बेटियां तो सबकी सांझी होती हैं, बीच में धर्म कहां से आया

punjabkesari.in Saturday, Jul 03, 2021 - 04:23 AM (IST)

कश्मीर में सिख समाज की दो लड़कियों का जब्री मतांतरण कर निकाह करने की घटना ने देश के हिन्दू-सिख समाज को अंदर तक झकझोर दिया। एक बेटी, जिसकी उम्र मात्र 18 वर्ष है, उसका जबरन धर्म परिवर्तन कर पहले से ही दो शादियों वाले एक 46 वर्षीय श स से निकाह करवाया गया। 

घाटी में ऐसी घटनाओं का पुराना इतिहास है, पिछले एक महीने में ही ऐसी चार बेटियों का जबरन धर्म परिवर्तन करके निकाह हुआ है। पूरे भारत के हिन्दू धार्मिक महापुरुषों के अलावा राजनीतिक नेताओं ने भी इसको जघन्य अपराध बताया।

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, सिख संगठन ‘जागो’ के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके, मनजिंद्र सिंह सिरसा, शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल, प्रवक्ता डा. दलजीत सिंह चीमा आदि सिख समुदाय के नेताओं ने एक स्वर में ऐसी घटनाओं की निन्दा की है तथा दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ-साथ केन्द्र सरकार से मांग की है कि जिस प्रकार उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में एंटी लव जेहाद या अंतरधार्मिक विवाह व जबरन मतांतरण के खिलाफ कानून लाया गया है, वैसा ही कानून ज मू-कश्मीर में भी लाया जाए। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह तथा कई अन्य केन्द्रीय मंत्रियों ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए, सरकारी तन्त्र के अलावा, निजी तौर पर भी हर तरह के प्रयास, मदद तथा कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया है। सवाल पैदा होता है कि आखिर कब तक हमारी हिन्दू-सिख बहनों के साथ ऐसा पाप होता रहेगा। औरत को भोग की वस्तु मानने की संस्कृति वाले समाज, मुगलों और फिर अंग्रेजों की गुलामी के शासन काल में तो ऐसा होना स्वाभाविक था, परन्तु आजाद भारत में ऐसी घटनाएं तन-मन को अशांत करती हैं और यह सब अकेले कश्मीर में ही नहीं, देश के अन्य प्रांतों, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, केरल आदि में भी योजनाबद्ध तरीके से एक साजिश के तहत इस कृत्य को अंजाम दिया जा रहा है। 

केन्द्र की मोदी सरकार ने इसका सप्त संज्ञान लेते हुए जहां देश की बहनों-बेटियों की रक्षा के लिए कुछ प्रदेशों में सख्त कानूनों को लागू किया है, वहीं नागरिकता संशोधन विधेयक पारित कर, पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बंगलादेश की बहू-बेटियों के सम्मान की रक्षा करते हुए उनके पुनर्वासन की व्यवस्था भी की है। इन कानूनों को लागू करने के बाद, इन प्रदेशों में लव जेहाद और धर्म परिवर्तन की घटनाओं में कमी दर्ज की गई है। देश ही नहीं, विदेशी माताओं और बहनों को पूजनीय और स मान का दर्जा देने वाले हिन्दू-सिख समाज के साथ सैंकड़ों वर्षों तक ऐसे बर्ताव के लिए कौन जि मेदार है? कुछ नेताओं, विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा लिखे लेखों तथा उनके वक्तव्यों का अध्ययन करने पर लगता है कि कहीं धर्म और क्षेत्रीय, केंद्रित राजनीति की संकीर्ण मानसिकता ही तो इसकी जिम्मेदार नहीं है? 

हिन्दू-सिखों में सांझे देवी-देवताओं, गुरुओं, ग्रंथों आदि के कारण आपस में सदियों से रोटी-बेटी का रिश्ता रहा है। ज्यादातर तीज-त्यौहार, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान एक जैसा है।  भारत में देश की ‘बेटी’ का धर्म कोई भी हो, कम उम्र की बेटियों को कंजक के रूप में, बड़ी को बहन और बुजुर्ग को माता के रूप में स मान देना भारत की स यता तथा संस्कृति रही है। फिर क्यों देश के अंदर या बाहर, जब किसी हिन्दू बेटी के साथ ऐसा जघन्य अपराध होता था तब इन धार्मिक नेताओं के स्वर तथा भावनाएं भी अलग होती थीं और प्रतिक्रिया भी मिली-जुली होती थी?

उदाहरण के तौर पर, हिन्दू बेटी के धर्म परिवर्तन पर उपरोक्त एक नेता ने अपने वक्तव्य में कहा था, कि कैसे कोई धर्म इतना कमजोर हो जाता है कि उसको कानून का सहारा लेना पड़े। नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करने तथा उत्तर प्रदेश तथा बिहार में एंटी लव जेहाद या अंतर-धार्मिक विवाह व जबरन मतांतरण के खिलाफ कानून बनाने पर इन नेताओं के बयानों में विरोध के स्वर क्यों थे? 

सिंघु बॉर्डर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल ‘योगराज’ ने हिन्दू बेटियों के खिलाफ अपशब्द कहे थे,तो इनमें से किसी के भी मुख से आह के शब्द नहीं निकले। कुछ तो इस पर तालियां बजाते हुए गर्व महसूस कर रहे थे। क्यों? क्योंकि हमने बेटी-बेटी में अंतर रखना शुरू कर दिया। बेटियों को धर्म का चश्मा पहन कर देखना और प्रतिक्रिया देना ही हमारी सबसे बड़ी भूल थी। सिख विद्वान डा. अनुराग सिंह तथा सिख इतिहासकार हरविंद्र सिंह खालसा के मुताबिक कश्मीर में मतांतरण के पीछे धर्म की राजनीति और प्रशासनिक कमी है। प्रशासनिक कमी तो धारा 370 के कारण थी यह बात समझ आती है और उसका हल भी हो गया, परन्तु धर्म की राजनीति करने वालों को आज अंदर झांक कर आत्ममंथन करने की जरूरत है। 

धर्म की राजनीति का दूसरा उदाहरण है कि भाई मनजीत सिंह जीके ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर ज मू-कश्मीर में सिख भाइयों के लिए कश्मीरी पंडितों जैसी सुविधाओं की मांग की है। अच्छी बात है, ये सुविधाएं जरूर मिलनी चाहिएं। सिख समाज का घाटी के लिए बड़ा योगदान है, पर कितना अच्छा होता अगर भाई मनजीत सिंह जी दंगा पीड़ित सिख भाइयों की तरह, पंजाब के आतंक पीड़ित हिन्दू भाइयों तथा विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए भी ऐसी मांग रखते। 

‘सरबत दा भला’ का मंत्र जपने वाले समाज के अग्रणी क्यों सिर्फ एक धर्म की ही बात करते हैं? कुछ नेता एक कदम आगे बढ़ कर ओछी राजनीति करते हुए ङ्क्षहदू समाज को तोडऩे की मानसिकता से एक और पाप करते हैं। वे गुरुओं की कुर्बानियों और इतिहास को धत्ता बताते हुए, अपने तुच्छ स्वार्थों के लालच में ऐसा प्रमाणित करने की कोशिश करते रहे हैं कि सदियों से सिख समाज हिन्दुओं की बजाय मुसलमानों के ज्यादा नजदीक रहा है और शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन में लंगर सेवा देकर उन्होंने इसे सिद्ध करने का असफल प्रयास भी किया। 

आज विचार करने की आवश्यकता है कि देश, धर्म और समाज को नुक्सान पहुंचाने वाली घटनाओं को जब जातिगत दृष्टि से देख कर प्रतिक्रिया देंगे तो उस आग का असर धीरे-धीरे अपने घर तथा परिवार तक पहुंचना कुदरती है। अपनी सोच को तंगदिली से बाहर निकाल कर आज इन कानूनों को ‘केवल कश्मीर’ की बजाय, पूरे भारत में लागू करने की मांग रखनी चाहिए, जिससे सारे देश की बेटियों को संरक्षण मिल सके। मेरे विचार में देश, धर्म और समाज के उत्थान के लिए हिंदू तथा सिख समाज को आपस में मिल-बैठ कर ऐसे नाजुक मुद्दों पर चर्चा करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘सब का साथ, सब का विकास, सबका विश्वास’ के मंत्र को सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए।-प्रवीण बांसल(पूर्व सीनियर मेयर, लुधियाणा)


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