कांग्रेस को झट से अपनानी होगी आपदा प्रबंधन वाली नीति

punjabkesari.in Wednesday, Jun 16, 2021 - 02:37 AM (IST)

भाजपा के हमलों को झेलने की चुनौती को स्वीकार करने में अनिच्छा तथा ,संगठन की कमान किसी गैर-गांधी नेता को देने में असफल होने के कारण कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तथा युवा पीढ़ी में पार्टी के प्रति आकर्षण कम हो रहा है। कांग्रेस से नेताओं की निकासी पर तत्काल रूप से ‘आपदा प्रबंधन कूटनीति’ अपनानी होगी नहीं तो पार्टी के लिए भविष्य में चीजें बद से बदतर हो जाएंगी। 

कांग्रेस में इस समय पंजाब, यू.पी., उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात तथा मणिपुर इत्यादि जैसे राज्य ग भीर मतभेद से ग्रस्त हैं। इन राज्यों में अगले वर्ष चुनाव होने हैं मगर अभी तक पार्टी ने विधानसभा चुनावों को लडऩे के लिए कोई भी ठोस योजना नहीं बनाई है। इससे पहले कि देर हो जाए पार्टी को भविष्य के लिए रणनीति बनानी होगी। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि एक आपदा प्रबंधन ग्रुप का गठन भविष्य की रणनीति के तहत बिना किसी देरी होना चाहिए। इस ग्रुप का नियंत्रण सीधे तौर पर हाई कमान के पास हो जो संकट से जूझ रहे राज्यों, इकाइयों तथा केन्द्र को अच्छी तरह से निपटा सके। 

पार्टी में जीर्णोद्धार होना बाकी है। वरिष्ठ तथा युवा नेताओं का दिखावा देश में पार्टी कैडर को सही संकेत पहुंचाएगा। राहुल गांधी को स्थायी अध्यक्ष के तौर पर कमान स भाली चाहिए क्योंकि उन्होंने पार्टी नेताओं तथा कार्यकत्र्ताओं के बीच अपना प्रभाव छोड़ा है। उन्होंने कोविड की दूसरी लहर से निपटने में असमर्थ हो चुकी राजग सरकार पर भी हमले बोले हैं। कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को 1998 की तरह ऊपर उठना होगा और एक गैर-गांधी को अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त करने की अपनी इच्छा जाहिर करनी चाहिए। इससे पार्टी कैडर में नई ऊर्जा जागेगी जो भाजपा के खिलाफ लडऩे के लिए कार्यकत्र्ताओं को प्रोत्साहित करेगी। 

राहुल गांधी की युवा टीम बिखर गई है जिसका गठन 1980 में इंदिरा गांधी के ‘यंग तुर्क’ के समान किया गया था जब संजय गांधी की टीम अमरेन्द्र सिंह, कमलनाथ, रामलाल ठाकुर (हिमाचल प्रदेश के पूर्व मु यमंत्री) जैसे युवा नेताओं से लैस थी। पार्टी से जितिन प्रसाद के बाहर होने के बाद सचिन पायलट, नवजोत सिद्धू इत्यादि नेताओं के खोने का भी खतरा मंडरा रहा है। ये नेता पार्टी में शर्मसार हो रहे हैं जबकि मिलिंद देवड़ा, संदीप दीक्षित, मनीष तिवारी, मधु याक्षी गोड़़, दीपेन्द्र हुडा तथा आर.पी.एन. सिंह की पार्टी में कोई तसल्लीब श भूमिका ही नहीं है।

वहीं सिंधिया, जितिन प्रसाद द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि यह सब कार्पोरेट कल्चर के तहत हुआ है जो लाभों तथा फायदों के लिए भाजपा के खेमे में गए हैं। ऐसे लोग पार्टी की विचारधारा से जुड़े नहीं क्योंकि वह जमीनी स्तर से उठे हुए नेता नहीं हैं बल्कि वे तो पैराट्रूपर के वर्ग में आते हैं। 

आर.एस.एस. ने भी यह दर्शाया है कि चुनाव जीतने के लिए मोदी की लोकप्रियता पर पूरी तरह से निर्भर रहना व्यावहारिक नहीं होगा। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में मोदी का जादू भी नहीं चल पाया और इससे पूर्व पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इत्यादि हिन्दी भाषाई राज्यों में भी ऐसा पहले हो चुका है। यदि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुकाबले प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस की पसंद है तो इस योजना को तत्काल रूप से प्रभावी बना देना चाहिए। यदि इसमें देरी की गई तो कांग्रेस का संकट और बढ़ सकता है। अगले वर्ष होने वाले चुनावों के लिए कांग्रेस को अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने की जरूरत है। 

यह सच्चाई है कि सचिन पायलट से किए गए वायदों को नहीं निभाया गया। उन्हें उचित स्थान तथा उनके समर्थकों को कैबिनेट में जगह देने के वायदे किए गए थे। आपदा प्रबंधन कूटनीति की अनुपस्थिति ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से प्रस्थान का कारण थी। कांग्रेस सरकार को मध्य प्रदेश में यह बात महंगी पड़ी।

पार्टी हितों से ऊपर उठकर अहंकार और दुश्मनी के बीच कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने सिंधिया के बाहर जाने के मार्ग को प्रशस्त किया। वहां पर कोई भी आपदा प्रबंधन कूटनीति दिखाई नहीं दी जो हालातों से निपट सकती थी। अब पंजाब तथा राजस्थान का संकट हाई कमान की ओर देख रहा है जो नवजोत सिद्धू और पायलट के निश्चित नजर आने वाले प्रस्थान पर अंकुश लगाने के लिए असह्य प्रतीत हो रही है। 

विशेषज्ञों की भविष्यवाणी है कि हरियाणा में कांग्रेस का निराशाजनक परिदृश्य नजर आता है क्योंकि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुडा जोकि जी-23 के सदस्य भी हैं, ने मांग की है कि संगठन का कायाकल्प किया जाए। पर्यवेक्षकों का मानना है कि पंजाब में स्थिति बेहद संकट वाली है क्योंकि वहां के मु यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का एक अपना जनाधार है और राज्य में अपनी पकड़ भी है जो हाई कमान के हुक्म को मंद कर देती है। मोदी-शाह की जोड़ी के उत्थान ने दल-बदलुओं की मदद से कांग्रेस सरकारों को गिराया। 

आर.एस.एस. नेताओं का मानना है कि मांगे हुए तत्व अल्पावधि फायदों के लिए मददगार साबित हो सकते है। वहीं पार्टी के मूल नेता तथा कार्यकत्र्ता अपने आपको शर्मसार महसूस करते हैं और इसलिए वे आक्रामकता और प्रतिबद्धता खो देते हैं।-के .एस. तोमर


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News