भाजपा को अब अखिलेश व सपा की चिंता करने की जरूरत

punjabkesari.in Monday, Mar 14, 2022 - 04:19 AM (IST)

दिलचस्प  बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने बेशक उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करके इतिहास रच दिया है लेकिन इसे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी द्वारा दी गई अत्यंत साहसपूर्ण लड़ाई के बारे में ङ्क्षचता करने की जरूरत है जिसने अपनी मत हिस्सेदारी 2017 के विधानसभा चुनावों में 21.8 प्रतिशत से बढ़ा कर 32.1 प्रतिशत कर ली है। इसके अतिरिक्त सत्ताधारी पार्टी की वर्तमान 39.6 प्रतिशत मत हिस्सेदारी की तुलना में इसने अपने खाते में 64 सीटों की वृद्धि की है। 

सपा तथा भाजपा के बीच अंतर 10 प्रतिशत से भी कम का है यद्यपि इसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अतिरिक्त अमित शाह, जे.पी. नड्डा तथा वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों आदि के द्वारा आक्रामक प्रचार के साथ इसका सामना किया था। भाजपा आधिकारिक मशीनरी, सशक्त आर.एस.एस. काडर, अथाह स्रोत, निष्ठापूर्ण पार्टी काडर से लैस थी जबकि अखिलेश यादव को यादवों तथा मुसलमानों को लाभ पहुंचाने वाले की छवि से बाहर आने के लिए संघर्ष करना था। हालांकि वह आधा दर्जन से अधिक जातिवादी समूहों के नेताओं के साथ गठबंधन करने में सफल रहे।

विश्लेषकों की राय है कि भाजपानीत गठबंधन तथा सपा-राजद गठबंधन के बीच अब अंतर मात्र 9.2 प्रतिशत का है जबकि इस बार भाजपा को पराजित करने के लिए इसे 15.4 प्रतिशत के बदलाव की जरूरत थी। 

अब उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा तथा भाजपा की हमला करने की क्षमता का परीक्षण होगा जो मोदी के लिए सत्ता में बने रहने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आंकड़े दर्शाते हैं कि नरेन्द्र मोदी के उभार के साथ भाजपा की मत हिस्सेदारी 39.6 प्रतिशत तक पहुंच गई तथा पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव जीत लिए हालांकि पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई थी। सपा तथा बसपा को 50 प्रतिशत से अधिक वोट पड़ते थे जो 2019 के संसदीय चुनावों में नीचे आ गए जिसने भाजपा को प्रोत्साहित किया। 

नरेश के सामने नैरेटिव बदलने की चुनौती थी इसलिए उन्होंने जाति आधारित आधा दर्जन से भी अधिक छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करना चुना, जिसने इसे यादवों तथा मुसलमानों के संगठन होने के कलंक से बाहर निकाला। उन्होंने गैर-यादवों तथा ओ.बी.सी. की ओर पूरा ध्यान दिया। सपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लाभ हुआ हालांकि इसने यादवों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में कुछ जमीन भाजपा को गंवा दी। भाजपा को इस तथ्य पर ध्यान देने की जरूरत है कि 2017 के चुनावों में इसे सपा पर 18 प्रतिशत वोटों का लाभ प्राप्त था जो 2019 के संसदीय चुनावों में बढ़कर 19 प्रतिशत हो गया था। 

कांग्रेस को तुरंत जीर्णोद्धार की जरूरत : जी-23 नेता फिर से सक्रिय हैं और 5 राज्यों में पराजय को लेकर खुली तथा स्वतंत्र चर्चा के बाद पार्टी की तुरंत सर्जरी के पक्ष में हैं। 2024 के संसदीय चुनावों में मोदी की भाजपा का सामना करने के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने का यदि विपक्ष कोई प्रयास करता है तो उसमें इसकी तोल-मोल की ताकत भी कम हुई है।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि राहुल गांधी को आगे आना और खुलकर यह घोषित कर देना चाहिए कि संगठनात्मक प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह पार्टी के नियमित अध्यक्ष के तौर पर कमान संभालेंगे। कांग्रेस ने गुजरात तथा हिमाचल में अच्छी कारगुजारी दिखाई है और इसलिए यह दोनों में भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठा सकती है। मगर कांग्रेस अव्यवस्थित है जो राज्यस्तर पर भी खराब संकेत भेजता है इसलिए केन्द्र में इसे मजबूत करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिएं। 

जनता का गुस्सा ला सकता है बदलाव : यह 1977 में था जब जनता का गुस्सा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा के खिलाफ चरम पर था। इसलिए जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने रायबरेली से उन्हें 55,200 वोटों के अंतर से हरा दिया था। इसके अतिरिक्त लगभग सभी कांग्रेसी हार गए थे जिसने इंदिरा के राजनीतिक करियर को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई थी। अब 45 वर्षों के बाद पंजाब में इसे दोहराया गया है जब अरविन्द केजरीवाल नीत आम आदमी पार्टी की सुनामी ने कांग्रेस को अत्यधिक नुक्सान पहुंचाया है जिसका श्रेय सामान्य जनता की पूर्ण निराशा तथा गुस्से को दिया जा सकता है। प्रकाश सिंह बादल, महाराजा पटियाला एवं पूर्व मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, राजेन्द्र कौर भ_ल, राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत बादल आदि सहित ताकतवर सामंतवादी तथा मजबूत नेताओं के खिलाफ जनता में कितना गुस्सा था। 

केजरीवाल गुजरात तथा हिमाचल के लिए तैयार : भारत के सर्वाधिक प्रगतिशील राज्यों में से एक पंजाब में ‘आप’ को बहुत बड़ी विजय प्राप्त हुई है, जो इसे मजबूत बनने तथा दिल्ली विधानसभा चुनावों में पुन: विजय प्राप्त करने में मदद करेगी। एक क्षेत्रीय दल के तौर पर ‘आप’ ने दूसरा महत्वपूर्ण सीमांत राज्य जीता है जो राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रमुख दावेदार होने की स्थिति के लिए रास्ता साफ करता है और पार्टी संभवत: 2024 के संसदीय चुनावों में भाजपा का सामना करने के लिए संयुक्त विपक्ष के एक स्वीकार्य चेहरे के तौर पर अरविन्द केजरीवाल को पेश करने की योजना बना सकती है। ‘आप’ ने गोवा में भी दस्तक दी है जो इसकी अन्य राज्यों में विस्तार करने की महत्वाकांक्षा दर्शाती है। 

पंजाब में विजय केजरीवाल को गुजरात पर ध्यान केंद्रित करने को प्रोत्साहित कर सकती है जहां नवम्बर 2022 में चुनाव होने हैं। ‘आप’ ने गत वर्ष गांधीनगर तथा सूरत में निकाय चुनावों में उल्लेखनीय फायदा उठाया जो पार्टी कार्यकत्र्ताओं को प्रोत्साहित करेगा। मगर चुनावों के दौरान केजरीवाल द्वारा किए गए बड़े-बड़े वायदों के अतिरिक्त भ्रष्टाचार, ड्रग्स की बुराई तथा वित्तीय दबाव को संभालना ‘आप’  के लिए एक बहुत बड़ा कार्य होगा। इसके साथ ही पार्टी ने इस वर्ष नवम्बर में ही हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी कमर कस ली है।-के.एस. तोमर
 


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