श्रीलंका में तख्तापलट, देश चलाने का संकट गहराया

punjabkesari.in Tuesday, Jul 12, 2022 - 05:12 AM (IST)

श्रीलंका में भारी जनाक्रोश है और तख्तापलट की इबारत लिख दी गई है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का आखिरी दाव विफल हो गया है। बड़े भाई महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद अपने परिवार को बचाने में लगे गोटबाया ने रानिल विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन वह देश को वित्तीय संकट से उबारने में असफल सिद्ध हुए। 

श्रीलंका अभूतपूर्व राजनीतिक संकट से गुजर रहा है और गोटबाया और विक्रमसिंघे के इस्तीफे का ऐलान हो चुका है और अब संसद को तय करना है कि तुरंत सत्ता कौन संभालेगा या चुनाव कराए जाएं। प्रमुख विपक्षी दल समाजी जन बलगेवाया (एस.जे.बी.) पर सबकी निगाहें टिकी हैं, जिसने शुरू से इस उग्र आंदोलन का समर्थन किया था। 

श्रीलंका आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है और जनता पिछले 2 महीने से सत्ता पलटने पर आमादा है। तेजी से हो रहे घटनाक्रमों के बीच मई में उग्र भीड़ ने पिछले 2 दशकों से श्रीलंका की सत्ता पर काबिज महिंदा राजपक्षे के सरकारी प्रधानमंत्री आवास को आग के हवाले कर दिया और वह परिवार समेत त्रिकोमाली में नौसैनिक अड्डे पर शरण लेने के लिए मजबूर हो गए। उग्र भीड़ ने कोलंबो समेत अनेक स्थानों पर 2 दर्जन से अधिक मंत्रियों के घरों में आग लगा दी थी। उग्र भीड़ श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का इस्तीफा मांग रही थी, लेकिन  विक्रमसिंघे के प्रधानमंत्री बनने के बाद उसे कुछ उम्मीद थी, लेकिन वह स्थिति संभालने में नाकाम रहे। 

श्रीलंका में क्रांति की जो बयार चल रही है उसमें उग्र प्रदर्शनकारियों में अनेक छात्र नेता शामिल हैं, जिनको प्रदर्शन करने से रोकने के लिए पुलिस ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था लेकिन उसे राहत नहीं मिली। राजरत स्टूडैंट्स यूनियन के अध्यक्ष लाहिरू फर्नान्डो अन्य  छात्र नेताओं के साथ लगातार प्रदर्शन में शामिल रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने नई पीढ़ी से पंगा लेकर गलत किया और अब पूरा देश हमारा समर्थन कर रहा है। उनके साथ एक दर्जन से अधिक छात्र संगठनों के नेता इन प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं, जो राजपक्षे परिवार के खिलाफ आंदोलन का रूप ले चुका है। 

महिंदा राजपक्षे को जिस तरह कोलंबो छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ा, उससे साफ संदेश गया है कि अब श्रीलंका की जनता उनको और उनके परिवार को सत्ता से पूरी तरह बेदखल होने के लिए मजबूर कर देगी। श्रीलंका की एक अदालत ने महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार के सदस्यों के देश छोड़ कर जाने पर रोक लगा दी है। 

श्रीलंका में जनाक्रोश की जड़ में जाएं तो पता चलता है कि राजपक्षे सरकार देश के आर्थिक और वित्तीय हालात पर काबू पाने में पूरी तरह से नाकाम हो गई तथा पैट्रोल, डीजल, दवाएं और खाने-पीने की वस्तुएं तक उपलब्ध नहीं करा पा रही थी। उसका विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा है। यही नहीं लगभग 2 साल के कोरोनाकाल ने इस देश की आर्थिक रीढ़ माने जाने वाले पर्यटन उद्योग को नष्ट कर दिया, जिस कारण रोजगार का संकट भी गहरा गया। 

श्रीलंका के ताजा घटनाक्रम से भारत ङ्क्षचतित है और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत पहले भी श्रीलंका की मदद करता रहा है और आगे भी करेगा। भारत पड़ोस प्रथम की नीति  का पालन करते हुए उसकी निरंतर मदद कर रहा है और श्रीलंका को वित्तीय संकट से उबारने के लिए साढ़े 3 अरब डालर की मदद दी है तथा दवाएं और अनाज मुहैया करा रहा है। लेकिन श्रीलंका की आर्थिक बदहाली के लिए उसकी ढुलमुल विदेश नीति जिम्मेदार है। उसने चीन के साथ नाता जोड़ा और अपनी बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत दी। इसके एवज में चीन से उसे भारी कर्ज भी मिला, लेकिन कर्ज तो कर्ज ही होता है। चीन ने उसे अपने आर्थिक मकडज़ाल में फंसा लिया। 

श्रीलंका ने ताजा आर्थिक संकट से उबरने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेने की कोशिश की, लेकिन उसने वहां की राजनीतिक अस्थिरता का हवाला देकर कर्ज देने के लिए शर्तें लगाई हैं। उसने श्रीलंका सरकार से कर्ज के इस्तेमाल के तरीके को लेकर सवाल खड़े किए हैं, जिससे कर्ज मिलने की प्रक्रिया लंबी खिचने की पूरी संभावना है। 

गोटबाया राजपक्षे ने विपक्ष को अंतरिम सरकार में शामिल होने का न्यौता दिया था, लेकिन प्रमुख विपक्षी दल समाजी जन बलगेवाया के नेता सजित प्रेमदास ने इसका नेतृत्व करने के लिए शर्तें लगाई हैं, जिसमे राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकार में तय अवधि में कटौती करने पर जोर दिया गया है। 225 सदस्यीय संसद में एस.एल.पी.पी. के बाद एस.जे.बी. सबसे बड़ी पार्टी है और उसके 54 सदस्य हैं। एस.एल.पी.पी. गठबंधन की 145 सीटें हैं, जिसमें घटक दलों की 42 सीटें शामिल हैं। पाकिस्तान की तरह वहां पर भी पूरा विपक्ष एकजुट है और प्रदर्शनों की अगुवाई कर रहे छात्र नेता उनके साथ खड़े दिख रहे हैं। 

पिछले राष्ट्रपति चुनाव के वक्त  रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री थे और काफी हिचकिचाहट के बाद उन्होंने  सजित प्रेमदास की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का समर्थन किया था। गोटबाया जनाक्रोश के आगे आत्मसमर्पण करने को मजबूर हो गए हैं और खुद को एवं अपने खानदान को बचाने की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं। सजित प्रेमदास को जनसमर्थन मिल रहा है और राजनीतिक गणित को देखते हुए इस बार उनकी स्थिति ज्यादा मजबूत दिख रही है। श्रीलंका को संकट से निकालने के लिए सर्वदलीय सरकार पर एकराय बनती दिख रही है और उसकी सूझबूझ देश को आर्थिक बदहाली से मुक्ति दिला सकती है।-अशोक उपाध्याय 
 


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