अफ्रीकी महाद्वीप पर ढीली पड़ती चीन की पकड़

punjabkesari.in Monday, Apr 12, 2021 - 03:37 AM (IST)

अफ्रीकी महाद्वीप में कुल 54 देश हैं इनमें से सिर्फ एक देश चीन का दोस्त नहीं है बाकी 53 देश न सिर्फ चीन के दोस्त हैं बल्कि इन देशों में करीब दस हजार चीनी कम्पनियों ने निवेश किया हुआ है। चीन ने अफ्रीकी देशों में अपने लालच के लिए यहां भारी निवेश किया है, कई गरीब अफ्रीकी देशों में चीन ने बिना ब्याज के पैसा उधार दिया है जिसके बाद चीन ने उनके प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है। पहले ये सारे देश चीन का गुणगान करते नहीं थकते थे लेकिन पिछले कुछ समय से अफ्रीका में चीन के खिलाफ बयार बहने लगी है और यहां के लोग भारत के पक्ष में होने लगे हैं, चीन समझ नहीं पा रहा है कि ऐसा कैसे हो गया। 

आधुनिक युग में अफ्रीकी महाद्वीप को चीन का उपनिवेश कहा जाता है लेकिन चीन के इसी उपनिवेश में चीन की 1200 कंपनियों को पिछले छ: महीनों से कोई काम नहीं मिला है। लेकिन चीन की रणनीति में कमजोरी आने का असर दुनिया भर में चीनी कंपनियों की पकड़ भी कमजोर होती जा रही है। इसे देखते हुए अफ्रीकी देशों में भी अब चीन के विरुद्ध आवाज उठने लगी है। दो वर्ष पहले 2019 में विश्व बैंक ने अफ्रीकी देशों को चीन के कर्ज जाल में फंसने को लेकर आगाह किया था कि जैसे दुनिया के कुछ और देश चीन के कर्ज जाल में फंस चुके हैं वही हाल अब अफ्रीकी देशों का भी होने वाला है। 

विश्व बैंक ने यह चेतावनी एक रिपोर्ट के आधार पर दी जिसमें बताया गया है कि पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के एक तिहाई देश चीन के कर्ज जाल में पहले ही आ चुके हैं। वैसे तो पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के लगभग सारे देश चीन से कर्ज ले चुके हैं लेकिन इनमें से जो सबसे गरीब देश हैं चीन ने इन देशों को 2 अरब डॉलर का कर्ज बिना ब्याज के दे रखा है। इसके बाद चीन ने सुनियोजित तरीके से इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों को अपने कब्जे में ले लिया और अपने लाभ के लिए इनका अंधाधुंध दोहन करने लगा। इन सबसे पिछड़े और गरीब देशों में दक्षिणी सूडान, लाईबेरिया और सूडान जैसे देश शामिल हैं। 

पिछले दो वर्षों में अफ्रीकी महाद्वीप में चीन के खिलाफ माहौल बनने लगा है, हालांकि इसकी शुरूआत पिछले पांच-छ: वर्षों से ही हो चली थी लेकिन वर्ष 2019 और पिछले वर्ष कोरोना महामारी के बाद चीन विरोधी माहौल ने अफ्रीका में जोर पकड़ा है इसे देखते हुए चीन को अब यह चिंता सता रही है कि चीन ने जो कर्ज अफ्रीकी देशों को दिया था कहीं वह डूब न जाए। अब कोई भी अफ्रीकी देश चीन से कर्ज नहीं ले रहे हैं, अगर उन्हें कर्ज की जरूरत पड़ रही है तो वह दूसरे देशों और वैश्विक आर्थिक संस्थानों से ले रहे हैं। इन देशों को मालूम है कि अगर कर्ज चीन से लेंगे तो फिर चीन हमारे देश के प्राकृतिक संसाधनों पर कुंडली मार कर बैठ जाएगा, वहीं कर्ज दूसरे देशों और आॢथक संसाधनों से लेने में सिर्फ कर्ज चुकाना होगा। 

इसके अलावा अफ्रीका में चीनी कंपनियों को मिलने वाले कॉन्ट्रैक्ट में भी भारी कमी देखी जा रही है। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि अफ्रीका में भारत की भागीदारी अब मजबूत हो रही है। यही कारण है कि चीन की कई कंपनियों का अस्तित्व और व्यापार दोनों खटाई में पड़ गया है। दूसरी तरफ अफ्रीकी देश भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं क्योंकि इन देशों को चीन की शातिर चालों के बारे में देर से ही सही लेकिन मालूम हो गया है, अफ्रीकी देश ये मानते हैं कि भारत के साथ होने वाला व्यापार पारदर्शी और साफ-सुथरा होगा। 

वहीं चीन अपनी एक पट्टी एक मार्ग योजना के शुरू होने से बहुत पहले ही अफ्रीकी देशों में निवेश के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का तेजी के साथ दोहन करता आया है लेकिन इस समय भारत की अफ्रीकी देशों में बढ़ती भागीदारी और सहयोग से अफ्रीकी देशों की आवाज अब मुखर होने लगी है। चीन के लालच को देखते हुए कई अफ्रीकी देशों में चीन से कर्ज न लेने और चीनी कंपनियों को काम न देने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। जिस तेजी के साथ अफ्रीकी देशों में चीन के लिए वातावरण बदलता जा रहा है उसे देखते हुए चीन की राह अफ्रीका में आसान नहीं होगी। 


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