्षा तथा अलग-थलग होने के कारण मुसलमानों का झुकाव नीतीश कुमार की ओर हो सकता है क्योंकि राजद तथा कांग्रेस दोनों ही मुसलमानों के जीवन की सुरक्षा की गारंटी नहीं देते। भाजपा 15 प्रतिशत उच्च जाति का समर्थन हासिल कर सकती है। इसके अलावा अन्य 26 प्रतिशत जिसमें ई.बी.सी. तथा दलित वोटर आते हैं, जदयू का समर्थन कर सकते हैं। भाजपा तथा जदयू संयुक्त रूप से अन्य गैर-यादव ओ.बी.सी. समर्थन को आकॢषत कर सकते हैं। 

लोजपा 5 प्रतिशत दुसाध लोगों का समर्थन हासिल कर सकती है। इस समीकरण से राजग गठजोड़ के पास 46 प्रतिशत मत हैं। यह वोट प्रतिशत और भी ज्यादा बढऩे की संभावना है क्योंकि जीतन राम मांझी जैसे छोटे दलों का 2.8 प्रतिशत समर्थन भी राजग के हक में जा सकता है। बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों में ए.आई.एम.आई.एम. का प्रभाव भी कायम हो सकता है। वह राजद के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है। 

महागठबंधन के लिए समय छूटता जा रहा है
मोदी तथा नीतीश कुमार की जोड़ी  राजग के पक्ष में लहरों को अपनी तरफ मोडऩे में सक्षम है। वहीं विपक्षी पार्टियों के पास किसी करिश्माई नेता की कमी है जो भाजपा-जदयू से पार पा सके। भाजपा-जदयू में सीटों के बंटवारे को लेकर कोई परेशानी नहीं होगी। 
हालांकि राजद तथा कांग्रेस निश्चित तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ जलन रखते हैं। इनके लिए समय निकलता जा रहा है और चुनावी मुहिम प्रभावित हो सकती है। बिहार चुनाव महामारी की परछाईं के तले लड़े जाएंगे। यहां पर सामाजिक दूरी भी रखना लाजिमी होगा। पाॢटयों का पूरा ध्यान आभासी रैलियों तथा तकनीक के इस्तेमाल पर होगा। 

नीतीश कुमार को यह स्वीकार्य नहीं
राजनीतिक पंडितों में यह भी चर्चा है कि भाजपा राम मंदिर निर्माण, तीन तलाक, अनुच्छेद 370, सी.ए.ए., समान नागरिक संहिता जैसे प्रमुख मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगी और ऐसे मुद्दे नीतीश कुमार को स्वीकार नहीं होंगे क्योंकि उनकी पार्टी ज्यादातर इन मुद्दों पर अपना अलग ही नजरिया रखती है तथा इसके चलते दोनों दलों में नोक-झोंक हो सकती है। कृषि कानूनों  का फायदा प्रधानमंत्री उठाना चाहते हैं। मोदी के भाषणों में कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष का नजरिया भी राडार पर होता है। 

चुनावों के दौरान बाढ़, कोविड, बेरोजगारी तथा प्रवासी मुद्दे नीतीश को डराएंगे
विपक्षी पार्टियों का ध्यान कोरोना संकट, बाढ़ पीड़ितों को अपर्याप्त राहत तथा प्रवासियों की दयनीय स्थिति को भुनाने में होगा। विपक्ष ऐसे लोगों की सहानुभूति लेना चाहेगा। प्रवासियों के मामलों को लेकर नीतीश कुमार ने आलोचना झेली है। प्रवासी जी.एस.डी.पी. में अपना 35 प्रतिशत योगदान देते हैं।-के.एस. तोमर


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