गंगा-यमुना में तैरते शव, सिकुड़ते राज्य

punjabkesari.in Sunday, May 16, 2021 - 06:17 AM (IST)



कोविड प्रभावित उत्तर प्रदेश तथा बिहार में गंगा और यमुना के तटों पर शव तैर रहे हैं और कम दबे और बिखरे हुए शव दिखाई पड़ते हैं। आने वाले कई वर्षों तक ऐसे दर्दनाक चित्र हमारी आंखों के सामने रहेंगे। 

उत्तर प्रदेश तथा बिहार ऐसे राज्य हैं जहां से महान नदियां बहती हैं। गंगा और यमुना के अलावा हमारे पास ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा और कई अन्य नदियां भी हैं। ये नदियां कई राज्यों में से गुजरती हैं जिनके साथ-साथ कई बड़े शहर भी स्थापित हैं। हम गंगा-यमुना के अलावा बाकी नदियों में कोविड के कारण मरे लोगों के शव क्यों नहीं देख पाते।
निश्चित तौर पर यह नदियों की गलती नहीं है। हमारे राष्ट्र में बहने वाली सभी नदियों को देवी का दर्जा दिया गया है जो जीवन बचाने वाली हैं। ले-देकर ऐसे क्षेत्रों और राज्यों में धार्मिक जनसां ियकी भी प्रबल है। 

यमुना उत्तर प्रदेश में बहने से पूर्व हरियाणा को सिंचित करती है। पंजाब में सतलुज, ब्यास और रावी में ऐसे दृश्य हमने नहीं देखे हैं। हालांकि पंजाब ने कोविड को लेकर दुर्भाग्यवश ऊंची मौत दर देखी है। मगर इस राज्य में एक भी शव तैरता दिखाई नहीं दिया। तो इन बातों के लिए हमें किसको आरोप देना चाहिए। हम लोगों पर कभी भी आरोप डाल नहीं सकते। कुछ राज्यों में लोग बेहद गरीब, असहाय और उ मीद रहित हैं। इसी कारण वे अपने परिजनों के शवों को इस तरह बहा रहे हैं। उनके पास इन्हें जलाने के लिए लकड़ी नहीं, श्मशानघाट नहीं और न ही उनके पास पुरोहित को देने के लिए पैसे हैं? 

क्षेत्र, धर्म, पर परा और जातीयता को नकारते हुए हमारे पास राजनीति और अर्थव्यवस्था बचती है। यह व्यवस्था एक विचार है। अच्छी या बुरी अर्थव्यवस्था राजनीति से निकलती है। यू.पी. और बिहार की बात ही नहीं 4 अन्य ङ्क्षहदी भाषाई  राज्य भी ऐसे हैं जहां स्थिति ठीक नहीं। छत्तीसगढ़ और झारखंड में आर्थिक तौर पर स्थिति समान है। राजस्थान और मध्य प्रदेश का भी ऐसा ही हाल है। यहां पर प्रति व्यक्ति आय 1500 डालर से भी कम है जोकि राष्ट्रीय औसत 2200 डालर से भी कम है। 


ज्यादातर ङ्क्षहदू धर्म के पुरातन पवित्र स्थल इन्हीं क्षेत्रों में हैं। हालांकि आज यह हिंदुत्व राजनीति के घर बन चुके हैं। 1989 तक यह कांग्रेस के अभेद्य किले थे। उसके बाद 2014 से यह भाजपा के गढ़ बने। प्रत्येक भारतीय प्रधानमंत्री जोकि अपनी पाॢटयों के प्रभावशाली नेता थे, उत्तर प्रदेश से ही संबंध रखते थे। नेहरू, इंदिरा, राजीव गांधी, वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। मोदी भी बड़ोदरा से वाराणसी पहुंचे। कुछ स्पष्ट कारणों से हम मोरारजी देसाई, नरसि हाराव तथा मनमोहन सिंह को इससे बाहर रख रहे हैं। 

हिंदी भाषाई क्षेत्र तय करते हैं कि भारत पर कौन शासन करेगा? यहां पर  साक्षरता, बच्चों में मृत्यु दर, प्रति व्यक्ति आय दर बेहद कम है। हमने 2018 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें दर्शाया गया था कि पाकिस्तान जितनी जनसं या वाले उत्तर प्रदेश राज्य में गरीबी के स्तर के साथ-साथ सामाजिक संकेतक भी हैं। प्रति व्यक्ति आय को छोड़ कर इस राज्य ने पाकिस्तान को कुछ अंतर से पछाड़ा है। दशकों से बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य हैं। प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत के शीर्ष 20 राज्यों में चारों में से एक भी शामिल नहीं। राजस्थान (22), मध्य प्रदेश (27), उत्तर प्रदेश (32), बिहार (33) स्थान पर है। 

2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या वृद्धि के मामले में ये चार राज्य शीर्ष पर हैं। 2001 से लेकर 11 तक बिहार में 25 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई। वहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश और यू.पी. में यह वृद्धि दर 20 से 21 प्रतिशत रही। प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से अन्य राज्यों के चित्र बदल जाते हैं। गोआ, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, पुड्डुचेरी, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से अच्छी स्थिति में हैं। लोकसभा की 543 सीटों में से 204 सीटें इन चार बीमार राज्यों में से आती हैं। भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में ऐसा किया है और कांग्रेस 1984 तक यह करती रही है। इस बात की पूरी गारंटी होती है कि दिल्ली पर शासन यहीं से किसी व्यक्ति का होगा। 

कांग्रेस हो या भाजपा इन राज्यों के नेता यही बात करते हैं कि आप उन्हें धर्म, जाति, राष्ट्रवाद के नाम पर सत्ता दिलाएं और हम आपको दुख संताप देंगे। महामारी के दौरान 12 महीनों में यहां के लोग अपने घरों की ओर अपना जीवन बचाने के लिए भागे जिनके पास अपने माता-पिता, बच्चों, रिश्तेदारों के अंतिम संस्कार के लिए अब पैसा नहीं है। इसीलिए उनके पास शवों को गंगा-यमुना में बहाने के सिवाय कोई चारा नहीं। 

दक्षिण राज्यों की बात करें तो वहां पर अपनी ही राजनीति है। उनके पास उनके क्षेत्रीय नेता हैं जो उन्हें एक बढिय़ा प्रशासन देते हैं। हालांकि कुछ नेता भ्रष्ट हो सकते हैं मगर वे योग्य ढंग से शासन करते हैं क्योंकि उनके मतदाता उनकी कारगुजारी के आधार पर उन्हें चुनते हैं, न कि पहचान के तौर पर।-शेखर गुप्ता 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News