फाकलैंड्स द्वीप पर चीन की कपट नीति का पर्दाफाश

punjabkesari.in Friday, Feb 11, 2022 - 07:20 AM (IST)

चीन इस समय बहुत आक्रामकता के साथ दुनिया में अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। वह न तो किसी देश का सम्मान कर रहा है और न ही वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को मान रहा है। हाल ही में इंगलैंड और चीन के बीच राजनयिक तनातनी शुरु हो गई। चीन ने अर्जेंटीना के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में दक्षिणी अटलांटिक सागर में पैटागोनिया क्षेत्र में बने छोटे से द्वीप फाकलैंड्स को लेकर अर्जेंटीना का साथ दिया है जबकि इस पर अभी ब्रिटेन का कब्जा है। फाकलैंड्स अर्जेंटीना से 480 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र में बसा है। 

चीन ने ब्रिटेन के ताईवान मुद्दे का जवाब देने के लिए फाकलैंड्स का मुद्दा उठाया है, जिसके जवाब में ब्रिटेन ने आधिकारिक तौर पर चीन को फाकलैंड्स से दूर रहने को कहा और उसे फटकार लगाई। ब्रिटिश विदेश मंत्री लिज ट्रस ने चीन से फाकलैंड्स का स मान करने को कहा और यह भी कहा कि फाकलैंड्स ब्रिटिश परिवार का हिस्सा है और हम उनके आत्मनिर्णय के अधिकार की रक्षा करते रहेंगे। 

चीन द्वारा आयोजित बीजिंग विंटर ओलंपिक खेलों का कई देशों ने राजनयिक स्तर पर बहिष्कार किया, तो वहीं तुर्की, रूस और अर्जेंटीना समेत कई देशों ने चीन के खेलों का समर्थन किया है। अर्जेंटीना लैटिन अमरीका का एक ऐसा देश है, जो इन दिनों आॢथक संकट से गुजर रहा है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ उसने एक डील की है, जिसके तहत 44.5 अरब अमरीकी डॉलर के कर्ज का पुनर्गठन करेगा। हालांकि ऐसा करना अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था के लिए काफी नहीं है, इसलिए उसने अपनी अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए चीन से कर्ज मांगा है। 

अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडिस ने बीजिंग ओंलपिक्स के शुरूआती समारोह में चीन की यात्रा कर शी जिनपिंग से मुलाकात की और अपने देश के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने के लिए चीन से कर्ज मांगा है और चीन से कहा है कि वह अर्जेंटीना को सिल्क रोड का हिस्सा बना ले। इसके तहत अर्जेंटीना चीन से बहुत सारी धनराशि उधार चाहता है क्योंकि 44.5 अरब डॉलर की धनराशि से वहां पर कोई खास काम नहीं करवाए जा सकते। 

चीन ने इस सुनहरे मौके का फायदा उठाते हुए अर्जेंटीना को महत्व दिया और कहा कि अगर वह ताईवान मुद्दे पर चीन का समर्थन करे तो उसे उसकी जरूरत के हिसाब से कर्ज दिया जाएगा। फाकलैंड्स को लेकर ब्रिटेन और अर्जेंटीना के बीच में जो विवाद काफी समय से चला आ रहा है, उसमें चीन खुलकर अर्जेंटीना का समर्थन करेगा, क्योंकि ब्रिटेन भी चीन पर तिब्बत में बौद्धों पर अत्याचार, उईगर मुसलमानों, दक्षिणी चीन सागर मुद्दे पर, हांगकांग में लोकतंत्र और ताईवान के मुद्दे को लेकर उसे घेरता रहता है। इसलिए चीन ने ब्रिटेन पर हमला करने के लिए फाकलैंड्स द्वीप के मुद्दे पर अर्जेंटीना का साथ देने का फैसला किया है और चीनी मीडिया में फाकलैंड्स को माल्विनास के नाम से संबोधित किया जा रहा है, क्योंकि इस द्वीप को ये नाम अर्जेंटीना ने दिया है। 

फाकलैंड्स पहले अर्जेंटीना का हिस्सा थे, लेकिन औपनिवेशिक काल में सन् 1833 ई. में ब्रिटेन ने इन द्वीपों पर अपना कब्जा जमा लिया था। तभी से ये ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हैं। वर्ष 1982 में अर्जेंटीना ने फाकलैंड्स द्वीप समूह को ऑपरेशन रोजारियो के सैन्य अभियान के तहत ब्रिटेन से छीनने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहा। उसके बाद से अब तक ये द्वीप समूह ब्रिटेन का हिस्सा हैं। लेकिन फाकलैंड्स मुद्दे पर लैटिन अमरीकी देशों ब्राजील, वेनेजुएला, उरुग्वे, पैराग्वे, चिली, कोलंबिया आदि देशों ने अर्जेंटीना का समर्थन किया है। वहीं अब इस मुद्दे पर चीन के समर्थन में रूस भी उतर आया है और मांग कर रहा है कि फाकलैंड्स अर्जेंटीना को लौटाया जाना चाहिए। 

कुछ वर्ष पहले इस मुद्दे के गरमाने के बाद इंगलैंड ने फाकलैंड्स द्वीप समूह में जनमत संग्रह करवाया था, हालांकि यहां रहने वाले मात्र 2000 लोगों में से 99 फीसदी ने यू.के. के साथ रहने के समर्थन में वोट दिया था। इस जनमत संग्रह को अर्जेंटीना मानने से इंकार करता रहा है। इस पूरे मुद्दे में रूस के मुखर होकर अर्जेंटीना का समर्थन करने के पीछे नाटो शक्तियों के खिलाफ चीन के साथ खड़ा होना है। साथ ही रूस संभवत: अर्जेंटीना को अपने हथियार बेचे, ताकि सैन्य स्तर पर वह ब्रिटेन से फाकलैंड्स द्वीप समूह को आने वाले दिनों में आजाद करवा सके। वैसे भी फाकलैंड्स द्वीप ब्रिटेन से इतनी दूर स्थित हैं कि अगर अर्जेंटीना को अत्याधुनिक हथियार मिल जाएं तो वह ब्रिटिश सेना को पराजित कर इन द्वीप समूहों पर अपना कब्जा जमा सकता है। 

वहीं दूसरी तरफ संभव है कि ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा समेत दूसरे जी-7 देश नाटो देशों और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों को संबोधित कर इस बात की मांग करें कि चीन के खिलाफ सैन्य सहयोग कर उसकी बढ़ती आक्रामकता को रोकने की जरूरत है, क्योंकि किसी भी देश का अकेले चीन से मुकाबला करना संभव नहीं। संभावना इस बात की भी है कि चीन ने जिन देशों की जमीन छीनी है और जिन देशों से शत्रुता मोल ली है, वे सभी मिल कर चीन का संगठित मुकाबला करें और उसकी आक्रामकता का मुंहतोड़ जवाब दें, जिससे भविष्य में चीन कभी आक्रामक देश के तौर पर न उभर सके।


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