राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगना जरूरी

punjabkesari.in Thursday, Aug 12, 2021 - 04:35 AM (IST)

भारतीय राजनीति में एक बहुत चिंताजनक रुझान यह है कि ऐसे राजनीतिज्ञों का चुनाव लडऩा और यहां तक कि चुनाव जीतना बढ़ता जा रहा है जो आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं। एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉ र्स (ए.डी.आर.), जिसे उम्मीदवारों  द्वारा दाखिल शपथ पत्रों के आधार पर आंकड़ों की समीक्षा करने में महारत हासिल है, द्वारा तैयार आंकड़ों में इस ओर इशारा किया गया है कि ऐसे सांसदों की सं या जिनके खिलाफ आपराधिक मामले घोषित हो चुके हैं, की सं या में 2009 में 30 के मुकाबले 2014 में 34 तथा 2019 में 43 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है।  इनमें वह प्रतिशत भी शामिल हैं जिनके खिलाफ अपराध के गंभीर आरोप लगे हैं जिनकी संख्या 2009 में 14 से बढ़कर 2014 में 21 और 2019 में 29 प्रतिशत तक पहुंच गई है।  

इतनी ही चिंताजनक बात यह है कि ये लगभग सभी राजनीतिक दलों से संबंधित हैं जिनमें भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस तथा वामदल शामिल हैं। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी तथा तृणमूल कांग्रेस जैसे क्षेत्रीय दलों का रिकार्ड भी खराब है। उदाहरण के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 427 उम्मीदवारों ने 2020 में बिहार के चुनाव लड़े थे जिनमें 104 ऐसे उ मीदवार शामिल थे जिन्हें राजद ने तथा 77 को भाजपा ने मैदान में उतारा था। सिस्टम का मजाक उड़ाते हुए यह रुझान बढ़ता जा रहा है ताकि राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाएं तथा अपनी ही पार्टी के लोगों के खिलाफ ऐसे मामले हटा दिए जाएं जो इस बात पर निर्भर करता है कि कौन-सी पार्टी सत्ता में है। 

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार जब आपराधिक मामला दर्ज हो जाता है तो उसका निर्णय अदालतों को करना होता है लेकिन आमतौर पर ऐसे मामलों में सरकारें अभियोजक होती हैं और उसके अपने समर्थकों के खिलाफ आरोप वापस ले लिए जाते हैं। यह सच है कि कई बार राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ झूठे अथवा ओछे मामले दर्ज करवाए जाते हैं लेकिन उन पर निर्णय सुनाने तथा दोषी को सजा देने का अधिकार अदालत पर छोडऩा बेहतर होगा-जिनमें वे लोग भी शामिल हों जिन्होंने झूठे मामले दर्ज करवाए हैं।अब देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को दो महत्वपूर्ण निर्देशों के अंतर्गत ऐसे मामलों का मजबूती से सामना करने का प्रयास किया है। राजनीति के अपराधीकरण पर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीमकोर्ट की 2 अलग पीठों ने इस मामले को उठाया है तथा अधिकतर राजनीतिक दलों के रवैये पर सख्त टिप्पणियां की हैं। 

यह कहते हुए कि राजनीति के अपराधीकरण को लेकर देश अपनी सहनशीलता खो रहा है, जस्टिस रोहिटन नारीमन तथा जस्टिस बी.आर. गवई पर आधारित एक पीठ ने कहा कि वह विधि निर्माताओं को अंतर्रात्मा की अपील कर रही है ताकि राजनीति के अपराधीकरण के साथ प्रभावपूर्ण तरीके से निपटा जा सके। पीठ ने 8 राजनीतिक दलों को जुर्माना किया जिनमें अदालत द्वारा पहले से ही दिए गए निर्देशों के अनुसार बिहार चुनावों में अपने उ मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ब्यौरे दाखिल नहीं करने वाली कांग्रेस तथा भाजपा भी शामिल है। 

उसी दिन भारत के मु य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना की अध्यक्षता में सुप्रीमकोर्ट की एक पीठ ने एक अन्य महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिया। इसने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि किसी भी सांसद अथवा विधायक के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला संबंधित हाईकोर्ट की स्वीकृति के बिना वापस नहीं लिया जा सकता। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनमें राज्य सरकारों ने अधीनस्थ न्यायालय से ऐसे मामलों को वापस ले लिया जहां ये मामले मुकद्दमे की प्रक्रिया में थे। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा उत्तराखंड शामिल हैं। 

अदालत ने न केवल यह निर्देश दिया कि ऐसे मामलों के मुकद्दमे की सुनवाई कर रहे जजों को स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि यह भी संकेत दिया कि ऐसे मामलों से तेजी से निपटने के लिए वह विशेष अदालतों के गठन बारे भी सोच रही है। इसने सी.बी.आई. को भी चेतावनी दी जिसे पहले अदालत ने ऐसे मामलों के ब्यौरे की स्थिति बारे रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था जिनकी जांच एजैंसी चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ कर रही थी। 

राजनीति के अपराधीकरण के बढ़ते हुए रुझान पर अंकुश लगाने के लिए इन सुधारों की अत्यंत जरूरत है। संभवत: यह ऐसे राजनीतिक दलों के अनुकूल नहीं होगा जो सत्ता प्राप्ति के लिए धन तथा बल शक्ति पर निर्भर है। यह भी एक कारण है कि क्यों सामान्य मगर अधिक सक्षम लोग राजनीति में दाखिल नहीं हो रहे। जब राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए न तो राजनीतिक दल, न विधायिका तथा न ही कार्यकारिणी कुछ महत्वपूर्ण कर रही है, सिस्टम में सडऩ को रोकने के लिए अब सारी आशाएं न्यायपालिका पर हैं।-विपिन पब्बी
 


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