कोरोना वायरस क्यों और कैसे

punjabkesari.in Saturday, Feb 08, 2020 - 05:39 AM (IST)

चीन में जन्मा कोरोना वायरस अब भारत सहित दुनिया के 25 देशों को आतंकित करने लगा है। चीन से बाहर फिलीपींस में इस वायरस से पहली मौत की पुष्टि हुई है। अपने देश में भी संदिग्ध मरीज सामने आने लगे हैं। केरल में 3 मरीजों में कोरोना वायरस के लक्षण मिलने के बाद राज्य सरकार ने प्रदेश में राजकीय आपदा घोषित कर दी है, जबकि दिल्ली सहित देश के अन्य कुछ क्षेत्रों में संदिग्ध संक्रमित मरीजों के भर्ती होने की खबरें आ रही हैं। विश्व भर से सामने आ रहे मामलों से ङ्क्षचतित विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही कोरोना वायरस से संबंधित ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल’ की घोषणा कर चुका है। 

कोरोना वायरस से रक्षा हेतु भारत कर रहा हरसंभव उपाय

स्वाभाविक है कि कोरोना वायरस से अपने नागरिकों की रक्षा हेतु भारत सहित विश्व के सभी देश हरसंभव उपाय कर रहे हैं। गत दिनों ही चीन में फंसे 647 भारतीय नागरिकों को मोदी सरकार दो टुकड़ों में एयरलिफ्ट कर चुकी है, जिनकी चिकित्सीय जांच जारी है। आलोचना होने के बाद पाकिस्तान भी चीन में फंसे अपने नागरिकों को स्वदेश ले आया है। इससे पहले उसने अपर्याप्त चिकित्सीय सुविधा का हवाला देकर अपने लोगों को चीन से वापस स्वदेश लाने से मना कर दिया था। 

यह वायरस कितना खतरनाक हो चुका है? इसका उत्तर चीन में सामने आने वाले संदिग्ध मामलों के आंकड़ों में छिपा है। बीते रविवार (2 फरवरी) को 5 हजार, तो सोमवार (3 फरवरी) को 3 हजार से अधिक नए संदिग्ध मरीजों का पता चला है, जिनमें से कुछ की हालत बेहद चिंताजनक बनी हुई है। आलेख लिखे जाने तक- आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस वायरस से चीन में 500 लोगों से अधिक की मौत हो चुकी है, 20 हजार से अधिक संक्रमित हैं और डेढ़ लाख लोगों को चिकित्सीय निगरानी में रखा गया है। 

 चीन में दिसम्बर में ही सक्रिय हो गया था कोरोना वायरस 

सच तो यह है कि चीन के अनौपचारिक आंकड़े सरकारी दावों से कहीं अधिक भयावह प्रतीत हो रहे हैं, क्योंकि अपनी पुरानी फितरत के अनुरूप चीन अपने देश की वस्तुस्थिति को सार्वजनिक नहीं कर रहा है। यह बात उस घटना से भी स्पष्ट है, जिसमें एक चीनी चिकित्सक को दिसम्बर में इसलिए हिरासत में ले लिया गया था, क्योंकि उसने कोरोना वायरस के 7 मामलों की जानकारी एक चैट में सार्वजनिक कर दी थी। इसका अर्थ यह हुआ कि चीन में यह वायरस दिसम्बर में ही सक्रिय हो गया था। चीन का ऐसा ही बर्ताव वर्ष 2003-04 में भी दिखा था, जब सार्स नामक वायरस की चपेट में आने से 800 लोगों की मौत हो गई थी। 

ब्रितानी समाचारपत्र ‘द सन’ का दावा है कि चीन में कई राहगीर बेहोश होकर मर रहे हैं और अधिकांश में जांच के पश्चात कोरोना वायरस मिला है। स्थिति यह हो गई है कि 1.45 अरब की आबादी वाले चीन में चिकित्सीय उपकरणों की कमी हो गई है। इस वायरस से उसकी आर्थिकी को बड़ा नुक्सान तो पहुंच ही रहा है, साथ ही उत्तरी कोरिया, जापान, वियतनाम आदि देशों में चीन-विरोधी भावना भी भड़क उठी है, जिनमें कई रेस्तरांओं-होटलों में चीनी नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। आखिर चीन सहित शेष विश्व इस स्थिति में कैसे पहुंचा? कोरोना वायरस कुछ विशेष प्रजातियों के पशु-पक्षियों में पाया जाता है, जिसमें चमगादड़ और सांप जैसे जीव शामिल हैं। जब यह वायरस मनुष्य में पहुंचा तो इसने स्वयं को इस तरह विकसित कर लिया कि यह इंसानों में भी जीवित रह सके। इसका यही बदला हुआ स्वरूप चिकित्सकों के सामने चुनौती बन गया है। 

अब कोरोना वायरस मनुष्य में कैसे पहुंचा-इसका उत्तर खोजना कठिन नहीं है। कोरोना वायरस की शुरूआत चीन के वुहान से हुई है। यहां के हुआनान बाजार में चमगादड़, सांप, चूहे, लोमड़ी, मगरमच्छ, भेडिय़ा, मोर और ऊंट सहित 112 जीवों का मांस भी बिकता है-जहां से यह वायरस मनुष्य के भीतर पहुंचा। यही कारण है कि वुहान इसका केंद्र बना हुआ है। चिकित्सकों का मानना है कि चमगादड़ों ने बिल्ली जैसे कई जीवों को संक्रमित किया होगा और उन्हीं संक्रमित जीवों (चमगादड़ सहित) का मांस खाने से यह वायरस चीनी नागरिकों में फैल गया और उनके सम्पर्क में आए अन्य लोग संक्रमित हो गए। 

 

कोरोना वायरस का कारण है हर प्रकार के जीव-मांस का भक्षण

चीन की खान-पान की आदतों से अधिकांश पाठक परिचित होंगे, जो कोरोना वायरस से चिकित्सीय संघर्ष में बाधक भी बना हुआ है। लगभग हर प्रकार के जीव-मांस का भक्षण यहां किया जाता है। इससे संबंधित कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी हैं। मैं शंघाई और बीजिंग का दौरा कर चुका हूं, किंतु वहां स्वतंत्र होकर बाजारों में भ्रमण करने का अवसर नहीं मिला। लेकिन चीन द्वारा नियंत्रित हांगकांग में 1996-97 के अपने निजी दौरे में मैंने चीनी खान-पान को निकट से देखा था। विश्व में कोरोना वायरस जैसी महामारियां प्रकृति से छेड़छाड़ करने से जनित हैं। चाल्र्स डाॢवन ने 1858 में ‘क्रमविकास सिद्धांत’ को विश्व के समक्ष रखा था। कैथोलिक चर्च द्वारा स्थापित धारणाओं को चुनौती देते हुए डाॢवन ने पाया था कि बहुत से पेड़-पौधों और जीव प्रजातियों का आपस में गहरा संबंध है, जिसका निर्माण ईश्वर ने केवल मानवीय उपभोग के लिए नहीं किया था। 

जीव-हत्या को हम सभ्य नहीं कह सकते। आज दुनियाभर में ‘वीगनवाद’ का चलन जोरों पर है, जो वैश्विक समाज में विशिष्ट वर्ग के लिए प्रतिष्ठा का एक प्रतीक तक बन गया है। वास्तव में ‘वीगन’ शुद्ध शाकाहार का ही एक स्वरूप है, जिसका जन्म ङ्क्षहदू वैदिक-कालखंड अर्थात प्राचीन भारत में हुआ था। इसका अभ्यास भारतवर्ष में उस समय से आज भी जारी है, जब दुनिया में प्रभु ईसा मसीह का जन्म भी नहीं हुआ था। क्या यह सत्य नहीं कि वैदिक संस्कृति प्रकृति संरक्षण को न केवल बढ़ावा देती है, अपितु सभी पशु-पक्षियों, नदियों, पहाड़ आदि के कल्याण का भाव भी इसमें निहित है? हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवी-देवताओं के 33 प्रकार हैं, जिनमें- 12 आदित्य, 11 रुद्र, 8 वसु, इंद्र और प्रजापति हैं। जिन 8 वसुओं का उल्लेख वेदों में है- वे:-आप, ध्रुव, चंद्रमा, धरती, वायु, अग्नि, जल और आकाश हैं। 

हिंदू समाज में अधिकांश लोग इन सभी वसुओं की आराधना करते हैं, साथ ही इन्हें नुक्सान पहुंचाने या दूषित करने को पाप के समकक्ष रखते हैं। यही नहीं, भारतीय संस्कृति में गाय, श्वान, बिल्ली, चूहा, हाथी, शेर, बाघ, काक आदि और यहां तक कि सांपों को भी विशिष्ट स्थान दिया गया है। क्या इन सब वैदिक परम्पराओं के पीछे जीव और प्रकृति संरक्षण का संदेश निहित नहीं है? मनुष्य आज तकनीकी रूप से कहीं अधिक विकसित और बलशाली तो हो गया है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह प्रकृति से खिलवाड़ करने लगे। सच तो यह है कि मनुष्य को अपनी सीमा ज्ञात होनी चाहिए और उसे पता होना चाहिए कि यदि वह उस सीमा को लांघने का प्रयास करता है, तो उसे इसकी एक निश्चित कीमत चुकानी पड़ेगी ही।-बलबीर पुंज
    


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