उत्तर प्रदेश के चुनाव बनाम 2024 के लिए देश का मूड

punjabkesari.in Friday, Feb 04, 2022 - 06:16 AM (IST)

'हमारे सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावों का परिणाम इस देश का भविष्य निर्धारित करेगा!’ यह बात माननीय केंद्रीय गृहमंत्री अमित भाई शाह ने एक सप्ताह पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट नेताओं के साथ एक बैठक के दौरान कही थी। उन्होंने कहा ‘उत्तर प्रदेश के चुनावों को किसी भी अन्य विधानसभा चुनावों की तरह न लें। उत्तर प्रदेश के चुनाव देश में मूड को प्रतिबिंबित करते हैं। यह आपको बताएंगे कि 2024 में क्या होने वाला है!’ 

प्रतिष्ठित चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, जिनकी चुनावों बारे भविष्यवाणियां सही रही हैं, इससे सहमत नहीं हैं। कुछ दिन पूर्व एक चैनल पर बात करते हुए उन्होंने महसूस किया कि भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीत सकती है लेकिन इस उपलब्धि को 2024 के लोकसभा चुनावों में शायद दोहरा नहीं सकेगी। मेरे जैसा एक नौसिखिया बिल्कुल विपरीत राय रखता है कि भाजपा राज्य में पराजित हो सकती है लेकिन केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में शायद ही कोई प्रतिस्पर्धा है। 

लोकसभा चुनाव एक तरह से राष्ट्रपति चुनाव की तरह है जहां मोदी जी सभी आकांक्षावानों में सबसे ऊपर हैं, जिनमें राहुल, ममता दीदी तथा अरविंद केजरीवाल शामिल हैं। इनमें से कोई भी और न ही कोई जाने-माने अन्य नेताओं के पास प्रधानमंत्री मोदी जैसी वाकपटुता तथा हाजिर जवाबी नहीं है। नोटबंदी, नौकरियों के अभाव, रहन-सहन की बढ़ती लागत, कृषि कानूनों पर उठे विवाद तथा कई अन्य कारणों के बावजूद वे मोदी के मुकाबले में नहीं ठहरते। लोकसभा चुनावों के दौरान लोगों के मन में बाहरी आक्रमण से सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा होगी। इस मामले में मोदी के अलावा कोई अन्य नहीं ठहरता। 

प्रत्येक सुबह हमारी बिल्डिंग में रह रहे 5 सेवानिवृत्त आई.पी.एस. अधिकारी इमारत परिसर में सैर के लिए निकलते हैं। हम चक्कर लगाते रहते हैं, कई बार आधे घंटे के लिए या एक घंटे के लिए अथवा इससे भी दोगुने समय तक। हम गुजरे हुए दिनों की बात करते हैं कि हमारे देश में क्या हो रहा है और दुनिया में क्या घट रहा है। 

मगर गत सप्ताह से हमारी बातचीत उत्तर प्रदेश में चुनावों के गिर्द घूमती रहती है। पांचों में से 2 अन्य तीन के मुकाबले इसमें ज्यादा योगदान डालते हैं क्योंकि वे उत्तर प्रदेश से हैं, विशाल राज्य के 2 अलग-अलग जिलों से तथा वे आपस में संबंधी तथा मित्र हैं। जब योगी मंत्रिमंडल में दो ओ.बी.सी. मंत्रियों ने नाटकीय ढंग से बाहर निकलने की घोषणा की तो हम भौंचक्के रह गए। मगर शीघ्र ही नेहरू गांधी परिवार की भीतरी मंडली से एक पडरौना का राजा एक कूर्मी (ओ.बी.सी.) नेता था जिसने उतने ही नाटकीय ढंग से उस विचारधारा को गले लगाने की घोषणा की जिसके लिए गांधी बुरी तरह से तड़प रहे थे। क्या हो रहा था? 

हमारे दो सहयोगी सुविधा स पन्न श्रेणी से संबंधित हैं। इसलिए मैंने इमारत में कम सुविधा स पन्न लोगों से भी पूछा-चौकीदार, ड्राइवर, खानसामा, घरेलू मददगार जिन्हें हमारे लैट मालिकों ने नौकरी पर रखा था। हमारे 4 चौकीदारों में से 3 उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण थे। मगर बाकी अन्य जातियों से संबंध रखते थे जो जमीनी स्तर की सूचना के एक स्रोत थे। और इनके बीच आम सहमति यह थी कि अखिलेश योगी को गद्दी से उतारने के लिए काफी बढ़त बना रहे हैं। 

भाजपा के पास हमेशा से ही देश के लगभग 20 प्रतिशत मतदाताओं की उच्च जातियों के बीच एक निष्ठावान फॉलोइंग रही है। ओ.बी.सी. वोटों के बिना पार्टी के लिए सत्ता पर कब्जा करना संभव नहीं था। नरेन्द्र मोदी के उत्थान ने अवसरों के दरवाजे खोल दिए, महज एक दरार की तरह नहीं बल्कि पूरी तरह से खुले हुए। उन्होंने विकास, शौचालयों, मंदिरों के कायाकल्प, नौकरियों तथा बेहतर जीवन की बात की। उन्होंने उन्हें ‘आशा’ दी।

जिन लोगों के पास वास्तव में कुछ नहीं था उनके नाम पर खुले नए खातों में सीधा धन हस्तांतरण तथा गांवों में घर तथा शौचालयों के निर्माण ने मोदी जी को एक पूजनीय वस्तु बना दिया। जो लोग पूरी निष्ठा के साथ इंदिरा गांधी की बात करते थे वही अपनी आंखों में वैसी ही चमक के साथ अब मोदी जी की करते हैं। मगर यह 2019 में था। 

बिना वस्तुएं तथा सेवाएं उत्पादित किए मुफ्त की चीजें ल बे समय तक बनाए रखना संभव नहीं। यह सबक केजरीवाल तथा अन्य राजनीतिक आशावानों को भी सीखना होगा। मोदी जी द्वारा नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेल दिया। इसे अभी भी उस झटके से उभरना है जो वुहान स्थित प्रयोगशाला से सीधे चीनी अभिशाप के रूप में इस स्थिति में शामिल हुआ। 

कोविड निश्चित तौर पर भाजपा अथवा मोदी जी की कार्य सूची में नहीं है। मगर गरीब तथा ओ.बी.सी. नहीं जानते कि उन्हें किस चीज ने चोट पहुंचाई, कब और क्यों? वे अब केवल इतना जानते हैं कि वे बहुत बुरी स्थिति में हैं। वे दयनीय स्थिति का दोष उस हाथ को देते हैं जिसने उन्हें आशा दी थी। इन चुनावों के परिणाम दिखाएंगे कि क्या भाजपा की हिंदू वोटों को 80:20 में संगठित करने की उसकी वृहद योजना सफल हुई है अथवा नहीं। चुनावी मैदान अब व्यापक रूप से खुला है। परिणाम अभी अनुमानों पर आधारित है। बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में मतदाता जाति को लेकर अत्यंत सतर्क है।

जाट, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बहुत बड़ा समुदाय बनाते हैं तथा कुल मतदाताओं का एक तिहाई है, ने 2014 तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में और 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को वोट दिया था। 3 कृषि कानूनों (जिन्हें अब वापस ले लिया गया है) ने उनकी प्राथमिकताओं को बदल दिया है।

किसान अब जाटों की पुरानी पार्टी, पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोक दल (रालौद) के साथ जुड़ गए हैं तथा रालौद योगी की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अखिलेश की समाजवादी पार्टी से जुड़ गई है। सैर करने वाले यू.पी. से संबंधित  मेरे दो सहयोगियों का मानना है कि जाट किसी मुस्लिम उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे। चाहे उसे सपा अथवा रालौद ने मैदान में उतारा हो। मगर यू.पी. से एक अन्य सहयोगी इस सिद्धांत का समर्थन नहीं करता। उसका मानना है कि लखीमपुर खीरी में हत्याओं के बाद जाट समझौते के मूड में नहीं हैं।

जो भी हो, मेरी यह कहने की हि मत नहीं है कि मेरे दोनों मित्रों में से कौन सही है, मैं केवल यह कह सकता हूं कि स्पर्धा बहुत करीबी होगी। भाजपा की विशाल चुनावी मशीनरी तथा इसके विशाल वित्तीय स्रोत पहले ही सत्ता विरोधी लहर, बेरोजगारी, बढ़ती कीमतों तथा योगी द्वारा कोविड से निपटने में असफलता की यादों से निपटने के लिए तैयार है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी.पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)    


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