अयोध्या में भव्य ‘राम मंदिर’ निर्माण शुरू परन्तु 19 करोड़ राम...?

punjabkesari.in Monday, Jun 15, 2020 - 03:11 AM (IST)

समाचार पत्र में पहला समाचार था-अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया, बहुत प्रसन्नता हुई। अखबार बंद की, कुछ सोचने लगा। मेज पर सामने कल की रखी फाइल थी। उसमें इस वर्ष की ग्लोबल हंगर इंडैक्स की रिपोर्ट-विश्व के 119 देशों में भारत बहुत नीचे 102 क्रमांक पर है। 19 करोड़ 46 लाख लोग अति गरीबी की स्थिति में आधे पेट रात को भूखे सोते हैं। फाइल बंद कर दी। सोचने लगा।

सोचते-सोचते-सोचता ही रहा। सारा दिन सब कुछ करते हुए भी बार-बार यही बात सामने आती थी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू और देश में 19 करोड़ 46  लाख भूखे लोग। सोचते-सोचते रात हो गई। जैसे-तैसे नींद देर से आई। प्रात: नियमित प्रतिदिन की तरह योग, ध्यान करने बैठा। ध्यान से ध्यान हटा, सामने विशाल आकाश को छूती धौलाधार की बर्फ से ढकीं मनोरम चोटियों पर सूर्य की पहली किरण चमकी। 

कल्पना की डोर में ख्यालों में खो गया। ऊंची चोटी पर दिखे स्वामी विवेकानंद, आंखों में आंसू- कह रहे थे-127 वर्ष पहले कह कर गया था गरीब को ही देवता समझो-नर सेवा ही नारायण सेवा है। मेरे नाम पर स्मारक बनाते रहे। गरीब को भूल गए।’’ उसके एकदम बाद अपनी लाठी का सहारा लेते महात्मा गांधी दिखे-दुखी होकर कहने लगे-‘‘मूर्तियां बनाते रहे-शताब्दियां मनाते रहे-मेरा अन्त्योदय मंत्र भूल गए।’’ पास ही खड़े दीन दयाल उपाध्याय एक हाथ से आंखों की ऐनक संभालते कहने लगे-‘‘कहा था मैंने पंक्ति में सबसे नीचे के व्यक्ति का सबसे पहले ध्यान करो।’’ 

तभी एकदम नीचे लाल आंखें किए बड़े क्रोध से गरजती आवाज में भगत सिंह बोले,‘‘फांसी के फंदों को चूमते समय हम सबने कहा था-एक खुशहाल भारत बनाओ-यह भूखा भारत कहां से, कैसे बन गया-जी चाहता है फिर आऊं भारत में और जैसे अंग्रेजों से लड़ा था, वैसे ही लड़ूं गरीबी से ही नहीं अपितु गरीबी बढ़ाने वालों से भी।’’

अचानक कल्पना की डोर टूटी, ध्यान लगाने की असफल कोशिश की परन्तु फिर लौट आया अपने सामान्य जीवन में। तब से एक ही विचार मन-मस्तिष्क में उमड़ रहा है कि भारतीय वेदांत के अनुसार प्रत्येक मनुष्य भगवान का ही रूप है। ये 19 करोड़ भी तो राम का ही रूप हैं। ये राम भूखे तो मंदिर में राम कैसे आएंगे। मन की वेदना हल्की करने के लिए आप पाठकों से लम्बी बात करने बैठ गया। 

कई बार समाचार पत्रों में कुछ बड़े गंभीर भ्रष्टाचार ही नहीं भयंकर भ्रष्टाचार के रुला देने वाले समाचार छपते हैं। कई बार गरीबी ही नहीं भुखमरी के कारण बच्चों के बिकने तक के समाचार भी छपते हैं। इतना ही नहीं गरीब प्रदेशों की गरीब घरों की बेटियां बिकने के समाचार भी आते हैं। कुछ दिन चर्चा होती है, टिप्पणियां होती हैं और फिर अधिकतर धीरे-धीरे भुला दिए जाते हैं। मीडिया भी भूल जाता है। नेता भी भूल जाते हैं। स्वभाव से मनुष्य की स्मरण शक्ति भी बहुत कमजोर है। बहुत से नेताओं का तो निहित स्वार्थ होता है कि वे समाचार सबके ध्यान से हट जाए। अब धीरे-धीरे गहरी जांच करने वाला मीडिया समाप्त होता जा रहा है। इतिहास में कई बार जागरूक निडर मीडिया के कारण ही भयंकर अपराधों से पर्दा उठा था। अब मीडिया भी वह नहीं रहा। दुर्भाग्य से विपक्ष भी न जानदार रहा न ही शानदार रहा। 

परन्तु कुछ समाचार आंखों से पढऩे पर ही व्यथित नहीं करते। दिल तक चुभते हैं और कई दिनों तक उनकी चुभन पीड़ित करती रहती है। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति के दिल में तो घाव ही कर देते हैं। भुलाए नहीं भूलते। भुलाना भी नहीं चाहिए। भुलाना अपराध भी है और पाप भी है। हर बुरी बात में कभी-कभी कुछ अच्छा भी दिखाई देता है। सोचिए आपकी पत्नी साथ, पैदल, पैरों में छाले, आंख में आंसू वहीं सड़क पर बच्चा पैदा हुआ, किसी ने देख कर कपड़े दिए, नवजात शिशु को लेकर फिर चल पड़े।

मैं या आप होते तो-सोच कर चीख निकल जाएगी, अंधेरा छा जाएगा आंखों के सामने-ऐसा ही होता रहा कुछ दिन इस देश में, बहुत चर्चा हुई, बहुत से नेताओं की टिप्पणियां आईं। मुझे प्रसन्नता है कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने भी उसकी चर्चा की और उस पर अपनी पीड़ा अभिव्यक्त की। इतना ही नहीं कल सर्वोच्च न्यायालय ने भी विशेष उल्लेख किया और कहा कि बाकी प्रवासियों को 15 दिनों में सरकार अपने घरों तक पहुंचाए और राज्य सरकारें उनको रोजगार दें। इतना ही नहीं राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने भी इसका संज्ञान लिया है। 

मैंने निर्णय किया है कि स्थिति सामान्य होने के बाद मैं दिल्ली जाकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी से मिलूंगा। उनसे गिला-शिकवा प्रकट करूंगा। मुझे अपने देश के अपने प्रधानमंत्री से गिला-शिकवा करने का अधिकार है और इसका एक विशेष कारण भी है। 2014 के चुनाव के तुरंत बाद मैंने आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी को एक विस्तृत पत्र लिखा था। मैंने लिखा था कि पिछले 65 वर्षों में विकास बहुत हुआ परन्तु सामाजिक न्याय नहीं हुआ। विकास होता गया परन्तु आर्थिक विषमता भी बढ़ती गई। यही कारण है कि विश्व में सबसे अधिक भूखे लोग भारत में रहते हैं।

बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक भारत में है। इतना ही नहीं कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी सबसे अधिक भारत में है। सबका साथ सबका विकास ठीक है पर पर्याप्त बिल्कुल भी नहीं है। होना चाहिए-‘‘सबका साथ सबका विकास और सबसे नीचे के गरीब का विकास सबसे पहले और सबसे अधिक।’’ मैंने पत्र में आग्रह किया था कि बढ़ती आबादी को तुरंत रोका जाना चाहिए। दूसरा आग्रह यह किया था कि एक अलग अन्त्योदय मंत्रालय बना कर केवल इन अति गरीब करोड़ों लोगों के लिए ही विशेष योजनाएं बनाई जाएं। अति गरीबी और विशेषकर भुखमरी के कगार पर कोई न रहे। 

मैंने यह भी लिखा था कि 1977 में हिमाचल में मुख्यमंत्री बनने पर अंत्योदय योजना चलाई थी। एक करोड़ सबसे गरीब चुने गए थे। उनके लिए प्राथमिकता पर आॢथक साधन लगाए गए थे। एक वर्ष में 18 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गए थे। यदि मैं अधिक समय हिमाचल में रहता तो पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हिमाचल में कुछ वर्षों में ही एक भी व्यक्ति गरीबी की रेखा से नीचे न होता। 

कुछ दिन के बाद मैंने उसी संबंध में एक और पत्र लिखा था। मुझे प्रसन्नता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से मुझे विस्तृत उत्तर आया। उसमें कहा था कि जो नई योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनसे यह उद्देश्य पूरा होगा और गरीबी पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। परन्तु मैं बड़े दुख से कहना चाहूंगा कि ऐसा हुआ नहीं। मैं प्रधानमंत्री जी से मिलकर कहूंगा कि 6 वर्ष हो गए और उसके बाद भी कोरोना संकट के समय एक दर्दनाक और शर्मनाक दृश्य देखने पर सबको विवश होना पड़ा है। क्या छोटे से हिमाचल का छोटा-सा व्यक्ति होने के कारण ही मेरी बात नहीं सुनी जानी चाहिए?(क्रमश:)-शांता कुमार


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