मूल तिब्बतियों को अपना गुलाम बनाना चाहता है चीन

punjabkesari.in Friday, Sep 03, 2021 - 05:27 AM (IST)

चीन हमेशा से ही तिब्बत को अपने देश का अंग मानता रहा है। वर्ष 1959 में चीन ने तिब्बत पर अपना अवैध कब्जा करके अपनी मंशा दुनिया को दिखा दी। तिब्बत पर चीन अपने कब्जे को जायज ठहराने के लिए  इतिहास के पन्नों से कुछ तथ्यों को अपनी जनता और दुनिया के सामने रखता है। 634 ईस्वी में तिब्बत पर राज करने वाले तोबू साम्राज्य के राजा सोंगत्सान गाम्बो ने अपने एक मंत्री गार थुंगसान को शिआन भेजा, उस समय चीन की राजधानी शिआन में थी जहां पर थांग साम्राज्य का वर्चस्व था। गाम्बो ने थांग राजकुमारी वानछेंग से विवाह का प्रस्ताव भेजा था, जिसे थांग राजा थाईचुंग ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। 

गाम्बो और वानछेंग के बीच विवाह से तोबू और थांग साम्राज्य में संबंध बड़े मधुर हो गए। इससे तिब्बत के तोबू साम्राज्य के राजा सोंगत्सांग गाम्बो को पश्चिम के पठार और पर्वतीय इलाकों में अपना कब्जा स्थापित करने में बहुत मदद मिली। दुनिया के बाकी बड़े समाजों की तर्ज पर चीन का समाज भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मानता था तो इस लिहाज से चीन पर तिब्बत का आधिपत्य होना चाहिए था लेकिन चीन ने बलपूर्वक तिब्बत पर अपना कब्जा जमा लिया। 

चीन का बौद्धों की धार्मिक आस्था पर प्रहार : तिब्बत एक बौद्ध प्रधान देश है। यहां पर हर परिवार अपने बच्चों को पढऩे के लिए बौद्ध विहारों में भेजता है, जिससे वे शिक्षा के साथ-साथ बौद्ध जीवन पद्धति के तौर तरीके भी सीखते हैं। चीन का तिब्बत पर कब्जा होने के बाद भी तिब्बती जनता अपने बच्चों को बौद्ध विहारों में शिक्षा के लिए भेजती थी। चूंकि बौद्ध लोग उईगर मुसलमानों की तरह उग्र और ङ्क्षहसक स्वभाव के नहीं हैं, इसलिए चीन ने इनकी धार्मिक आस्था पर प्रहार करने का अलग तरीका ढूंढ निकाला। 

सी.पी.सी. के सदस्य तिब्बत के गांवों और कस्बों में जाकर व्यक्तिगत तौर पर माता-पिता को यह चेतावनी देते थे कि अगर आप अपने बच्चे को शिक्षा के लिए बौद्ध विहारों में भेजेंगे तो आपके बच्चे को इसका नुक्सान हो सकता है। धमकी से डर कर तिब्बती माता-पिता ने अपने बच्चों को विहारों में भेजने की जगह चीन द्वारा स्थापित कम्युनिस्ट स्कूलों में भेजना शुरू किया, जहां पर उन्हें हान जाति की भाषा मंडारिन में शिक्षा दी जाने लगी।

तिब्बत के मरखम इलाके में कुछ बौद्ध अपना मठ बना रहे थे लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकत्र्ताओं ने अगले दिन पुलिस बल के साथ बुलडोजर लाकर मठ की इमारत को गिरा दिया। जब वहां के बौद्धों ने इसका विरोध किया तो पुलिस ने उन्हें बहुत मारा और जेल भेजने की धमकी तक दी। इसके बाद उन्होंने कुछ बौद्ध भिक्षुओं को इकट्ठा कर एक दूसरी इमारत बनवाई जिसे बनाते समय उनसे हंसी-खुशी वाला गाना गाते रहने की हिदायत दी और फिर इसका वीडियो शूट कर पूरी दुनिया को दिखाया। इसके अलावा चीन ने लारुंग गार और याछेंग गार में भी दो विश्व प्रसिद्ध बौद्ध शिक्षा केन्द्रों की इमारतों को गिरा कर ध्वस्त कर दिया। खाम इलाके में भी इमारत को गिराने का विरोध करने वाली रोती बिलखती बौद्ध महिलाओं को जबरदस्ती बसों में बैठाकर दूर छोड़ा गया।

तिब्बत की संस्कृति को खत्म करता चीन: भाषा के साथ-साथ चीन ने तिब्बत में धर्म व संस्कृति पर भी प्रहार किया। चीन का सीधा उसूल है अपनी संस्कृति और सोच को दूसरों पर थोपना, जिसमें चीन बहुत हद तक सफल भी रहा है। शिनच्यांग वेवूर स्वायत्त प्रांत की तर्ज पर चीन ने तिब्बती बौद्धों को अल्पसंख्यक समुदाय बनाने के उद्देश्य से बड़ी संख्या में हान जाति के लोगों को तिब्बत में बसाना शुरू किया।इसके साथ ही चीन की सरकार ने इस बात पर भी दबे-छुपे तौर पर काम करना शुरू किया, ताकि हान जाति और तिब्बती लोगों में वैवाहिक संबंध स्थापित हों जिससे अगली नस्ल में चीन के लिए नफरत कम हो और दो तीन पीढिय़ां आते-आते यह नफरत खत्म हो जाए। 

तिब्बत की तरक्की की झूठी तस्वीर : दुनिया को तिब्बत की प्रगति की जो तस्वीर चीन दिखाता है, दरअसल वह सिर्फ प्रोपेगंडा है और कुछ नहीं। तिब्बत में जो आॢथक तरक्की है उसकी चाभी हान जाति के लोगों के हाथों में है, तिब्बतियों के हाथ में नहीं। ङ्क्षछगहाई रेलवे, सड़कें, पुल, स्कूल, अस्पताल और दूसरे आधारभूत संस्थान जो चीन ने बनाए हैं, उनका असल फायदा चीन से आकर तिब्बत में बसे हान जाति को है। छिंगहाई रेलवे लाइन बिछाने के पीछे चीन की मंशा तिब्बत पर अपना कब्जा और मजबूत करने की है। रेलवे से तिब्बत में बहुत कम समय में चीनी सैनिकों को भेजा जा सकता है। इसके अलावा तिब्बत में चीन ने अपने सैन्य हवाई अड्डे तक बनवा रखे हैं। विदेशी पर्यटकों और पत्रकारों के साथ डेलिगेशन को तिब्बत में जाने की आज्ञा तो है लेकिन वहां पर विदेशियों पर सख्त पहरा लगा रहता है, ताकि वे किसी स्थानीय निवासी से बात न कर सकें और तिब्बत की वही तस्वीर देखें जो चीन ने दुनिया को दिखाने के लिए बनाई है। 

भारत के धर्मशाला में चीन ने भेजे जासूस : चीन तिब्बतियों को दबाने के लिए सिर्फ यहीं नहीं रुका, उसने तिब्बतियों को खत्म करने के लिए भारत के धर्मशाला शहर तक में अपने जासूस भेजे, ताकि पहले चीन यह जान सके कि तिब्बती भारत में किन गतिविधियों में लिप्त हैं, उनकी जीवनशैली कैसी है और वे भविष्य में तिब्बत को लेकर कौन सी योजना बना रहे हैं। इसके बाद चीन भारत में रहने वाले तिब्बतियों पर हमला कर खत्म करने की रणनीति बनाएगा, ताकि चीन का विरोध करने वाले कोई भी समुदाय और प्रांतीय लोग खत्म हो जाएं। चीन ने जो दमनकारी नीतियां शिनच्यांग वेवूर स्वायत्त प्रांत में फैलाईं, हांगकांग में लोकतांत्रिक आंदोलन को कुचला, भीतरी मंगोलिया में मंगोलियाई समुदाय की भाषा को स्कूलों में इस्तेमाल न करने का निर्णय लिया, इससे चीन तिब्बत के मूल लोगों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहता है। 


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