‘चीन भारत के खिलाफ कश्मीर में उपद्रव को बढ़ावा दे सकता है’

punjabkesari.in Wednesday, Mar 17, 2021 - 04:54 AM (IST)

9 महीने के लम्बे गतिरोध और 9 दौर की सीमा वार्ता के बाद भारत और चीन पैंगोंग त्सो क्षेत्र में एक चरणबद्ध, सत्यापित और समन्वित प्रक्रिया के माध्यम से साथ-साथ संघर्ष कम करने के लिए सहमत हुए। करीब 60 हजार सैनिकों की तेजी से तैनाती और भारत की मजबूत इच्छाशक्ति ने चीनी मनोबल में गम्भीर सेंध लगाई। भारत के कोरोना वायरस संकट के बीच चीन अपने क्षेत्रीय अतिक्रमण को फैलाने में असफल रहा। इसके साथ-साथ भारत को अधीनस्थ और कमजोर क्षेत्रीय शक्ति के रूप में दिखाने में भी असफल रहा। चीन के खिलाफ वैश्विक स्तर पर आक्रोश उत्पन्न हुआ। 

इस बात ने चीन के खिलाफ ‘क्वाड गठबंधन’ (भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमरीका) को मजबूत करने के लिए काम किया है। चीन के खिलाफ यह संगठन और अधिक मजबूत हो गया है। इसलिए पेइङ्क्षचग का एकमात्र व्यवहार्य विकल्प बाइडेन प्रशासन को एक सकारात्मक रणनीतिक संदेश भेजना और अपनी खोई हुई सम्भावना को पुन: प्राप्त करना है। हालांकि डोकलाम (2017) और पैंगोंग त्सो (2020) में लगातार असफलताओं के बाद चीन ने सबक सीख लिया है कि नई दिल्ली को अमरीका तथा अन्य ‘क्वाड’ (चतुर्थ) देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और जम्मू, कश्मीर तथा लद्दाख में अपनी सामरिक स्वायत्तता का प्रयोग करने से मजबूर नहीं किया जा सकता। 

विशेष रूप से 45 सैनिकों की हानि (पश्चिम स्रोतों के अनुसार 120) और सामरिक कैलाश की ऊंचाइयों ने चीन को अपनी सीमाओं में रहने के लिए समझा दिया। पारम्परिक सैन्य लड़ाई में चीन भारत के साथ विशुद्ध रूप से पीछे है। भविष्य में कहा जा सकता है कि चीन भारत के खिलाफ ग्रे जोन लड़ाई के तरीके, इलैक्ट्रॉनिक युद्ध और बड़े पैमाने पर प्रभाव संचालन की मिश्रित रणनीतियों का उपयोग कर सकता है। 

हाल ही में भारत पर दो तरफा युद्ध का सामना करने और रणनीतिक सीमाओं पर अपनी पश्चिमी सीमाओं से उत्तरी सीमाओं तक परिमाण परिवर्तन को लेकर पर्याप्त चर्चा हुई। भारत के रणनीतिक विशेषज्ञ देश के अशांत क्षेत्र कश्मीर पर अपनी दृष्टि खो रहे हैं। जहां पर चीन भारत के विकल्पों, मनोबल और क्षमताओं को बाधित करने के लिए अपनी मिश्रित रणनीतियों का उपयोग कर सकता है। कश्मीर घाटी पिछले 3 दशकों से अशांत है। इस समय के दौरान देश ने एक भारत विरोधी जेहादी आंदोलन को देखा है जो धार्मिक तर्ज पर अत्यधिक कट्टरपंथी है और एक मजबूत पाकिस्तानी खुफिया तंत्र के पदचिह्नों पर चल रहा है। घाटी में भारत के प्रति अत्यधिक नाराजगी भी है। 

हाल के चीनी गतिरोध के साथ भारत इतनी भारी मात्रा में तैनाती कर सकता है क्योंकि नवनिर्मित सड़क अवसंरचना पर भारतीय सेना के काफिले की आवाजाही में कोई स्थानीय प्रतिरोध नहीं था। चीन को अपनी आक्रामक रणनीति पर पुर्निविचार करने और विघटन के लिए सहमत होने के लिए मजबूर होना पड़ा। 

हालांकि स्थानीय आबादी बड़े पैमाने पर हिंसक लोकप्रिय विद्रोह का मंचन करती है जैसे कि 2016 में पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आई.एस.आई.) की सुनियोजित रणनीति के परिणामस्वरूप हुआ था, तो यह भारतीय बलों को पश्चिमी और उत्तरी दोनों सीमाओं के लिए स्थानांतरित करने की एक मुश्किल चुनौती होगी। यह मानवाधिकार मोर्चा पर भारत के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी पैदा करेगा क्योंकि भारतीय सेनाओं को अपनी सेना के लिए सुरक्षित मार्ग लेने के लिए नागरिकों को मारना होगा। ऐसी स्थिति में दुश्मन सेना के भारतीय क्षेत्र में आगे बढ़ने और अन्तर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप का आह्वान करने की सम्भावना है। यह एक ऐसा परिदृश्य होगा जिसे पाकिस्तान हमेशा से चाहता है। 

ऊपर वर्णित किया गया परिदृश्य अवास्तविक नहीं है। पूर्व में कश्मीर घाटी ने 2008, 2009, 2010 और 2016 में ङ्क्षहसक नागरिक अशांति देखी है। 2016 में आतंकी कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद अशांति देखी गई थी। इस घटना के दो सप्ताहों के बाद पुलिस फायरिंग में 46 नागरिक हताहत हुए। हाल ही के गतिरोध में जब दो फ्रंट वाले युद्ध की सम्भावना लग रही थी तब भारत को इस बुरे सपने की आशंका थी। 

विशेष रूप से 5 अगस्त 2019 को कश्मीर के विशेष दर्जा को निरस्त करने के बाद जमीनी स्तर पर भारत विरोधी भावनाओं का असाधारण उच्चस्तर देखा गया। दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद बुनियादी ढांचे, आतंकी वित्तपोषण, अलगाववाद, भ्रष्टाचार और धार्मिक कट्टरता को और समृद्ध तथा पोषित किया गया। आतंक में निवेश की पाकिस्तानी 3 दशकीय योजना को इससे गहरा झटका लगा। 5 अगस्त 2019 के बाद पाकिस्तान छद्म युद्ध के माध्यम से आतंकी हमलों तथा अशांति फैलाने में असफल रहा है। 

यह महसूस करते हुए कि कश्मीर अपने नियंत्रण से बाहर हो सकता है, पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आम लोगों में नाराजगी, क्रोध और घृणा को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास शुरू किए। इस बार तुर्की भी रजब तैयब एर्दोगन के नेतृत्व में भारत विरोधी प्रयासों में शामिल हो गया। युवा दिमागों को लुभाने के लिए तुर्की और पाकिस्तान में भड़काऊ संगीत वीडियो और रैप वीडियो बनाए जो कश्मीर में बहुत लोकप्रिय हो गए। निकट भविष्य में लोकप्रिय प्रतिरोध आंदोलन को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान, चीन और तुर्की एक साथ आ सकते है और ऐसी स्थिति में भारत के लिए चीजें जटिल हो सकती हैं।-अभिनव पंड्या


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