धर्म परिवर्तन की राजनीति पर प्रतिबंध लगाने पर भी हो विचार

punjabkesari.in Wednesday, Nov 23, 2022 - 06:01 AM (IST)

तमिलनाडु  में एक 17 वर्षीय छात्रा द्वारा आत्महत्या करने के बाद विभिन्न धर्मों के ईश्वरों के बीच एक तरह से संघर्ष दिखाई दे रहा है क्योंकि उस छात्रा को उसके स्कूल द्वारा अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रताडि़त किया जा रहा था, जिसके चलते उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह कहा, ‘‘धोखेबाजी और जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है, जो बहुत ही खतरनाक चीज है, जो अंतत: राष्ट्र की सुरक्षा तथा धर्म की स्वतंत्रता और धर्म और नागरिकों की चेतना की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।’’ 

उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र से कहा है कि वह इसे रोकने के लिए कदमों के बारे में जानकारी दे। मुख्यत: गत वर्षों में धर्म परिवर्तन सर्वाधिक ज्वलंत, विस्फोटक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा बन गया है और इससे खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है क्योंकि हमारे राजनेता और संगठन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति/जनजातियों को उपहार, नकद का प्रलोभन देकर या अंत:धर्म विवाह, जिसे लव जेहाद की संज्ञा दी गई है, के माध्यम से व्यापक स्तर पर जबरन धर्म परिवर्तन कर धार्मिक भावनाओं को भड़का रहे हैं।

हिन्दू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि भोपाल और केरल से ईसाई पादरी अशिक्षित आदिवासियों को अपनी चंगाई सभाओं में ईसाई धर्म अपनाने पर नौकरी और धन का प्रलोभन देते हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष इस्लाम धर्म अपनाने वालों में 77 प्रतिशत हिन्दू हैं और 63 प्रतिशत महिलाएं हैं। विश्व हिन्दू परिषद के एक नेता के अनुसार प्रत्येक वर्ष 12 लाख हिन्दू ईसाई या मुसलमान बन जाते हैं। धर्म पैसे का मुद्दा बन गया है। अपने अमरीकी मुख्यालय से पैसे मिलने के कारण अनेक गिरजाघर समूहों ने तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, कश्मीर और कर्नाटक में सैंकड़ों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कर दिया है।

इसके प्रत्युत्तर में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने छत्तीसगढ़ के प्रत्येक गांव में सशस्त्र युवाओं के समूह बनाए हैं, जिनका नाम रक्षा सेना रखा गया है ताकि वे हिन्दुओं के ईसाई धर्म में परिवर्तन को रोक सकें। उन्होंने मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में आदिवासी ईसाइयों को पुन: हिन्दू धर्म में लाने के लिए घर वापसी अभियान चलाया। इसको समाप्त करने के लिए मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, अरुणाचल, झारखंड, हिमाचल और ओडिशा जैसे 10 राज्यों ने धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया है किंतु उन्होंने भी केवल धर्म परिवर्तन रोकने के लिए धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाए हैं, किंतु हिन्दू धर्म में घर वापसी की अनुमति दी है।

सभी ने धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम बनाया है और यह न केवल एक मुद्दा है अपितु एक दांडिक अपराध बन गया है, जिसमें 10 वर्ष तक की सजा और 50 हजार रुपए तक के दंड का प्रावधान किया गया है। प्रत्येक राज्य ने इस बात को अनिवार्य बना दिया है कि प्रत्येक धर्म परिवर्तन की सूचना अग्रिम रूप में जिला मैजिस्ट्रेट से स्थानीय सरकारी प्राधिकारियों को देनी होगी और ऐसा न करने पर उनके विरुद्ध मुकद्दमा चलाया जा सकता है। शायद कम लोगों को पता है कि लव जेहाद कार्यक्रम 1996 में केरल के कुछ मुस्ल्मि संगठनों ने शुरू किया था।

हालांकि यह शब्द पहली बार सितम्बर 2009 में राज्य के पथानामिथिट्टा जिले में सुनाई दिया और इसका उपयोग तीन माह बाद केरल उच्च न्यायलय के एक निर्णय में भी किया गया तथा इसे युवा होनहार हिन्दू लड़कियों को जबरन मुसलमान बनाने का एक कथित मुस्लिम षड्यंत्र कहा गया। न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा है कि लव जिहाद की ऐसे धोखेबाजी पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने पर विचार करे। इस्लामिक कट्टरवादी संगठनों, जैसे नैशनल डैमोक्रेटिक फ्रंट और पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया के कैंपस फ्रंट जैसे कट्टरवादी इस्लामिक संगठनों ने इसका खंडन किया है, किंतु केरल सरकार ने कहा है कि 2006 के बाद राज्य में 3667 महिलाओं को इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया गया।

दूसरी ओर पुलिस के आंकड़े के अनुसार पिछले 4 वर्षों में 10,000 से अधिक ऐसे धर्म परिवर्तन किए गए। इसके अलावा हिन्दू जन जागरण समिति के अनुसार अकेले कर्नाटक में 60,000 लड़कियों का धर्म परिवर्तन किया गया है। रोचक तथ्य यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन को मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी है। इसके अलावा अनेक पश्चिमी देश धर्म परिवर्तन की अनुमति देते हैं, किंतु कुछ इस्लामी राष्ट्रों ने इस्लाम से अन्य धर्म में परिवर्तन पर प्रतिबंध लगा रखा है, जबकि अन्य धर्मों से इस्लाम में परिवर्तन की अनुमति है।

भारत का दुर्भाग्य यह है कि हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई कट्टरवाद बढ़ता जा रहा है और इसका कारण राजनीतिक और बौद्धिक दोगलापन है, जिसके अंतर्गत धर्मनिरपेक्षता अपने सभी धर्मों के लिए समान आदर के उच्च आदर्श से बंधक धार्मिक वोट बैंक बनाने की कूट रणनीति में बदल गई है। आज इसका उपयोग निर्दोष नागरिकों को फंसाने के लिए आतंकवादी संगठनों द्वारा भी किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के आतंकवाद रोधी दल (ए.टी.एस.) ने हाल ही में एक इस्लामिक बुद्धिजीवी और 8 अन्य संदिग्ध आतंकवादियों को धर्म परिवर्तन के लिए गिरफ्तार किया गया, जिसके लिए वे पैसा बांट रहे थे।

आई.एस.आई.एस. के मुख पत्र वॉयस आफ खुरासान के अनुसार पहला भारतीय आत्मघाती बम विस्फोटक  केरल का एक ईसाई था, जिसने इस्लाम धर्म अपना लिया था। तथापि हमारे नेता इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि वे इसके लिए दोषी हैं और न ही वे इस समस्या का निराकरण करना चाहते हैं। धर्म परिवर्तन तब होता है जब विभिन्न पंथों और जातियों के गरीब लोग अपनी गरिमा, आत्म सम्मान और आर्थिक उन्नति की मांग करते हैं और उसे अनसुना कर दिया जाता है जिसके चलते वे मुसलमानों, ईसाई मिशनरियों या मुस्लिम मुल्लों या हिन्दू पुजारियों द्वारा दिए गए पैसे को ले लेते हैं।

यह अलग बात है कि इससे उन्हें जातीय दमन से मुक्ति नहीं मिलती। रोजगार, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधा, सामाजिक लाभ जैसे आर्थिक प्रलोभन गरिमा, आत्मसम्मान आदि ये धोखेबाजी से धर्म परिवर्तन के मार्ग हैं। इसका एक उपाय यह है कि ऐसे धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए एक अलग कानून बनाया जाए या भारतीय दंड संहिता में अलग अपराध जोड़ा जाए।

हमें धर्म परिवर्तन की राजनीति पर प्रतिबंध लगाने पर भी विचार करना चाहिए क्योंकि राज्य के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में कोई रहस्य नहीं है। राज्य न तो ईश्वर विरोधी है और न ही समर्थक। इससे अपेक्षा की जाती है कि वह सभी धर्मों के अनुयायियों के साथ एक समान व्यवहार करे। आज हम एक खतरनाक आतंकवाद प्रभावित विश्व में रह रहे हैं। समय आ गया है कि हम इस स्थिति का आकलन करें और धर्म परिवर्तन को एक बड़ा मुद्दा बनने से रोकें। -पूनम आई. कौशिश


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News