कोविड -19  और बुजुर्ग :  पारिवारिक संरचनाओं की अहम भूमिका

punjabkesari.in Tuesday, May 11, 2021 - 04:18 AM (IST)

मुझे बचपन में सबसे बड़ी खुशी इस बात से मिली कि मेरा लालन-पालन एक संयुक्त परिवार में हुआ जिसमें बड़े-बुजुर्ग, चचेरे भाई-बहन सब साथ रहते थे। घर में अधिक लोगों के मौजूद होने की वजह से हम अपने दुखों और चिंताओं को अक्सर भूल जाते थे।

घर में कोई न कोई ऐसा व्यक्ति हमेशा मौजूद रहता था जो हमारे बोझ को कम कर देता था, चाहे वह बोझ शारीरिक हो या भावनात्मक।  यही स्थिति मेरे कई साथियों के साथ भी थी; लेकिन समय के परिवर्तन के साथ परिवारों के ढांचे में बदलाव आ रहा है और संयुक्त परिवार, जो एक मानक हुआ करता था, शहरों तथा गांवों दोनों में ही कम होते जा रहे हैं।  

मेरी राय में परिवार के इस ढांचे में परिवर्तन का सबसे बड़ा प्रभाव बुजुर्गों पर पड़ा है। बुजुर्गों को परिवारों के एकल होने की वजह से अपने बच्चों, पोते-पोतियों के दूर-दराज के स्थलों पर काम करने/पढ़ाई करने की वजह से अलग रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। बुजुर्गों के अकेलेपन के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है जिसकी वजह से उन पर अपनी देखभाल करने का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।  इस संबंध में किए गए कई मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से भी यह पता चला है कि बुजुर्गों के बीच अकेलापन, चिंता, तनाव तथा उनके बीच अन्य कार्यमूलक विकृतियों का आपस में सह-संबंध है।  इससे यह बात स्पष्ट होती है कि परिवार और जीवन की परिस्थितियों का स्वास्थ्य पर काफी अधिक प्रभाव पड़ता है। 

यदि यह बात पहले नहीं दिखाई देती थी, तो कोविड-19 वैश्विक महामारी ने आज अकेले रह रहे बुजुर्गों की इस स्थिति की पूर्ण वास्तविकता का चित्रण कर दिया है।  चूंकि भारत इस वैश्विक महामारी की दूसरी लहर का सामना कर रहा है, अत: अधिक सं या में बुजुर्ग अपने आपको अकेला महसूस कर रहे हैं और उन्हें अकेले ही रह कर इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।  

उन्हें अपने आसपास रहने वाले लोगों, स्थानीय समुदाय के सेवा-भाव अथवा खुदरा सेवा-प्रदाताओं, जो उन्हें अनिवार्य वस्तुओं की सप्लाई करते हैं, का सहारा लेना पड़ रहा है।  यदि वे यह नहीं करते हैं तो उन्हें अपने सामान और नियमित दवाइयों की खरीद करने के लिए बाहर जाना पड़ेगा जिससे उनके संक्रमित होने का खतरा बढ़ सकता है। इस महामारी के दौर में बुजुर्गों को अपने परिवार के सदस्यों का साथ न मिल पाने की कमी खल रही है। 

बुजुर्ग नागरिकों की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के अतिरिक्त परिवार एक असमानांतर भावनात्मक सहायता प्रणाली की व्यवस्था करता है।  चिकित्सा की दृष्टि से भी यह प्रमाणित हो चुका है कि किसी व्यक्ति की भावनाओं का उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अत: संकट की इस घड़ी में हम बुजुर्गों की देखभाल करें और उनके साथ प्यार करें जिसके वे हकदार हैं। पोते-पोतियों का प्यार और परिवार का साथ उनके लिए इस संकट की घड़ी से उभरने में रोग-प्रतिरोधक बूस्टर के रूप में कार्य करेगा। 

इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौर में माता-पिता की अपने बच्चों के प्रति चिंता में कई गुना वृद्धि हुई है। उनकी यह चिंता न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य और वायरस से बचाव करने तक ही सीमित है अपितु उनकी भावनाओं और उनके मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ी हुई है। महत्वपूर्ण बात, विशेष रूप से एकल परिवारों में बच्चों को अपनी भावनात्मक और सांस्कृतिक पूर्ति के लिए अपने दादा-दादी के साथ रहने की तमन्ना होती है। 

यह जरूरत इस वैश्विक महामारी के काल में और अधिक हो गई है जब अकेलापन नौजवान  बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। बच्चों को स्कूल नहीं जाने दिया जा रहा है जिसकी वजह से उन्हें कोई सामाजिक और प्रायोगिक ज्ञान नहीं मिल पा रहा है। एक-दूसरे की चिंता को सांझा करने के लिए सभी रास्ते लगभग बंद हो गए हैं और वे अधिकाधिक वर्चुअल मीडियम तक ही सीमित रह गए हैं। दादा-दादी का अनुभव और उनका साथ इन नौजवान बच्चों की काफी अधिक सहायता कर सकता है और उन्हें प्रेरित कर सकता है। वे ज्ञान का अपार भंडार हैं और यह सही कहा गया है कि वे जब हंसते हैं तो उनके चेहरे की लकीरें ही उनकी पीढिय़ों की गाथाओं का व्या यान करती हैं जिसका कोई पुस्तक स्थान नहीं ले सकती है। 

हमारे समाज में पारिवारिक संबंध और सहायता प्रदान करने की एक प्राचीन संस्कृति रही है। हम इस संस्कृति के साथ काफी लंबे समय से जुड़े हुए हैं और हमें पूर्ण विश्वास है कि समूचा विश्व एक परिवार (वसुधैव: कुटु बकम) है। यह बात कोविड-19 वैश्विक महामारी के आने से पूर्णत: सच हो गई है। मानवता के दीर्घ विकासात्मक इतिहास में कभी भी ऐसा क्षण नहीं आया जब विश्व को ऐसे संकट और संघर्ष का एक साथ मिलकर सामना करना पड़ा हो। एक ऐसा समाज जो पारिवारिक संबंधों को बहुत अधिक मान्यता देता है, उसे अपने बुजुर्गों, जो सबसे अधिक असुरक्षित वर्ग है, का इस मुश्किल घड़ी में साथ देने की जरूरत है।-रतन लाला कटारिया  
 


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