ग्वादर बंदरगाह पर चीनी परियोजना : स्थानीय विरोध और वैश्विक चिंताएं

punjabkesari.in Thursday, Dec 16, 2021 - 03:58 PM (IST)

बलूचिस्तान पाकिस्तान के 4 प्रांतों में सबसे अधिक संसाधन संपन्न होने के बावजूद सबसे कम विकसित है। इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन मछली पकडऩा है। नवम्बर के दूसरे सप्ताह से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में बंदरगाह शहर की मैगा विकास योजनाओं के खिलाफ बलूचिस्तान के ग्वादर में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
ग्वादर को हुकूक दो तहरीक (ग्वादर को अधिकार दें आंदोलन) के तहत रैली कर रहे प्रदर्शनकारियों ने बंदरगाह के विकास में स्थानीय लोगों के हाशिए पर जाने की ओर ध्यान आकर्षित करने की मांग की है। वे इस बात से नाराज हैं कि न केवल उन्हें बाहर किया जा रहा है, बल्कि उनकी वर्तमान आजीविका भी खतरे में है। वे ग्वादर और तटीय बलूचिस्तान के आसपास के इलाकों से हैं, जिनमें तुर्बत, पिशकन, जमरान, बुलेदा, ओरमारा और पासनी शामिल हैं।

 

यह पहली बार नहीं है जब ग्वादर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन यह अब 26 दिनों से चल रहा है। बलूचिस्तान की घोर रूढि़वादिता के बावजूद बड़ी संख्या में महिला प्रदर्शनकारी सामने आई हैं। विरोध का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसका नेतृत्व क्षेत्र के जमात-ए-इस्लामी नेता मौलाना हिदायत उर रहमान कर रहे हैं, जो पारंपरिक रूप से पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान के सहयोगी रहे हैं। जे.आई. के राष्ट्रीय नेता सिराज उल हक ने भी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए ग्वादर का दौरा किया।

 

स्थानीय चिंताएं
बलूचिस्तान में पीने के पानी, बिजली और यहां तक कि गैस तक सबसे कम पहुंच है जो इस क्षेत्र का मुख्य संसाधन है। डॉन अखबार के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने 19 मांगें रखी हैं। एक तो यह है कि ग्वादर से अधिक लोगों को बंदरगाह विकसित करने वाली चीनी कंपनी द्वारा नियोजित किया जाना चाहिए। इस सूची में सबसे ऊपर यह है कि सरकार को विदेशी ‘ट्रॉलर माफिया’ पर नकेल कसनी चाहिए, जो ग्वादर सागर के समुद्री संसाधनों को छीन रहे हैं। यह मांग पहली बार जून में उठाई गई थी, जब सैंकड़ों मछुआरों, राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों ने चीनी मछली पकडऩे वाले ट्रॉलरों को सरकार द्वारा लाइसैंस दिए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।

 

प्रदर्शनकारियों ने बताया कि ग्वादर के मछुआरों ने इस आश्वासन के बाद बंदरगाह के विकास के लिए अपने मछली पकडऩे के स्थानों को छोड़ा था कि इससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार होगा। चीनी मछली पकड़ने वाले जहाजों के साथ असमान प्रतिस्पर्धा के कारण उनकी स्थिति खराब हो रही थी, जो पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुक्सान पहुंचा रहे थे। उन्होंने गुस्सा और निराशा व्यक्त की कि संघीय मत्स्य मंत्री सहित पाकिस्तान सरकार के अधिकारी उनके मामले का समर्थन न करके चीनी मछुआरों के पक्ष में बयान दे रहे थे। उन्होंने उनका लाइसैंस रद्द करने की मांग की।

 

इस हफ्ते ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ की रिपोर्ट के बाद, चीनी मछली पकडऩे वाले ट्रॉलरों के विरोध को जोड़कर, चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे ‘नकली’ के रूप में खारिज कर दिया। चीनी-राज्य संचालित मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भी वी.ओ.ए. की रिपोर्ट को खारिज कर दिया, लेकिन यह भी कहा कि चीनी निर्माण दिग्गज चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी (सी.सी.सी.सी.), जो इस क्षेत्र में .144 मीटर एक्सप्रैसवे का निर्माण कर रही है, मछली पकडऩे के 75 जाल दान करने की योजना बना रही थी। इसने कंपनी को यह कहते हुए उद्धृत किया कि ग्वादर में स्थानीय निवासियों के साथ 1,00,000 युआन (15,701 डालर) और ‘दान समारोह’ का आयोजन किया जाएगा।

 

ग्वादर में बंदरगाह का विकास शायद सी.पी.ई.सी. की सबसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजना है और वहां चीनी भागीदारी कम से कम एक दशक से पहले की है। वहां काम जनरल परवेज मुशर्रफ के 10 साल के शासन के दौरान शुरू हुआ, जिन्होंने इसे एक रणनीतिक ऊर्जा गलियारे के रूप में पेश किया, जो चीन को मध्य-पूर्व से अपने तेल आयात के लिए समुद्री मार्ग का विकल्प प्रदान करेगा। अब यह राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैल्ट एंड रोड पहल का अभिन्न अंग है।

 

तब से बलूच राष्ट्रवादी अपने बहिष्कार पर नाराज हैं और बलूच लिबरेशन आर्मी और उस जैसे अन्य अलगाववादी विद्रोही समूहों ने ग्वादर और उसके आसपास चीनी हितों को निशाना बनाया है। सी.पी.ई.सी. के काम की शुरूआत होने के बाद ही हमले बढ़े हैं। 2019 में एक आधिकारिक चीनी प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के दौरान सेरेना पर हमला हुआ था। जवाब में, बंदरगाह शहर पाकिस्तानी सैनिकों सेे  भर दिया गया। प्रदर्शनकारियों की मांगों में से एक चौकियों की संख्या में कमी करना है।

 

भारत, पश्चिम की चिंताएं
भारत इस बात से चिंतित है कि ग्वादर, जो चीन को अरब सागर और ङ्क्षहद महासागर तक रणनीतिक पहुंच प्रदान करता है, को न केवल एक व्यापार एंट्रेपोट (गोदाम) के रूप में विकसित किया जा रहा है, बल्कि पी.एल.ए.एन. (चीनी नौसेना) द्वारा उपयोग के लिए दोहरे उद्देश्य वाले बंदरगाह के रूप में विकसित किया जा रहा है और चीनी उपस्थिति का म्यांमार में क्याकप्यू और श्रीलंका में हंबनटोटा के साथ हिंद महासागर क्षेत्र में विस्तार करने का इरादा है। पश्चिम एशिया में महत्वपूर्ण सैन्य हितों के साथ, अमरीका भी ग्वादर में चीनी उपस्थिति को लेकर चिंतित है। संयुक्त अरब अमीरात में एक गुप्त चीनी सैन्य अड्डे की हालिया खोज चिंताओं को और बढ़ा सकती है।
-निरुपमा सुब्रमण्यम
 


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