चीन समर्थित म्यांमार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजैक्ट ने किसानों को बनाया भूमिहीन

punjabkesari.in Friday, Nov 12, 2021 - 04:48 AM (IST)

जनवरी 2020 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की म्यांमार यात्रा के दौरान चीन और म्यांमार ने क्युकफ्यू स्पैशल इकोनॉमिक जोन (के.पी.एस.ई.जैड.) और डीप सी पोर्ट प्रोजैक्ट के लिए रियायत और शेयरधारकों के समझौतों पर हस्ताक्षर किए। पश्चिमी म्यांमार के रखाइन राज्य में स्थित, के.पी.एस.ई.जैड. और गहरे समुद्र बंदरगाह परियोजना चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (सी.एम.ई.सी.) के तहत म्यांमार में चीन की बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बी.आर.आई.) योजनाओं का हिस्सा है। 

पेइचिंग के.पी.एस.ई.जैड. और गहरे समुद्र के बंदरगाह को विशेष रूप से बी.आर.आई. के लिए महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि वे चीन को हिंद महासागर तक सीधी पहुंच प्रदान करेंगे, जिससे चीनी व्यापार को सिंगापुर के पास मलक्का के भीड़भाड़ वाले जलडमरूमध्य को बाईपास करने की अनुमति मिलेगी, जबकि युन्नान प्रांत में विकास को बढ़ावा मिलेगा, जो म्यांमार की सीमा में है। पूरी परियोजना की योजना 4,300 एकड़ जमीन कवर करने की है। 

प्रारंभिक समझौते में अनुमान लगाया गया था कि यह परियोजना 9-10 बिलियन अमरीकी डॉलर (12-13 ट्रिलियन कयाट्स) की होगी। हालांकि, म्यांमार द्वारा उसके कर्ज के जाल में फंसे होने बारे चिंता जताए जाने के बाद दोनों पक्ष छोटे पैमाने पर परियोजना शुरू करने पर सहमत हुए। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, बंदरगाह के पहले चरण में लगभग 1.5 बिलियन अमरीकी डॉलर (2 ट्रिलियन कयाट्स) खर्च होंगे। 

म्यांमार में चीन की परियोजनाएं एक उच्च जोखिम में हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय आबादी के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। चीनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए अनिवार्य और जबरन भूमि अधिग्रहण उन देशों में एक सामान्य क्रिया है, जहां इन्हें लागू किया गया है। उत्तरी पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान में गांवों में आग लगा दी गई और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के लिए रास्ता साफ कर दिया गया, जिससे हजारों स्थानीय लोग बेघर हो गए। अब लगता है कि सी.एम.ई.सी. भी उसी दिशा में जा रही है।

हालांकि अभी तक क्युकफ्यू परियोजनाओं पर कोई महत्वपूर्ण काम शुरू नहीं हुआ है लेकिन प्रस्तावित के.पी.एस.ई.जैड. औद्योगिक क्षेत्र में 250 एकड़ भूमि जब्त करने की तैयारी पहले ही की जा चुकी है। 250 एकड़ जमीन 4 गांवों के 70 से अधिक स्थानीय किसानों की है। 

अब अचानक यह खुलासा हुआ है कि उस 250 एकड़ जमीन में से 60 एकड़ 3 अज्ञात लोगों की है, जिन्होंने इन जमीनों को म्यांमार के भूमि स्वामित्व कानून के तहत पंजीकृत कराया था। 60 एकड़ के स्वामित्व की इस ‘अचानक खोज’ ने अब 22 स्थानीय किसानों को उस भूमि पर अवैध रूप से कब्जा करने वाला बना दिया है, जिस पर उन्होंने और उनके परिवारों ने पीढिय़ों से काम किया है। क्युकफ्यू टाऊनशिप के किसानों को डर है कि जुंटा चीन समॢथत के.पी.एस.ई.जैड. में उनकी जमीन को बिना किसी मुआवजे के जब्त कर लेगी। 

इसी तरह की एक घटना में अपतटीय श्वे गैस क्षेत्र और पाइपलाइन परियोजना के निर्माण के दौरान म्यांमार के एक सैन्य अधिकारी ने प्यार ताए गांव के ग्रामीणों के स्वामित्व वाली 25 एकड़ से अधिक भूमि का जबरन अधिग्रहण किया और मुआवजे में 30 मिलियन कयाट्स से अधिक की मांग की। चूंकि ग्रामीण इतनी मोटी रकम का भुगतान नहीं कर सके, इसलिए उन्हें अपनी जमीन गंवानी पड़ी। यह सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है। जिन लोगों के पास ऐसी परियोजनाओं से प्रभावित क्षेत्रों की जानकारी होती है, वे भूमि स्वामित्व हासिल करने के लिए अधिकारियों के साथ काम करते हैं और बाद में उन किसानों से मुआवजे की मांग करते हैं, जो भूमि स्वामित्व हस्तांतरण से अनजान थे।

यह देखा जाना चाहिए कि कैसे बी.आर.आई. परियोजनाओं के तहत विकास के नाम पर म्यांमार के लोगों से आजीविका छीन ली गई है। यदि भूमि या रोजगार के अवसरों की कोई गारंटी नहीं है और केवल परियोजना शुरू करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है तो यह स्थानीय लोगों के लिए अवसरों की तुलना में चुनौतियों का कारण अधिक बनेगा।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय


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