जीवन में स्वच्छता देशभक्ति के समान

punjabkesari.in Monday, Jan 03, 2022 - 05:43 AM (IST)

स्वच्छता देशभक्ति के समान है। ईश्वर का आशीर्वाद पाने के लिए मन की पवित्रता के साथ-साथ शरीर की स्वच्छता भी जरूरी है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में स्वच्छता को विशेष महत्व दिया गया है, जिनमें लिखी गई बातों के अनुसार जहां स्वच्छता होती है, वहां लक्ष्मी जी का निवास होता है। स्वच्छता का संबंध हमारी अच्छी सेहत से है। हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, धर्म, तीज-त्यौहार सब प्रकृति पोषित हैं। जरा सोचो, जो गंदगी बीमारियों को जन्म देती है, उस गंदगी को जन्म कौन देता है। इसका जवाब केवल ‘हम’ हैं। 

माता-पिता अपने बच्चे को चलना सिखाते हैं क्योंकि यह पूरा जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है। उन्हें जरूर समझना चाहिए कि स्वच्छता एक स्वस्थ जीवन और लंबी आयु के लिए भी बहुत जरूरी होती है। इसलिए उन्हें अपने बच्चों में साफ-सफाई की आदत भी डालनी चाहिए। हम अपने भीतर अगर ऐसे छोटे-छोटे बदलाव ले आएं तो शायद वह दिन दूर नहीं जब पूरा भारत स्वच्छ होगा। बच्चों में क्षमता होती है कि वे कोई भी आदत जल्दी सीख लेते हैं। इसलिए उन्हें स्वच्छता का पालन करने के लिए बचपन से ही प्रेरित करें। इंसान हो तो इंसानों वाले काम कीजिए, शहर को स्वच्छ बनाने में योगदान दीजिए। 

स्वच्छता कोई ऐसा काम नहीं है जो पैसे कमाने के लिए किया जाए। बल्कि यह एक अच्छी आदत है, जिसे हमें अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ जीवन के लिए अपनाना चाहिए। जीवन का स्तर बढ़ाने के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी के रूप में हर व्यक्ति को इसका अनुकरण करना चाहिए। जीवन में स्वच्छता का होना हमारे लिए काफी आवश्यक है, जो हमें हमारे दैनिक जीवन में अच्छाई की भावना को प्राप्त करने का बढ़ावा देती है। यह हमारे जीवन में स्वच्छता के महत्व और उसकी आदत का पालन करने की सीख देती है। 

साफ -सफाई के लिए हमें समझौता नहीं करना चाहिए क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। हमें अपनी व्यक्तिगत, पालतू जानवरों,  पर्यावरण, अपने आस-पास और कार्यस्थल आदि को स्वच्छ रखना चाहिए। हमें पेड़ काटने नहीं बल्कि पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए पेड़ लगाने चाहिएं। 

जब से कोविड-19 ने पूरी दुनिया में पैर पसारे हैं, तब से लोगों में काफी जागरूकता देखने को मिल रही है। अब लोगों को साबुन से हाथ धोने का महत्व पता चला है। स्वच्छता का संबंध हमारी संस्कृति से भी जुड़ा है। पुराने समय में खाने से पहले और बाद में हाथ धोना आदत मानी जाती थी। वहीं हमारी संस्कृति में हाथ जोड़ कर अभिवादन करने को बढ़ावा दिया जाता था। आज के समय में लोग दूर से ही नमस्कार करके अलविदा ले लेते हैं क्योंकि उनको संक्रमण होने का डर सताता रहता है। आज हमारी संस्कृति की वे पुरानी आदतें हमारे काम आ रही हैं।

आज के समय में हम जो प्रदूषण की समस्या झेल रहे हैं, उसके लिए कहीं न कहीं हमारी लापरवाही जिम्मेदार है। कूड़े को हमें सही जगह, यानी कूड़ेदान में डालना चाहिए। साफ-सफाई न रखने से हमारा शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। गंदी आदतों को हमें समय रहते अपने जीवन से हटा देना चाहिए, नहीं तो आगे चल कर इसके परिणाम काफी गंभीर होते हैं। पर्यावरण की सेहत के लिए 2 कामों का निरन्तर जारी रहना बेहद जरूरी है। पहला स्वच्छता और दूसरा वृक्षारोपण। पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण अहम पहल है क्योंकि जीवनदायी ऑक्सीजन का एक मात्र स्रोत वृक्ष ही हैं, जिन पर मानव जीवन निर्भर है। यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो धरती पर जीवन संकट में पड़ जाएगा। 

शौचालय का प्रयोग करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाएं। अपने आस-पास रखे कूड़ेदान का प्रयोग करने के लिए लोगों को बताएं। कॉर्टून और चित्रों के जरिए लोगों को स्वच्छता के सही मायने समझाएं। घर और बाहर की साफ-सफाई रखने से आप कभी बीमार नहीं पड़ते। ज्यादातर बीमारियां गंदगी के कारण होती हैं, इसलिए बचपन से ही बच्चों के स्वच्छ रहने पर जोर दिया जाता है क्योंकि वही आगे चल कर जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। 

स्वच्छता सिर्फ घर और बाहर की साफ-सफाई तक सीमित नहीं है, बल्कि शरीर की साफ-सफाई इसी में शामिल है। जितनी सफाई से आप रहेंगे उतना आपका शारीरिक और बौद्धिक विकास होगा। आपका छोटा-सा प्रयास पूरे पर्यावरण को शुद्ध करता है। सभी के साथ मिल कर उठाया गया कदम एक बड़ी क्रांति में परिवर्तित हो सकता है। जब एक छोटा बच्चा सफलतापूर्वक चलना, बोलना और दौडऩा सीख सकता है, तो यदि अभिभावकों द्वारा उसे बढ़ावा दिया जाए तो वह बहुत आसानी से स्वच्छता संबंधी आदतों को भी ग्रहण कर सकेगा।
स्वच्छ रखो सुंदर रखो भारत देश विशाल,आओ बनाओ दोस्तो, ङ्क्षहदुस्तान खुशहाल।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 


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