भाजपा बिहार के सत्ता परिवर्तन को हल्के में न ले

punjabkesari.in Wednesday, Aug 17, 2022 - 05:19 AM (IST)

आश्चर्य इस बात का नहीं कि नीतीश बाबू बिहार में भाजपा का दामन छोड़ गए? हैरानी इस घटनाक्रम से भी लोगों को नहीं कि भाजपा और जनता दल (यू) का लम्बा चला गठबंधन टूट गया? इस पर भी मतभेद नहीं कि कल तक यही नारे लगाए जा रहे थे कि नीतीश और मोदी की दोस्ती अमर है? कल तक यही बात सर्वविदित थी कि बिहार का कायाकल्प मोदी और नीतीश कुमार की राजनीतिक जोड़ी ही कर सकती है। 

राजनीति के धुरंधर लोगों को आश्चर्य इस बात का है कि आज जब सारे राजनीतिक विपक्षी दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है,सब राजनेता अपनी-अपनी पार्टी को अलविदा कह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं, ऐसे समय में नीतीश बाबू ने पाला क्यों बदला। आज जब भारतीय जनता पार्टी में सब वहीं उजाला ही उजाला है तो ऐसे नाजुक वक्त में नीतीश बाबू ने बिहार में अंधेरे का रास्ता क्यों पकड़ा?

भाजपा में आज जब हर कहीं हरा ही हरा है तो जनता दल (यू) अलग क्यों हो गया? आज तो भारतीय जनता  पार्टी का सूरज अपनेे पूरे यौवन पर है तो नीतीश कुमार ने ढलान का मार्ग क्यों चुना? राजनीति के पंडित हैरान इस बात पर हैं कि नीतीश-मोदी की जोड़ी ने तो बिहार का कायाकल्प करने की ठानी थी तो नीतीश कुमार ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारी है क्यों डूबते जहाज पर जा बैठे हैं? 

कोई राजनेता जिसे भारतीय जनता पार्टी ने कम एम.एल.ऐज के होते हुुए भी बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। अलग छलांग क्यों मार गया? यह तो भारतीय जनता पार्टी का ‘स्वर्णकाल’ है, जिधर भी हाथ उठाओ भारतीय जनता पार्टी का राज ही राज दिखाई देता है तो ऐसे स्वर्णयुग को नीतीश ने ठुकरा क्यों दिया? आज जब कांग्रेस मृत पड़ी है, देश विपक्ष विहीन है, हर तरफ अमित शाह और मोदी की ओर राजनेता लपक रहे हैं नीतीश कुमार को उजाले से अंधेरे की ओर जाने की क्या सूझी? कुछ तो मजबूरियां नीतीश की रही होंगी, वरना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता? पहली मजबूरी कि जनता दल (यू) का धरातल खत्म हो रहा था। 

यूं भी एक मनोवैज्ञानिक भय नीतीश कुमार को सताए जा रहा था कि उनके दल को 2020 की विधानसभा चुनावों में महज 43 सीटें और भारतीय जनता पार्टी को 75 सीटें मिली थीं तो सोच यही रही कि कम सीटों वाले दल को मुख्यमंत्री का पद भाजपा ने क्यों सौंपा। यूं भी बड़े राजनीतिक दल का डर तो छोटे राजनीतिक दल के अस्तित्व को बना ही रहता है। अब इस घटनाक्रम को कोई बिहार की जनता से बेवफाई कहे या जनादेश का निरादर, नीतीश कुमार को कोई ‘धोखेबाज कहे या पलटूराम’। इसका कोई अर्थ नहीं। यह तो राजनीति है। इसमें सब चलता है। देखना यह है कि नीतीश कुमार के इस कदम से बिहार में राजनीति स्थायी रूप से टिक पाती है या नहीं? 

सबको पता है कि राजनीति किसी की नहीं होती। आज जो इसमें परममित्र हैं कल खंजर लिए मिलेंगे। रिश्तों की राजनीति में कोई अहमियत नहीं होती। कोई पिता-पुत्र, भाई-बहन नहीं। इसमें जिसे पालो, वही तो छुरा घोंपेगा। आज जिसकी प्रशंसा में कसीदे गढ़े जाएंगे कल वही गद्दार कहे जाएंगे। रात के मित्र सुबह शत्रुओं की पंक्ति में खड़े मिलेंगे। कल तक भाजपा और जनता दल (यू) का जन्म जन्मांतर का अटूट रिश्ता था आज वह रिश्ता तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय-जनता दल से जुड़ गया। नीतीश-तेजस्वी चाचा भतीजा हो गए। कल बिहार का भला भाजपा और जनता दल (यू) से होने वाला था आज वह भला तेजस्वी यादव और नीतीश की जोड़ी करेगी। कल जनता यह सब घटनाक्रम भूल जाएगी। 

लोकतंत्र को सजाने-संवारने की किसी राजनेता को ङ्क्षचता नहीं। संविधान की रक्षा किसी राजनीतिक दल का कत्र्तव्य नहीं। इस राजनीति में जो चल गया, वही सिकंदर। पर बिहार के इस घटनाक्रम को भाजपा हल्के में न ले। बिहार यू.पी. नहीं और न ही बिहार में भारतीय जनता पार्टी के पास योगी आदित्यनाथ हैं। यह बिहार है ‘अशोका दा ग्रेट’ का चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का, महात्मा बुद्ध और गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी महाराज का, महात्मा बुद्ध को बोधिसत्व यहीं प्राप्त हुआ था, गया जैसा तीर्थ स्थान और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय इसी बिहार की धरती पर हुए। विश्व गुरु भारत इसी बाहर की पुण्य भूमि में हुआ। 

‘पाटलीपुत्र’ गुप्त साम्राज्य की राजधानी इसी बिहार में है। बौद्धों के निरतंर विहार करते रहने से इसका बिहार नाम पड़ा। भारत के ऋषि-मुनियों ने अपने अध्यात्म का प्रचार इसी बिहार से किया। कौटिल्य के अर्थशास्त्र और प्रसाद के चंद्रगुप्त जैसे राजनीतिक और नाटकशास्त्रों का जन्म बिहार की पृष्ठभूमि पर हुआ। बिहार अध्यात्मवाद का केंद्र है। भारत के अन्य राज्यों को श्रमिक यहीं बिहार का प्रांत करता है। जनसंख्या की दृष्टि से देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का 12वां सबसे बड़ा क्षेत्र है। इसी बिहार के दक्षिणी भाग को काट कर ‘झारखंड’ एक नया प्रदेश 2000 में जनता को दिया गया। 

भारत के उत्तर-पूर्व में यह एक ऐतिहासिक प्रांत है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तक तो नीतीश बाबू विपक्षी गठबंधन को मजबूत बनाएंगे। ममता बनर्जी, राहुल गांधी, वामदल, चंद्र बाबू नायडू, डी. राम के नेता स्टालिन, के चंद्रशेखर राव, राबड़ी देवी और सोनिया गांधी के महागठबंधन में नीतीश कुमार क्या भूमिका निभाएंगे, यह समय तय करेगा परन्तु नीतीश कुमार का यह कहना कि 2014 वाले क्या 2024  के घटनाक्रम को दोहरा पाएंगे? इसका चिंतन भारतीय जनता पार्टी को करना होगा। भाजपा नीतीश बाबू के पाला बदलने को हल्के में न ले। यह गलतफहमी भाजपा को नहीं पालनी चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी के सामने अन्य विपक्षी दलों की कोई अहमियत नहीं। कल कुछ भी हो सकता है। वक्त देखो।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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