देश के सामने चुनौतियां और हम

punjabkesari.in Thursday, Jul 21, 2022 - 05:04 AM (IST)

स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा में गत दिनों एक और मील-पत्थर जुड़ गया। 17 जुलाई को देश ने 200 करोड़ कोविड-19 रोधी टीका लगाने का आंकड़ा पार कर लिया। नि:संदेह यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत सरकार द्वारा शहरी-ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में संतुलित-समेकित क्रियान्वयन, स्वदेशी टीकों की दक्षता और असंख्य स्वास्थ्यकर्मियों के तप से जनित है। आगामी दिनों में यह किसी भी आपातकालीन चिकित्सीय स्थिति से निपटने में आदर्श बनेगा। 

यह ठीक है कि कोरोना की भयावहता लगभग समाप्त हो चुकी है, परंतु ध्यान रहे कि कोरोना वायरस बहुरूपिया है, जो विश्व में अब भी कई रूपों में विद्यमान है। इससे बचने हेतु आवश्यक है कि लोग पूर्ण टीकाकरण का हिस्सा बनें, क्योंकि देश में कोरोना संक्रमण धीमा पडऩे और लोगों के निश्चिंत होने से 150 करोड़ से 200 करोड़ कोविड टीका लगने में अन्य चरणों की तुलना में अधिक समय लगा है। इसी को ध्यान में रखते हुए तीसरी खुराक (सतर्कता) के टीकाकरण को गति देने हेतु मोदी सरकार ने 15 जुलाई से 75 दिनों तक फिर से नि:शुल्क अभियान छेड़ा है। यदि मोदी सरकार मुफ्त वैक्सीन का संचालन नहीं करती, तो डेढ़ वर्षों में 200 करोड़ टीकाकरण के आंकड़े को छू पाना असंभव होता। 

शेष विश्व की तुलना में भारत का कोरोना विरोधी अभियान बहुआयामी है। जहां एक ओर दुनिया के अन्य देशों की भांति भारत में कोविड-19 का वस्तुनिष्ठ-निर्णायक उपचार नहीं है, वहीं दूसरी ओर भारत में लोगों को उस जमात से भी सतर्क रहना है, जिसने भ्रामक और झूठा प्रचार करके कोविड-19 रोधी अभियानों में बाधाएं डालीं और अब भी अवसर मिलने की ताक में बैठे हैं। इसी वर्ग ने दावा किया था कि 140 करोड़ की आबादी वाले भारत में संपूर्ण टीकाकरण होने में 10-15 वर्षों का समय लग सकता है, जबकि भारत ने 16 जनवरी, 2021 से टीकाकरण शुरू करते हुए 547 दिनों के भीतर 200 करोड़ टीके लगाने की उपलब्धि प्राप्त कर ली। 

वर्तमान समय में जहां 10-15 हजार के बीच कोरोना मामले सामने आ रहे हैं, तो उसमें मृतकों की संख्या बहुत कम है। बीते 8 माह में अस्पतालों में संक्रमितों के भर्ती होने और मृत्युदर में भारी कमी आई है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि देश में (15 वर्ष आयु से अधिक) लगभग 102 करोड़ लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक, तो 92 करोड़ से अधिक लोगों को दोनों खुराक, जबकि साढ़े 5 करोड़ लोगों को तीसरी खुराक लगाई जा चुकी है। 

भारतीय टीकाकरण की सफलता का एक और कारण वैक्सीन की मामूली कीमत भी है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में विदेशी कोरोना टीके की एक खुराक औसतन 20 अमरीकी डॉलर, अर्थात् 1600 रुपए में उपलब्ध है, जबकि भारत सरकार ने देश में इसका मूल्य प्रति खुराक 225 रुपए निर्धारित किया है। मुफ्त कोरोना वैक्सीनेशन पर मोदी सरकार फरवरी 2022 तक 27,945 करोड़ रुपए व्यय कर चुकी थी, जोकि वित्त वर्ष 2021-22 के कुल बजट का 1 प्रतिशत भी नहीं था। सोचिए, यदि भारत टीका नहीं बनाता, तो वह उसे विदेश से खरीदता और ऐसा होने पर सरकारी खजाने पर अकूत दुष्प्रभाव पड़ता। सच तो यह है कि भारत ने कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई का नेतृत्व किया है।

अमरीका के ह्यूस्टन स्थित ‘बायलोर कॉलेज ऑफ मैडिसिन’ में ‘नैशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मैडिसिन’ के डीन डॉ. पीटर होटेज के अनुसार, ‘‘भारतीय वैक्सीन ने विश्व को बचाया है और वह दुनिया को भारत का उपहार है।’’200 करोड़ से अधिक टीकाकरण में एक ऐसा बिंदू भी है, जो भविष्य को गहरी चुनौती दे रहा है और वह है जनसंख्या वद्धि। एक अनुमान के अनुसार, जनसंख्या के मामले में भारत अगले वर्ष चीन से आगे निकल जाएगा। बढ़ती आबादी का सीधा अर्थ खाद्य-वस्तुओं, दवाइयों, रोजगार, स्वास्थ्य, यातायात, आवासीय सुविधाओं के साथ बिजली-पानी आदि संसाधनों पर अत्यधिक दबाव और गरीबी बढऩे से है। यह ठीक है कि एक हालिया वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार भारत में गरीबों की संख्या घटकर 10 प्रतिशत हो गई है, जोकि एक बड़ी उपलब्धि है, फिर भी देश में 14 करोड़ लोगों का गरीब होना चिंताजनक है। 

इसके अतिरिक्त, भारत की बहुलतावादी वैदिक संस्कृति-परंपरा जहां अनादिकाल से मतभिन्नता स्वीकार्य है, उस पर एकेश्वरवाद के संकीर्ण चिंतन का खतरा अक्षत है। भारतीय उपमहाद्वीप में इस विषैले मानस के प्रभाव से 12वीं शताब्दी में अफगानिस्तान, 1947 में पाकिस्तान और 1990 के दशक में कश्मीर घाटी अपने मूल समावेशी और समस्त ब्रह्मांड-कल्याण को अपने भीतर समेटे वैदिक दर्शन से भौगोलिक या फिर भावनात्मक रूप से कट चुकी है। खंडित भारत में यह चिंतन आज भी ‘छद्म-सैकुलरवाद’ के बल पर न केवल जीवित है, अपितु वामपंथियों और कई विदेशी वित्तपोषित एन.जी.ओ. के समर्थन से सक्रिय भी है। हाल ही में इस्लामी संगठन पी.एफ.आई. द्वारा वर्ष 2047 तक खंडित भारत के इस्लामीकरण की योजना, कथित ‘ईशनिंदा’ के नाम पर जेहादियों द्वारा निरपराधों का ‘सर तन से जुदा’ करना, हिजाब प्रकरण आदि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। 

इस वर्ष हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं। देश में भाषा, क्षेत्र, मजहब और अन्य विविधताओं के होते हुए भी हम एक जीवंत लोकतंत्र और सही अर्थों में पंथनिरपेक्ष हैं, जिसका श्रेय केवल यहां की मूल बहुलतावादी सनातन संस्कृति को जाता है। यदि वैश्विक महामारी कोविड-19 पर भारतीय नेतृत्व की सफलता के अतिरिक्त मैं अन्य 3 बड़ी सफलताओं का उल्लेख करूं, तो उसमें 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अमरीकी धौंस को नजरअंदाज करते हुए भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान को परास्त करना, 1998 में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों की धमकियों के आगे न झुकते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दिशा-निर्देशों पर सफल पोखरण-2 परमाणु परीक्षण करना और हालिया वर्षों में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत का मान-सम्मान बढऩा शामिल है। ऐसे में जनसंख्या वृद्धि, गरीबी और मजहबी कट्टरवाद के बढ़ते खतरे जैसे संकटों के बीच ऐसी कई सफलताएं हैं जिन पर हम गर्व कर सकते हैं।-बलबीर पुंज
    


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