नागरिक बनाम राष्ट्र बनाम स्वतंत्रता

punjabkesari.in Sunday, May 08, 2022 - 04:11 AM (IST)

मेरा मानना है कि मैं स्वतंत्र पैदा हुआ। यदि मैं वैस्टमिंस्टर की तरह के लोकतंत्र या एक सोवियत स्टाइल देश अथवा एक पूर्ण तानाशाहीपूर्ण अथवा शोर-शराबापूर्ण व झगड़ालू देश में पैदा हुआ होता तो ऐसे मामलों में मेरा कोई नियंत्रण नहीं होता। 

मेरा मानना है कि मेरा जन्म कुछ  अपरिवर्तनीय अधिकारों के साथ हुआ।  इनमें से कुछ अधिकार हैं-मेरे शरीर का अधिकार, स्वतंत्रता के साथ आवागमन करना, बोलने तथा लिखने की अपनी शक्ति के अधिकार का इस्तेमाल, अपने साथी व्यक्तियों के साथ संघ बनाने का अधिकार तथा अपने तथा अपने परिवार के लिए आजीविका कमाने के लिए काम करने का अधिकार। 

‘राष्ट्र’ नागरिकों के सामूहिक नाम से अधिक और कुछ नहीं है जो खुद को संगठित करने तथा एक ‘राष्ट्र’ बनाने का विकल्प चुनते हैं। जब नागरिक खुद को एक घोषणा पत्र प्रदान करते हैं, वह राष्ट्र का संविधान बन जाता है। राष्ट्र जो कुछ संविधान में लिखा है उससे पार जाकर कोई अधिकार या शक्ति अथवा कत्र्तव्य नहीं थोप सकता। जो नागरिक संविधान को स्वीकार नहीं करता वह संभवत: देश छोड़ जाता है और किसी अन्य देश का नागरिक बन जाता है-यदि वह देश उसे स्वीकार करे। 

पूर्ण समझदारीपूर्ण व्यवस्था : सामान्य तौर पर राष्ट्र तथा नागरिक इस पूरी तरह से समझदारीपूर्ण व्यवस्था में एक साथ रहने में सक्षम होने चाहिएं। मगर यही बात कई बार अवरोध का कारण बन जाती है। अर्थात जो कुछ संविधान में लिखा है वह झगड़े का कारण बनता है। संविधान की व्याख्या करने का अधिकार न्यायपालिका के पास है लेकिन विधायिका इसका मुकाबला करती है। जजों की नियुक्ति का अधिकार आमतौर पर सरकार के पास होता है। 

इस व्यवस्था में कई बार ऐसे भी अवसर आते हैं जब लिखे हुए शब्द तथा उसके अर्थ को लेकर झगड़ा उठ खड़ा होता है। ऐसे अवसर आते हैं जब विधायिका तथा न्यायपालिका में मतभेद पैदा हो जाते हैं। ऐसी ही असहमतियां एक परिपक्व, सभ्य देश की अन्य से अलग पहचान बनाती है। ऐसा ही एक अवसर अमरीका में 1973 में बना। जज महिलाओं के निजता के अधिकार तथा गर्भपात के प्रश्र (रो बनाम वेड)पर एजैंसी के साथ खड़े हुए। ऐसा ही एक पल भारत में 1976 में पैदा हुआ। जज उस समय की सरकार के साथ खड़े हुए तथा जीवन के अधिकार सहित लोगों के मूलभूत अधिकारों को नीचा दिखाया (ए.डी.एम. जबलपुर बनाम एस.एस. शुक्ला)। 

संविधान को बचाना या दफन करना : गर्भपात के मामले में प्रश्र यह था कि क्या राज्य के पास मां के भ्रूण का गर्भपात करवाने के अधिकार पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने का अधिकार था। अमरीकी सुप्रीमकोर्ट ने व्यवस्था दी कि संविधान के अंतर्गत निजी निजता का अधिकार दिया गया है तथा यह अधिकार महिलाओं द्वारा यह निर्णय लेने के लिए पर्याप्त व्यापक था कि वह अपने गर्भ को गिरा दें या नहीं। यद्यपि राज्य के हित में महिलाओं के अधिकार के खिलाफ संतुलन बनाते हुए अदालत ने व्यवस्था दी कि प्रत्येक तिमाहियों के मामले में कानून अलग है। 

रो बनाम वेड ने अमरीकियों को इतना बांट दिया जैसा पहले किसी निर्णय ने नहीं बांटा था, जब तक कि डोनाल्ड ट्रम्प ने आकर अन्य मुद्दों पर अमरीकियों को और नहीं बांट दिया। यदि अमरीकी सुप्रीमकोर्ट द्वारा रो बनाम वेड की समीक्षा की जाए तो इस बात की संभावना है कि और विभाजन तथा कड़वाहट पैदा होगी। एक लम्बित मामले में अदालत के बहुमत के दिए गए निर्णय के लीक हुए पहले मसौदे में प्रस्ताव दिया गया था कि रो बनाम वेड को खारिज कर दिया जाए। लीक हुए दस्तावेज के अनुसार रो बनाम वेड मामले में निर्णय ‘जबरदस्त गलती’ हुई तथा इसके तर्क बहुत कमजोर और इस निर्णय के परिणाम विनाशकारी हैं। यदि रो बनाम वेड को वास्तव में खारिज कर दिया जाता तो इसके जन्म नियंत्रण तथा समलैंगिक विवाह पर गंभीर परिणाम होते। यह है अदालत की स्वतंत्रता को बढ़ाने अथवा उस पर रोक लगाने की ताकत। 

देश प्रतीक्षा कर रहा है : स्वतंत्रता को लेकर भारत की सुप्रीमकोर्ट में कई मामले लम्बित हैं। इनमें से कुछ हैं : 
-विमुद्रीकरण का मामला : क्या सरकार बिना किसी नोटिस के मुद्रा के 86 प्रतिशत का विमुद्रीकरण कर सकती है, जिससे कई गुणा तक लाखों लोग भोजन तथा दवाओं से वंचित हो गए?
-चुनावी बोंड्स का मामला :  क्या सरकार एक ऐसा कानून बना सकती है जो कार्पोरेट्स (घाटे में जा रही कम्पनियों सहित) द्वारा राजनीतिक दलों को अज्ञात तथा असीमित चंदे उपलब्ध करवाए तथा क्रोनी पूंजीवाद, भ्रष्टाचार व सत्ताधारी पार्टी के लिए योगदान को बढ़ावा दे? 

-लॉकडाऊन : क्या सरकार लोगों को बिना नोटिस दिए एक पूर्ण लॉकडाऊन लागू कर सकती है तथा लाखों लोगों को घर, भोजन, पानी, दवाओं, धन व अपने रहने के स्थायी निवासों की ओर यात्रा करने के साधनों से वंचित कर सकती है? 

-संविधान की धारा 370 को खत्म करना : क्या सरकार किसी ऐसे राज्य की सदस्यता समाप्त कर सकती  है जो संघ में अधिमिलन पत्र (इंस्ट्रूमैंट ऑफ  एक्सैशन) के द्वारा शामिल हुआ हो, उस राज्य के लोगों अथवा विधायिका की सहमति लिए बगैर? 

-देशद्रोह : क्या सरकार किसी भी ऐसे व्यक्ति पर आई.पी.सी. की धारा 124-ए के अंतर्गत देशद्रोह के आरोप लगा सकती है। जिसने उसकी कार्रवाइयों का विरोध किया हुआ अथवा मजाक उड़ाया हो?

-मुठभेड़ें तथा बुल्डोजर : क्या कोई सरकार मुठभेड़ों तथा लोगों की असहमति अथवा विरोध को दबाने के लिए भवन गिराने जैसे तरीके अपना सकती है? भारतीय राष्ट्र की नींव को हिलाने के लिए जबरन तथा दृढ़निश्चयी प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए प्रयास जारी हैं। वल्र्ड प्रैस फ्रीडम इंडैक्स 2022 में भारत 180 देशों की सूची में फिसल कर 150वें स्थान पर पहुंच गया है। सतर्क नागरिकों ने ऐसे तथाकथित मामलों में सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। स्वतंत्रता को एक बचावकत्र्ता का इंतजार है।-पी. चिदम्बरम


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