कांग्रेस अतीत के गौरव में जीना बंद करे

punjabkesari.in Tuesday, Mar 07, 2023 - 06:03 AM (IST)

तीन पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को अगले साल के संसदीय चुनावों से पहले सैमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में लगातार तीसरे कार्यकाल की ओर बढ़ेंगे। इन राज्यों में 25 लोकसभा क्षेत्र हैं और ये देखा-देखी का खेल खेलते हैं। भाजपा के लिए ये नतीजे उत्साहजनक हैं जबकि कांग्रेस और वामदलों के लिए यह एक नींद से जागने जैसा है।

पूर्वोत्तर में जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है जिसका अच्छा लाभ मिला है। 2014 में जब वह प्रधानमंत्री बने तब पूर्वोत्तर राज्य में भाजपा सत्ता में नहीं थी। आज त्रिपुरा या अन्य 2 राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है। सत्तारूढ़ भाजपा-त्रिपुरा (आई.पी. एफ.टी.) गठबंधन ने लगातार दूसरी बार सत्ता बरकरार रखी है लेकिन इस बार उसकी संख्या कम हुई है। मेघालय और नागालैंड में इसकी ताकत मजबूत रही।

इसके विपरीत कभी पूर्वोत्तर की प्रमुख ताकत कांग्रेस अब लगभग विलुप्त हो चुकी है। 2014 में पार्टी इस क्षेत्र के 8 राज्यों में से 5 में सत्ता में थी। त्रिपुरा में, जो कभी वामपंथी दलों का गढ़ रहा था वहां माकपा की ताकत 16 सीटों से घट कर केवल 11 सीटों पर आ गई है। ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस को मेघालय में 5 और त्रिपुरा को 3 सीटों पर जीत मिली जबकि नागालैंड में एक और कार्यकाल के लिए एक भी सीट नहीं मिली।

सत्ता में बने रहने और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए सभी पार्टियों को दोष नहीं दिया जा सकता। वामदलों और कांग्रेस ने त्रिपुरा में एक अप्राकृतिक चुनाव पूर्व गठबंधन का प्रयोग किया लेकिन यह काम नहीं आया। अफसोस की बात है कि इस क्षेत्र में हावी होने वाली 2 राष्ट्रीय पार्टियों में तेजी से गिरावट आई है। चुनावी राजनीति अंकों का खेल है जबकि भगवा पार्टी ने सही गठबंधन को चुना। दोनों राष्ट्रीय दलों ने गलत अनुमान लगाया। यहां तक कि कांग्रेस-माकपा की संयुक्त ताकत से भी उन्हें चुनावों में फायदा नहीं मिला।

दूसरी बात यह है कि ये परिणाम भाजपा और क्षेत्रीय ताकतों के समेकन को दर्शाते हैं। 3 राज्यों की 119 सीटों में से क्षेत्रीय शक्तियों ने 83 प्रतिशत जीत हासिल की। नैशनल पीपुल्स पार्टी (एन.पी.पी.) मेघालय में और नैशनलिस्ट डैमोक्रेटिक प्रोग्रैसिव पार्टी (एन.डी.पी.पी.) नागालैंड में महत्वपूर्ण रूप से उभरी। त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी टिपरा मोथा स्पष्ट रूप से क्षेत्रीय शक्तियों के बढ़ते दबदबे का संकेत देती है।

तीसरा यह कि मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ हकीकत बन रहा है। इस क्षेत्र में दबदबा रखने वाली 2 राष्ट्रीय पाॢटयों कांग्रेस और माकपा की पकड़ अब ढीली हो गई है। कांग्रेस का तो नाश हो गया है और वामदल वापस नहीं आ सके। मोदी ने भाजपा की जीत की दिलचस्प व्याख्या की है। उन्होंने कहा कि इसका कारण ‘त्रिवेणी’ है। मोदी के अनुसार पहली शक्ति भाजपा सरकार का काम है, दूसरी भाजपा की कार्यशैली और आखिरी भाजपा के कार्यकर्ता हैं।

इसके अलावा भाजपा ने मतदाताओं से अच्छी तरह से संवाद किया और मुफ्त राशन, आवास योजना, वेतन आयोग के लाभ और महिलाओं की सुरक्षा के बारे में बात की। इन सबसे ऊपर इस क्षेत्र में भाजपा के उदय का कारण उसकी जीतने की इच्छा शक्ति है। भाजपा को फायदा यह है कि क्षेत्रीय दल नए मंथन को पहचानते हैं और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के साथ गठबंधन करने के इच्छुक हैं। जैसा मोदी ने कहा था वैसा ही हुआ और मेघालय और नागालैंड में ईसाइयों ने पार्टी का समर्थन किया है, इस विश्वास को झुठलाते हुए कि अल्पसंख्यक भाजपा के खिलाफ है।

भाजपा ने अपने फायदे का इस्तेमाल किया और उसके कई शीर्ष नेताओं ने इन राज्यों का दौरा किया। भाजपा ने लोगों को यह बताकर जीत हासिल की कि कांग्रेस-माकपा अपवित्र हैं क्योंकि दोनों विरोधी बनी हुई थीं। इन सबसे ऊपर पार्टी एक अखिल राष्ट्रीय पार्टी के रूप में पहचान बनाना चाहती थी और पूर्वोत्तर को जीतना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। लोकसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं और भाजपा इस गति को बनाए रखना चाहती है। पार्टी को अपनी गुटबाजी से जूझना पड़ा।

जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है उसे इन राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था और भाजपा की तरह क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करना चाहिए था। हाल के चुनावों के दौरान शीर्ष नेतृत्व असंतुष्ट था और उसने भाजपा की तुलना में कम प्रचार किया। कांग्रेस को अतीत के गौरव में जीना बंद कर देना चाहिए। उसके पास सेकिया जैसे मजबूत क्षेत्रीय नेता थे जिन्होंने पार्टी की रक्षा की।

रास्ते में कहीं कांग्रेस ने इस क्षेत्र से अपना संपर्क खो दिया। इस दौर का मतदान कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के नेतृत्व में हुआ। उनका कहना है कि पूर्वोत्तर के छोटे राज्य हैं और केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के साथ क्षेत्रीय दलों का गठबंधन एक पारदर्शी चुनावी रणनीति की आवश्यकता को दर्शाता है। -कल्याणी शंकर


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