बुल्डोजर की धमक : अदालतों के लिए सबक

punjabkesari.in Saturday, Apr 16, 2022 - 03:50 AM (IST)

उत्तर प्रदेश में एक ए.डी.जे. के पिता जी की जमीन का मुआवजे के बाद सरकार ने अधिग्रहण कर लिया।  उस पर हो रहे निर्माण और कब्जे को रोकने के लिए कोट-टाई पहने हुए जज शुक्लाजी बुल्डोजर के आगे लेट गए। जमीन तो बची नहीं और हाईकोर्ट ने भी जज साहब को नौकरी से सस्पैंड कर दिया। उत्तर प्रदेश के ही एक अन्य मामले में नाबालिग लड़की से गैंग रेप करने वाले आरोपियों के घर के सामने अफसरों ने जब बुल्डोजर खड़ा कर दिया तो पांचों अभियुक्तों ने पुलिस के सामने ताबड़-तोड़ सरैंडर कर दिया। 

उत्तर प्रदेश में बसपा, सपा और भाजपा सरकारों के संरक्षण में पले विकास दुबे के पुलिस एनकाऊंटर के बाद उसकी सम्पत्ति को बुल्डोजर से धराशायी कर दिया गया। निजी सेना चलाने वाले विकास का इतना दबदबा था कि उसके खिलाफ मुकद्दमे में गवाही देने से पुलिस वाले भी मुकर गए। ऐसे माफिया और अपराधियों पर बुल्डोजर चलने से आम जनता में हर्ष और उल्लास बढ़ता है। लेकिन बुल्डोजर संहिता की कानून और प्रक्रिया निर्धारित नहीं होने से इसके दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है। 

उत्तर प्रदेश के चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद अन्य राज्यों में भी बुल्डोजर संस्कृति का प्रसार हो रहा है। मध्य प्रदेश में रामनवमी के जलूस पर पथराव करने वाले दंगाइयों के घरों को बुल्डोजर से गिराने पर संविधान और कानूनी प्रक्रिया पर तीखी बहस छिड़ गई है। संविधान के अनुसार प्रभावित होने वाले पक्ष को सुनने के बाद ही कोई कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन सरकारों का मानना है कि बुल्डोजर की धमक से अपराधियों के हौसले ठंडे पड़ते हैं। कानून की किताबों में गिरफ्तारी, जुर्माना, सजा, फांसी, कुर्की जैसे कई दंडों का विधान है लेकिन बुल्डोजर का कोई जिक्र नहीं है। 

सत्ता का स्वरूप बुल्डोजर की तरह होता है। इसके प्रकोप से आम जनता को बचाने के लिए संविधान में अनेक मूल अधिकार दिए गए हैं। इनमें जीवन का अधिकार और कानून का शासन प्रमुख हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सन् 1978 के मेनका गांधी मामले में प्रशासन और सरकार की कार्यविधि के बारे में अनेक मार्गदर्शक सिद्धांत तय किए थे, जिनकी बुल्डोजर में अनदेखी हो रही है। सी.आर.पी.सी. की धारा-133 के तहत सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण गिराना सरकार के अधिकार के साथ उसकी बड़ी जिम्मेदारी भी है। 

मध्य प्रदेश और दूसरी जगहों पर जिस मुस्तैदी से आरोपियों की सम्पत्ति को गिराया जा रहा है उससे ऐसा लगता है कि शिकायतकत्र्ता , जांच अधिकारी, जज और जल्लाद सभी का सामूहिक अधिकार बुल्डोजर में समाहित हो गया है। जिस तरीके से आनन-फानन में अपराधी की पहचान और बुल्डोल्जरी कार्रवाई का चलन बढ़ रहा है इससे आगे चलकर पुलिस जांच, आरोप-पत्र, गवाह, सबूत, बयान, जिरह, अदालती फैसला, अपील और पूरा न्यायिक सिस्टम बेमानी हो सकता है। 

सरकारों में शामिल जो नेता बुल्डोजर संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं उनमें से एक तिहाई लोगों के खिलाफ गंभीर अपराधों के मामले चल रहे हैं। बुल्डोजर के नाम पर झटपट न्याय की बात करने वाली व्यवस्था में सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे 5,000 से ज्यादा आपराधिक मामले कई सालों से लम्बित हैं। संविधान के अनुसार सभी लोग बराबर हैं, तो फिर सभी दलों के माफिया नेताओं और रसूखदारों की अवैध संपत्तियों पर भी बुल्डोजर चलना चाहिए। 

कानून के तहत अपराधी के परिवारजनों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन बुल्डोजर के निशाने पर अपराधियों के साथ उनके परिजन भी आ जाते हैं। मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए गए घरों पर भी बुल्डोजर चला है। ऐसे घरों पर बुल्डोजर चलाने से पहले क्या उन सरकारी अधिकारियों की नौकरी पर बुल्डोजर नहीं चलना चाहिए, जिन्होंने सरकारी पैसों से अवैध घरों का निर्माण करवा दिया। 

देश में लाखों एकड़ सरकारी और रेलवे की जमीन पर भू-माफिया द्वारा अवैध झुग्गी-झोंपड़ी बना दी जाती हैं। ऐसे भू-माफिया, चुनावों के समय  अवैध बस्तियों में रहने वाले लोग संगठित वोट बैंक बन जाते हैं। ऐसी बस्तियों पर बुल्डोजर चलाने की बजाय मंत्रिमंडल की सहमति से उन्हें कानूनी दर्जा दिए जाने का प्रचलन है। 

व्हाट्सएप और सोशल मीडिया का चलन बढऩे के बाद चिट्ठी और स्पीड पोस्ट का सिस्टम खत्म-सा हो गया है। टी.वी. में ब्रेकिंग न्यूज के बढ़ते चलन से ड्राइंग रूम में बैठे लोगों का बुल्डोजर के चलने से मनोरंजन के साथ रोमांच भी बढ़ रहा है। लेकिन बुल्डोजर अगर सरकार और प्रशासन की संस्कृति बन गया तो फिर संविधान और न्यायिक व्यवस्था का आधार और ज्यादा कमजोर होगा। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वंचित और गरीब लोगों पर बुल्डोजर की मार नहीं पड़ेगी। 

दूसरी तरफ उड़ीसा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा है कि कानूनी-व्यवस्था की मार अशिक्षित, गरीब और वंचित वर्ग पर ही ज्यादा पड़ती है। संवैधानिक व्यवस्था को बचाने के लिए यह जरूरी है कि पुलिस और अदालतें जल्द न्याय का सिस्टम बनाएं, जिससे नेताओं को बुल्डोजर की मौज लेने से रोका जा सके।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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