कोरोना के कारण परीक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत

punjabkesari.in Sunday, Apr 25, 2021 - 02:51 AM (IST)

कोरोना महामारी ने पूरे देश में छात्रों की परीक्षाओं को बुरी तरह से प्रभावित किया है। देश के अधिकांश राज्यों में या तो छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया गया है या फिर परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है। इन स्थितियों ने शिक्षा जगत को सोचने के लिए मौका दिया है कि छात्रों के लिए परीक्षा प्रणाली के नए विकल्पों पर विचार किया जाए। किसी क्षेत्र में छात्रों की उपलब्धि अथवा योग्यता की जांच के लिए जो प्रक्रिया प्रयुक्त की जाती है, उसे परीक्षा कहते हैं।

आज भी अधिकतर छात्रों की परीक्षाएं वर्ष के अंत में या फिर छमाही ली जाती हैं। इन परीक्षाओं में कुछ प्रश्नों के उत्तर पूछ लिए जाते हैं और उन्हीं के आधार पर मूल्यांकन कर लिया जाता है लेकिन इन प्रश्नों व कुछ अंकों को प्राप्त करके ही छात्र का मूल्यांकन दोष मुक्त नहीं हो जाता क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य तो छात्र का सर्वांगीण विकास करना है। कक्षा में जो छात्रों को सिखाया जाता है तथा जिस प्रकार से सिखाया जाता है उसका परीक्षा से संबंध कम होता जा रहा है। समय परिवर्तन होने के साथ-साथ पाठ्यक्रम भी परिवर्तित होते रहे हैं। पाठ्यक्रम में अब विभिन्न क्रियाओं और गतिविधियों को भी स्थान दिया गया है।

इन क्रियाओं का ठीक से मूल्यांकन करने के लिए तथा छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान की जांच करने के लिए परीक्षा प्रणाली एवं मूल्यांकन प्रणाली में जरूरी सुधार की आवश्यकता है। इस बहु आयामी सुधार के लिए हमारे पास तीन प्रमुख विकल्प ओपन बुक परीक्षा प्रणाली, ऑनलाइन परीक्षा और निरंतर छात्र मूल्यांकन प्रणाली है। सबसे पहले ओपन बुक प्रणाली के गुण दोष देखते हैं। ओपन बुक परीक्षा माडल में परीक्षाएं दो प्रकार से आयोजित की जाती हैं। पहली ओपन बुक परीक्षा मॉडल में परीक्षार्थियों को विश्वविद्यालय परिसर में ही आने के लिए कहा जाता है।

वहां पर उन्हें पेपर दे दिए जाते हैं? स्टूडैंट्स परीक्षा देते समय अपने पाठ्य पुस्तकों और अन्य सामग्री, जो पेपर को हल करने में मददगार हो, का उपयोग कर सकते हैं। इसका दूसरा मॉडल जो कि यूरोप के कुछ देशों में काफी लोकप्रिय है, वहां परीक्षार्थी को एक तय समय पर ऑनलाइन पेपर सैट भेजे जाते हैं। परीक्षार्थी विशेष लॉग इन के जरिए संस्थान के विशेष पोर्टल पर जाकर परीक्षा देते हैं। परीक्षा के दौरान वे पाठ्य पुस्तकों, गाइड, नोट्स और अन्य सहायक सामग्री का इस्तेमाल कर सकते हैं। समय ओवर होते ही स्टूडैंट्स ऑटोमैटिक पोर्टल से लॉग आऊट हो जाते हैं। इस प्रकार निश्चित समय में स्टूडैंट्स की कॉपी संस्थान के पास पहुंच जाती है। जिसका मूल्यांकन कर रिजल्ट घोषित किया जाता है। अनेक शिक्षा बुद्धिजीवियों का मानना है कि इस परीक्षा में कोई बुराई नहीं है परन्तु इसमें प्रश्नों का स्वरूप बदल जाएगा।

दूसरे परीक्षा विकल्प के रूप में ऑनलाइन परीक्षा सूचना तकनीक की देन है। यह कोरोना काल में एक बेहतर विकल्प है। ऑनलाइन परीक्षा के बहुत सारे फायदे हैं। ऑनलाइन परीक्षा काफी हद तक सुरक्षित है एक बार सारे प्रश्न अपलोड करने के बाद, सॉफ्टवेयर उन प्रश्नों को फेरबदल कर के छात्रों को दिए जाते हैं। प्रश्न और उत्तर प्रतियां छापने से लेकर परिवहन लागत तक,  एक परीक्षा आयोजित करने के लिए महाविद्यालयों को बहुत खर्चा उठाना पड़ता है। ऑनलाइन परीक्षा की वजह से अतिरिक्त खर्चों में कटौती होती है। ऑनलाइन परीक्षा का संचालन पूर्ण रूप से तकनीक द्वारा किया जाता है। जब आप विभिन्न स्थानों पर कई उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित करना चाहते हैं तब यह खर्चे कम करने के लिए बहुत फायदेमंद होती है।

ऑनलाइन परीक्षा में प्रश्नपत्र बनाना बहुत आसान है। पारंपरिक परीक्षाओं के लिए प्रश्नपत्र बनाना कठिन कार्य है। शिक्षकों को खुद प्रश्न चुनकर, उसे प्रश्नपत्र के रूप में ढालना पड़ता है। इस कार्य में बहुत समय लगता है और गलतियों की संभावना भी होती है। ऑनलाइन परीक्षा में आप सभी तरह के प्रश्न अपलोड कर सकते हैं। देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के साथ-साथ शैक्षणिक व्यवस्था में भी परिवर्तन किया गया है। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सार्थक बदलाव परीक्षा प्रणाली को लेकर किया गया है, जिसके अंतर्गत पूर्व में प्रचलित परीक्षा प्रणाली (वाॢषक/अद्र्धवाॢषक) को समाप्त कर सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन प्रणाली को अपनाया गया है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत एक निश्चित समय पर वार्षिक, अद्र्धवाॢषक मूल्यांकन न होकर पूरे शैक्षणिक सत्र में बच्चों के विकास का मूल्यांकन करना है। 

यह पद्धति छात्रों के सर्वांगीण विकास पर बल देती है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन पद्धति में तीन महत्वपूर्ण शब्द हैं जो तीन चरणों की व्याख्या करते हैं। सतत् का सामान्य अर्थ निरंतर होता है। सतत् आकलन अर्थात शिक्षक द्वारा छात्रों को लगातार मॉनिटर करना। छात्र दिए गए पाठ को कैसे सीखता है, क्या उसके सीखने का तरीका मनोरंजक एवं चुनौतीपूर्ण है, क्याछात्र स्वयं करके सीख रहा है या समूह में। पहले छात्रों के अंदर कमी को देखा जाता था अब छात्रों के अंदर कौशलों की पहचान और उन्हें लगातार बढ़ाते रहने की कोशिश की जाती है। यह तभी संभव है जब शिक्षा की प्रक्रिया के दौरान ही उनका आकलन होता रहे। यह आकलन छात्रों का ही नहीं बल्कि अपनाई जा रही लॄनग प्रक्रियाओं का भी होगा।

डा. वरिन्द्र भाटिया


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