मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ बोलते ही नहीं स्टैंड भी लेते हैं

punjabkesari.in Friday, Dec 02, 2022 - 04:38 AM (IST)

भारत के नए मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जो जरूरत पड़ने पर बोलते हैं मगर स्टैंड लेने से  नहीं डरते। यदि स्तंभकार और लेखक नैतिक रूप से खुद को पक्षपातपूर्ण झुकाव वाले व्यक्तियों पर लिखने से अलग करने के लिए बाध्य होते हैं, तो मुझे जस्ट्सि चंद्रचूड़ के बारे में टिप्पणी करने से खुद को अलग करना पड़ता। कारण यह है कि उनके पिता पूर्व मुख्य न्यायाधीश 1948 से 1950 तक गवर्नमैंट लॉ कालेज में मेरे शिक्षक थे। 

बाद में, जब मैं भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुआ और मुझे पुणे शहर का पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया (मैं उस शहर का पुलिस प्रमुख बनने वाला अंतिम अधीक्षक था क्योंकि इसे एक पुलिस कमिश्नरेट में अपग्रेड किया गया था जबकि मैं अभी भी 1965 में इसका अधीक्षक था)। चंद्रचूड़ के पिता बाम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। हर महीने वे पुणे जाते थे और रेलवे स्टेशन से शहर में अपने निवास स्थान के रास्ते में उन्होंने जो पहला पड़ाव बनाया था वह एक पुराने शिष्य के साथ आधार को छूने के लिए पुलिस अधीक्षक का कार्यालय था। 

कभी-कभी मेरे लॉ कालेज के एक अन्य शिक्षक जस्ट्सि जल विमदलाल उनके साथ जाते थे। इस तरह की यात्राओं के दौरान मेरा कार्यालय काम करना बंद कर देता था क्योंकि पूरा स्टाफ ही इन प्रतिष्ठित न्यायाधीशों की झलक पाने के लिए अपने डैस्क छोड़ देता था। निश्चित रूप से सम्मानित न्यायाधीशों ने मेरे कमरे में जितनी बार झांका उससे मेरा अपना कद अनुपात में बढ़ गया। यही मुख्य कारण है कि जब मेरे मित्र देश की न्यायपालिका में सर्वोच्च पद ग्रहण करने के बाद से मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा पारित कुछ आदेशों की प्रशंसा करते हैं तो मुझे खुशी होती है। 

वर्तमान मुख्य न्यायाधीश  चंद्रचूड़ ने जिस घोर अन्याय से निपटने का जिम्मा अपने ऊपर लिया है, वह लगभग सभी स्तरों पर न्यायपालिका की हाल की प्रवृत्ति है कि व्यवहार में जस्टिस वी. कृष्ण अय्यर के आदेश ‘बेल नॉट जेल’ को पलट दिया जाए। गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) में संशोधन से अधीनस्थ न्यायाधीशों के लिए आतंकवादी कृत्यों के आरोपियों को जमानत पर रिहा करना लगभग असंभव हो जाता है लेकिन यहां तक कि जब जिन अपराधों के लिए उन पर आरोप लगाए गए हैं, वे आतंकवाद के कृत्यों का खुलासा नहीं करते हैं तो निचली न्यायपालिका उसे सही करने के लिए अपनी शक्तियों का उपयोग करने से डरती हैं। 

बुनियादी गलतियां यह सुनिश्चित करती हैं कि जिन लोगों को दोषी नहीं ठहराया गया यहां तक कि मुकद्दमे का सामना भी नहीं किया गया, वे खुद को बचाने की उम्मीद के बिना वर्षों तक जेल में सड़ते रहे। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हाल ही में दिए गए एक सार्वजनिक भाषण में टिप्पणी की कि जिला और ताल्लुका स्तर पर न्यायिक अधिकारी गलतियां करने से डरते हैं तथा एन.आई.ए., ई.डी. तथा अन्य जांच एजैंसियों के साथ जाना पसंद करते हैं जो उन्हें दोषी ठहराने के लिए आवश्यक किसी भी प्रासंगिक सबूत की कमी के बावजूद असुविधाजनक लोगों को जेल में रखने के लिए अपनी जांच को अनुकूलित करते हैं। प्रक्रिया ऐसे मामलों में सजा बन जाती है। सालों तक जेल काटने के बाद यह आरोपी लगभग पूरी संभावना के साथ रिहा हो जाते हैं लेकिन आखिर किस कीमत पर? 

भीमा कोरेगांव मामले में दो साल पहले गिरफ्तार किए गए प्रोफैसर आनंद तेलतूंबड़े ने हाल ही में अपनी जमानत पर रिहा होने पर टिप्पणी की कि उन्हें अपने जीवन के 2 वर्ष जेल में बिताने पड़े। पैगासस नामक इसराईली मूल का एक जासूसी साफ्टवेयर हमारी खुफिया एजैंसियों द्वारा कुछ वर्ष पूर्व खरीदा गया था लेकिन एक दशक से भी कम समय पहले संदेह की सुई केंद्रीय खुफिया एजैंसियों और कठपुतली के तार खींचने वालों की ओर इशारा करती है। 

चूंकि मुकद्दमे में तेजी लाने के लिए कोई प्रयास किया नहीं गया। इसलिए सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि योजना यह सुनिश्चित करने के लिए है कि जो लोग असुविधाजनक हैं और जिन्हें दोषी ठहराना मुश्किल है, वे बिना मुकद्दमे के वर्षों तक जेल में रहेंगे! यह न्याय शास्त्र के सभी सिद्धांतों के खिलाफ है। हमारे देश के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में गुजरात में एक चुनावी भाषण में कहा था कि भाजपा  ने अपने राज्य में असामाजिक तत्वों को ऐसा सबक सिखाया है जिसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे। 

शाह 2002 में गोदरा में एक ट्रेन में 59 कार सेवकों को क्रूर तरीके से जिंदा जलाने के बाद उस राज्य में मुसलमानों के नरसंहार की ओर इशारा कर रहे थे। यह भाजपा द्वारा दिया गया सबसे हानिकारक बयान था। नेता द्वारा 2002 में हुई तबाही में राज्य की मिलीभगत को स्वीकार किया। इसने अमित शाह की अपनी राजनीतिक पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था। फिर भी एक ईमानदार आई.पी.एस. अधिकारी आर.बी. श्री कुमार को कार्यकत्र्ता तीस्ता सीतलवाड़ के साथ जेल में डाल दिया गया था। वह कई महीनों तक वहीं पड़ा रहा जब तक कि न्यायपालिका ने आखिरकार उसकी आवाज नहीं उठाई और उसे जमानत पर रिहा कर दिया। 

गोदरा कांड के बाद अमित  शाह के खुले तौर पर अपराध स्वीकार करने के बाद यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि तीस्ता और श्रीकुमार को निशाना बनाकर राज्य दोषियों के बजाय पीड़ितों का पीछा कर रहा था। देश की न्यायपालिका का यह अनिवार्य कत्र्तव्य है कि वह इस तरह की गलतियों को ठीक करे। ऐसा न हो कि न्याय को व्यवहार में सौंपे गए स्थान की तुलना में व्यापक स्थान दिया जाए।

कानून और न्यायपालिका मंत्री किरण रिजिजू उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के लिए न्यायाधीशों को चुनने की कालेजियम प्रणाली को समाप्त करना चाहते हैं। मुख्य न्यायाधीश ऐसा नहीं होने देंगे। यदि राजनीतिक कार्यपालिका को उच्च न्यायालय के लिए न्यायाधीशों का चयन करने की खुली छूट दी जाती है तो हमें जल्द ही ‘प्रतिबद्ध नौकरशाहों’ की तर्ज पर ‘प्रतिबद्ध न्यायाधीश’ ही मिलेंगे।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
    


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