आओ, राजनीतिक स्वार्थ के चलते ‘इतिहास’ बिगाड़ें?

punjabkesari.in Friday, Dec 06, 2019 - 03:57 AM (IST)

बीते दिनों जब सिख जगत श्री गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी पर्व को श्रद्धा और समॢपत भावना से मना रहा था, उसी अवसर पर शिरोमणि अकाली दल (बादल) की सत्ताधीन दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पदाधिकारियों मनजिंदर सिंह सिरसा (अध्यक्ष), कुलवंत सिंह बाठ (उपाध्यक्ष), हरमीत सिंह कालका (महासचिव) और विक्की मान (सलाहकार) ने नई दिल्ली स्थित औरंगजेब लेन पहुंच, वहां लगे दिशा सूचक पलट पर लिखे ‘औरंगजेब लेन’ शब्दों पर कालिख पोत कर दावा किया कि ऐसा कर उन्होंने औरंगजेब के जबर-जुल्म के प्रति अपना विरोध दर्ज करवाया है। इसके साथ ही यह भी बताया गया कि स. सिरसा ने मांग की है कि जाबर और जालिम औरंगजेब से संबंधित अध्याय को भी भारतीय इतिहास से मनफी (खारिज) किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि एक आजाद देश में जाबर और जालिम बादशाह का महिमामंडन किया जाना किसी भी प्रकार से उचित नहीं। 

स्वागत के साथ विरोध : बताया जाता है कि जहां राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित वर्ग की ओर से दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों द्वारा की गई इस कार्रवाई का स्वागत करते हुए, सराहना की जा रही हैं, वहीं कई प्रमुख इतिहासकारों द्वारा उनके इस कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा भी की जा रही है। उनका कहना है कि राजनीतिक स्वार्थ के चलते किसी भी ऐतिहासिक मुद्दे के साथ न तो छेड़छाड़ की जानी चाहिए और न ही उसकी ऐतिहासिकता की अवहेलना होनी चाहिए। उनका मानना है कि औरंगजेब के जीवन काल से संबंधित अध्याय में केवल उसके जबर-जुल्म और अन्याय का ही वर्णन नहीं, अपितु उसके जबर-जुल्म के विरुद्ध संघर्ष करने के साथ ही उसका विरोध करते हुए दी गई शहादतों की दास्तान भी है, जो देश की हर पीढ़ी को जबर-जुल्म और अन्याय के विरुद्ध जूझते रहने को प्रेरित करती चली आ रही है और भविष्य में भी वह ऐसा ही करती रहेगी। 

ये इतिहासकार पूछते हैं कि यदि इतिहास में से औरंगजेब से संबंधित अध्याय को हटा दिया जाता है तो क्या उसके जबर-जुल्म  की दास्तान के साथ ही उसके विरुद्ध संघर्ष करने और शहादतें देने वालों की दास्तान भी इतिहास में से मनफी नहीं हो जाएगी? ऐसे में भावी पीढ़ी को श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत और गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा उसके जबर-जुल्म के विरुद्ध लम्बा संघर्ष करते हुए, अपने परिवार तक के किए गए बलिदान की दास्तान भविष्य की पीढ़ी को कैसे सुना पाओगे? दक्षिण में शिवाजी मराठा आदि जैसी आत्म-अभिमानी शख्सियतों द्वारा उसके जुल्म के विरुद्ध किए गए संघर्ष का इतिहास कैसे सुना पाओगे? अपनी भावी पीढ़ी को जबर-जुल्म के विरुद्ध जूझ मरने की प्रेरणा की दास्तानें सुनाने के लिए कहां से ला पाओगे? यही कारण है भारतीय इतिहासकारों की मान्यता है कि राजनीतिक स्वार्थ की लालसा के शिकार हो, भारत के बहुमूल्य कुर्बानियों से ओत-प्रोत इतिहास और भावी पीढ़ी के भविष्य के साथ खिलवाड़ न ही किया जाए।

‘जागो’ धार्मिक जत्थेबंदी परंतु...: बीते कुछ समय से नवगठित ‘जागो’ जत्थेबंदी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. द्वारा सिख हितों-अधिकारों से संबंधित राजनीतिक मुद्दों पर आवाज उठाए जाने को लेकर कुछ मुखियों ने सवाल उठाते हुए कहा कि यदि ‘जागो’ धार्मिक जत्थेबंदी है, जैसा कि जी.के. ने उसके गठन की घोषणा करते हुए दावा किया था, तो  अब क्यों राजनीतिक मुद्दों पर सवाल खड़े करते चले आ रहे हैं? इस पर ‘जागो’ के एक मुखी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जी.के. ने शुरू में ही स्पष्ट कर दिया था कि ‘जागो’ धार्मिक जत्थेबंदी है, जिसके चलते उसका कोई मुखी या सदस्य किसी भी राजनीतिक ंसंस्था का चुनाव नहीं लड़ेगा और न ही किसी राजनीतिक पार्टी में कोई पद नहीं लेगा। परंतु सिखों के राजनीतिक हितों-अधिकारों पर होने वाले हमलों की सूरत में वह मूकदर्शक बनी नहीं रह सकेगी। 

दिल्ली कमेटी में हो रहे घपले : बीते कुछ समय से दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी में हो रही घपलों की तस्वीर लगातार सामने आ रही है और इस संबंध में जिस प्रकार दस्तावेजी सबूत जारी किए जा रहे हैं, उनके चलते न केवल गुरुद्वारा कमेटी की ही अपितु समूचे रूप से सिख जगत की छवि भी धूमिल होती चली जा रही है। इस स्थिति के चलते दिल्ली और केन्द्रीय सरकारों द्वारा अपनाई गई चुप्पी आम सिखों के गले नहीं उतर रही। 

उनका कहना है कि दिल्ली सरकार की सिफारिश के आधार पर केन्द्रीय सरकार की ओर से दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारों का प्रबंध चलाने के लिए जो गुरुद्वारा अधिनियम बनाया गया है, उसने दिल्ली और केन्द्रीय सरकारों को यह जिम्मेदारी सौंपी हुई है कि यदि गुरुद्वारा प्रबंध में कोई गड़बड़ी होती है तो वे उससे निपटने के लिए गुरुद्वारा प्रबंध में हस्तक्षेप कर सकती हैं परंतु यहां तो अधिनियम की उल्लंघना करते हुए, राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए लम्बे समय से गुरुद्वारा कमेटी के समूचे साधनों का दुरुपयोग किया जाता चला आ रहा है।... और ये सब दिल्ली और केन्द्रीय सरकारों की नाक के नीचे हो रहा है। 

भोगल का शिकवा : इन्हीं दिनों अखिल भारतीय दंगा पीड़ित कमेटी के अध्यक्ष कुलदीप सिंह भोगल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपते हुए बताया कि नवम्बर 84 में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में हुई 127 सिखों की हत्या की जांच के लिए सरकार द्वारा जिस विशेष जांच दल का गठन किया गया है, वह गम्भीरता से अपनी जिम्मेदारी निभाने में सफल नहीं हो पा रहा। 

... और अंत में : शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के मुखी सरना-बंधुओं ने पत्रकारों से हुई एक मुलाकात के दौरान दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की कार्यकारिणी द्वारा पास एक प्रस्ताव, जिसमें गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. से पांच करोड़ वसूल करने की बात कही गई है, का जिक्र करते हुए कहा कि जी.के. से वसूली का मुद्दा तो अदालत में विचाराधीन है, परंतु उस राशि, जो लगभग 195 करोड़ बनती है, की बादल परिवार अथवा उसके प्रतिनिधि स. सिरसा और उसके साथियों से वसूली का कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया। 

उन्होंने दावा किया कि यह राशि, वे नकद, मियादी जमा और प्रोजैक्टों से जुड़ी, 2013 में गुरुद्वारा प्रबंध में पैदा बदलाव के समय छोड़ कर आए थे। उन्होंने बताया कि इसके अलावा भी गुरु की गोलक निरंतर बढ़ रही है, फिर भी दिल्ली कमेटी अपने प्रबंधाधीन शैक्षणिक संस्थाओं के कर्मचारियों को 3-3 माह तक का वेतन नहीं दे पा रही, जिसके चलते उन्हें अदालतों का सहारा लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 


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