चन्नी की नियुक्ति एक चतुराईपूर्ण कदम

punjabkesari.in Friday, Sep 24, 2021 - 04:42 AM (IST)

नवजोत सिंह सिद्धू नीत पंजाब के निहित हितों द्वारा कांग्रेस मुख्यमंत्री के तौर पर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को ‘जबरन’ बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद राज्य की राजनीति ने एक नया नाटकीय मोड़ लिया है। पार्टी ने राज्य की जाट प्रभुत्व वाली राजनीति में दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना है। इसके मद्देनजर लगभग 32 प्रतिशत दलित जनसंख्या वाले राज्य में एक दलित की नियुक्ति को एक अच्छे राजनीतिक निर्णय के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस विधायक दल द्वारा उनका चुनाव सर्वसम्मति से किया गया। चन्नी की पदोन्नति के साथ कांग्रेस उच्च कमान ने सुनिश्चित किया है कि राज्य के पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को नियंत्रण में रखा जाए जबकि उन्हें पार्टी के जाट चेहरे के तौर पर उभरने की इजाजत हो। 

दिलचस्प बात यह है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने ही 2002 के विधानसभा चुनावों में चमकौर साहिब सीट के लिए कांग्रेस के खिलाफ बगावत करने के 3 वर्ष बाद दिसम्बर 2010 में चन्नी की कांग्रेस में वापसी के लिए रास्ता बनाया। चन्नी तब एक आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते। पंजाब के राजनीतिक घटनाक्रम के बीच उन्हें अमरेन्द्र मंत्रिमंडल में एक मंत्री बनाया गया।

पंजाब की राजनीति इस तरह से चलती है। चन्नी को एक बार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ विद्रोह करने के लिए जाना जाता है, जब उन्होंने उनके मंत्रिमंडल में दलितों के अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की थी। एक वकील तथा एम.बी.ए., वह दलित अधिकारों की लड़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए जाने जाते हैं। यहां तक कि इस मामले में वह कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ विद्रोह में सबसे आगे थे जिन्होंने उन पर पार्टी के चुनावी वायदे पूरे नहीं करने का आरोप लगाया। ये सभी ङ्क्षबदू तथा विषमताएं पंजाब के राजनीतिक खेलों का हिस्सा हैं। 

मुख्यमंत्री चन्नी की विवादों में भी अपनी हिस्सेदारी है। 2008 में एक महिला आई.ए.एस. अधिकारी ने उन पर एक ‘अनुचित टैक्स्ट मैसेज’ भेजने का आरोप लगाया था। 2008 में फिर एक मंत्री के तौर पर वह विवाद का केंद्र बने जब उन्होंने एक पॉलीटैक्नीक में लैक्चरारों के लिए नियुक्तियों हेतु निर्णय के लिए सिक्का उछालना चुना। आगे नजर डालें तो जहां 79 वर्षीय निवर्तमान मुख्यमंत्री ने बेशक पार्टी में अपने वफादारों के साथ संख्या का खेल हार दिया है, वह अब भी कबाब में हड्डी बन सकते हैं। उन्होंने विशेष तौर पर सिद्धू पर हमला बोला है, उनके ‘पाकिस्तानी संबंधों’ की याद दिलाई है। यहां तक कि उन्होंने उन्हें ‘राष्ट्रविरोधी, खतरनाक, अस्थिर तथा अक्षम’ बताया है। 

पंजाब की राजनीति इस तरह से विभिन्न राजनीतिक हितों से चलाई जा रही है। यहां पहियों के भीतर पहिए हैं तथा यह कहना कठिन है कि कौन-सा राजनीतिक पहिया कब घूमेगा और किसके कहने पर। यद्यपि कांग्रेस नेतृत्व ने चन्नी को मुख्यमंत्री के तौर पर तथा सुखजिंद्र सिंह रंधावा और ओम प्रकाश सोनी को उनके दो डिप्टीज के तौर पर नियुक्त करने के लिए कुछ सख्त गणनाएं की हैं। जहां चन्नी मालवा क्षेत्र में चमकौर साहिब से विधायक हैं, सोनी तथा रंधावा माझा में क्रमश: अमृतसर सैंट्रल तथा डेरा बाबा नानक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस कदम के पीछे विचार 2022 के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर माझा से दो तिहाई शीर्ष नेता लेने का है जिसमें अमृतसर, पठानकोट तथा तरनतारन जिले आते हैं। इसे कांग्रेस नेतृत्व के एक चतुराईपूर्ण कदम के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व मुख्यत: इस क्षेत्र से नेताओं द्वारा किया जा रहा था। 

इस पंथक पट्टी में सिख मतदाता आमतौर पर एक पार्टी की ओर झुकाव वाले बताए जाते हैं। दरअसल माझा में ङ्क्षहदू तथा सिख मतदाताओं ने आमतौर पर मिलकर एक पार्टी अथवा एक गठबंधन के लिए मतदान किया है जिसका कारण मतदाताओं को ही पता है। यह अवश्य कहा जाना चाहिए कि 2017 में ङ्क्षहदुओं तथा सिखों ने कांग्रेस के लिए मतदान किया था जबकि 2007 में उन्होंने ऐसा शिअद-भाजपा गठबंधन के लिए किया था। पंजाब में दलित राजनीति के एक विशेषज्ञ प्रोफैसर रौनकी राम ने कहा है कि मुख्यमंत्री के तौर पर चन्नी की नियुक्ति निश्चित तौर पर आने वाले चुनावों में कांग्रेस की मदद करेगी।

फिर भी कुछ अज्ञात कारक हो सकते हैं जिन्हें इस चरण पर परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि आज कांग्रेस बंटी हुई दिखाई देती है। जो जैसा है उसे रहने दें। संभवत: राजनीति एकमात्र व्यवसाय है जिसके लिए कोई तैयारी आवश्यक नहीं मानी जाती। हमारे राजनीतिज्ञों की गुणवत्ता पर एक नजर डालने से यह बात साबित हो जाती है। दरअसल जो चीज अन्यथा संभव नहीं उसे चापलूसी की ताकत से हासिल किया जा सकता है। इस देश में हम वर्तमान शक्ति के आगे दंडवत होने में बहुत तेजी दिखाते हैं और पिछले शासकों से अपनी वफादारी हटा भी लेते हैं। यह नई राजनीतिक संस्कृति का एक हिस्सा है, यहां तक कि पंजाब में भी।-हरि जयसिंह 
    


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