चीन अपनी तकनीकी कंपनियों से करा रहा था अमरीकी सैन्य बेस की जासूसी

punjabkesari.in Wednesday, Aug 03, 2022 - 06:02 AM (IST)

चीन दुनिया भर के उन देशों की जासूसी के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाता है, जिनकी जासूसी करने से वह उनके भेद जान सके और उनकी तकनीकों की चोरी कर सके। चीन के व्यापारी, विद्यार्थी, तकनीशियन, पर्यटक हर वर्ग के चीनी अपने देश के लिए दूसरे देशों में जाकर जासूसी करते हैं। 

हाल के वर्षों में चीन ने अपनी तकनीक का इस्तेमाल भी जासूसी के लिए करना शुरू कर दिया। इनमें चीन में निर्यात के लिए बनाए गए मोबाइल फोन का इस्तेमाल भी किया जाता रहा है, जिसमें एक छिपा हुआ कैमरा लगा रहता है। चूंकि चीनी मोबाइल फोन कंपनियों का सर्वर चीन में होता है तो चीन कभी भी उस कैमरे द्वारा रिकार्ड की गई तस्वीर, वीडियो देख सकता है। फोन में लगे जी.पी.एस. से वह उन तस्वीरों की नक्शे पर लोकेशन भी पता लगा लेता है। 

हाल ही में अमरीका ने चीन पर अपनी जासूसी करने का खुलासा कर दुनिया को चौंका दिया। इस जासूसी में चीन ने अपने आदमी नहीं, बल्कि तकनीक लगाई थी। जिस तकनीक को दुनिया के देशों ने जासूसी के नाम पर नकार दिया, उसी तकनीकी कंपनी हुआवे पर अमरीका की जासूसी में शामिल होने का आरोप लगा है। दरअसल एक अमरीकी सैन्य बेस के पास चीन ने धोखे से एक टावर लगा रखा था, जिसमें हुआवे का 5-जी मोबाइल नैटवर्क उपकरण लगा हुआ था, हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर अमरीका ने इसके बारे में ज्यादा खुलासा नहीं किया। 

इस टावर पर किसी का ध्यान नहीं था और जिस अमरीकी सैन्य बेस के पास यह लगा था, वहां पर अमरीका चीन के खिलाफ युद्ध की मॉक ड्रिल किया करता था, यानी नकली युद्ध परिस्थितियों का प्रशिक्षण अपने सैनिकों को देता था। इस सैन्य बेस पर बहुत महत्वपूर्ण और सर्वोच्च श्रेणी के हथियार भी रखे गए हैं। इस बात से अमरीका चीन को लेकर बहुत सतर्क हो गया है। एक दिन जब अमरीकी अधिकारियों का ध्यान इस टावर पर गया तो इसके उपकरण की जांच की गई, तब पता चला कि इसमें हुआवे कंपनी के 5-जी मोबाइल नैटवर्क के उपकरण लगे हैं। हुआवे कंपनी का कम्प्यूटर सर्वर चीन में है और इस उपकरण के जरिए हुआवे सारी जानकारी चीन भेज रहा था। 

इस समय दुनिया में 5-जी मोबाइल नैटवर्क की दुनिया में हुआवे पहले स्थान पर है, लेकिन दुनिया का कोई भी देश हुआवे के उपकरणों का इस्तेमाल नहीं करता, क्योंकि हुआवे कंपनी चीन सरकार के तहत काम करती है, उसका मालिक रन छेंगफेई बहुत वर्षों तक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में इंजीनियर के पद पर काम करता था। बाद में वह कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बन गया और सत्ता के अंदरूनी गलियारों में सक्रिय होने लगा। इसके बाद चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने रन छेंगफेई की मदद की और हुआवे कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए इसमें खूब पैसा लगाया, जिससे यह कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी टैलीकॉम कंपनी बन गई। बाकी देशों के लिए ङ्क्षचता की बात यह है कि चीन के कानून के अनुसार चीन की जितनी भी निजी कंपनियां हैं, सरकार की जरूरत के समय अपना डाटा सरकार के साथ सांझा करेंगी। 

इसे देखते हुए भारत सहित, कनाडा, ब्रिटेन, अमरीका, वियतनाम और यूरोपीय संघ के कई देशों ने हुआवे कंपनी पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। अमरीका में रणनीतिक जानकारों का मानना है कि हुआवे कंपनी चीन सरकार के लिए काम करती है और अमरीका सहित दूसरे देशों के डाटा चुराकर चीन की कम्युनिस्ट सरकार को बेचती है। हालांकि इस बारे में अमरीकी सरकार ने कुछ ज्यादा बातें नहीं बताई हैं और इस बात की जांच में जुट गई है कि अभी तक अमरीका के इस सैन्य बेस के बारे में चीन को क्या कुछ पता चल चुका है। 

वहीं अपना भेद खुलने के बाद चीन भी डैमेज कंट्रोल में जुट गया है और बोल रहा है कि उसने अमरीका की कोई जासूसी नहीं की और अमरीका चीनी कंपनियों को बदनाम करने के लिए ऐसी कार्रवाई कर रहा है, ताकि चीनी कंपनियों को नुक्सान हो और उसकी प्रतिद्वंद्वी अमरीकी कंपनियां विश्व के बाजार पर अपना प्रभुत्व जमा सकें। लेकिन सवाल यह उठता है कि अमरीका में हुआवे कंपनी पर प्रतिबंध लगने के बावजूद इतने संवेदनशील इलाके में हुआवे का मोबाइल नैटवर्क उपकरण पहुंचा कैसे? इसे देखते हुए चीन का इस मामले में सफाई देना खोखली बात लगती है और जानकारों का मानना है कि चीन पर भरोसा करना देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करना है।


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