एक-एक कर ‘दफन’ होतीं भाजपा सरकारें

punjabkesari.in Tuesday, Dec 24, 2019 - 03:42 AM (IST)

भाजपा को प्रादेशिक आघात पर आघात। एक और आघात। अब तक 6 प्रदेशों से भाजपा की सरकारें दफन हुईं। झारखंड में भी भाजपा को जनता ने सत्ता से बाहर कर आघात दे दिया, सबक दे दिया। झारखंड में भी भाजपा की हार के लिए वही कारण जिम्मेदार थे जो मध्य प्रदेश में थे, जो छत्तीसगढ़ व राजस्थान में थे। यानी कि प्रादेशिक भाजपा सरकारों का निरंकुश हो जाना, अति सैक्युलर हो जाना, प्रोफैशनल टाइप के लोगों की सरकार बन कर रह जाना, अपने हिन्दुत्व के एजैंडे को लात मार कर चलना, भ्रष्ट नौकरशाही को सिर पर बिठा कर रखना, नौकरशाही के खिलाफ बोलने वाले अपने ही कार्यकत्र्ताओं को जेल में डाल देना, अपने ही संगठनों के लोगों को पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों से उत्पीड़ित करवाना आदि ऐसे कारण रहे हैं जिससे भाजपा की झारखंड सरकार को जनता ने खारिज करने का काम किया। 

यह बार-बार प्रश्न उठता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपनी प्रादेशिक सरकारों को अति सैक्युलर कैसे बनने देता है, अपने वोट बैंक हिन्दुत्व को लात मारने की आजादी कैसे देता है, अपने ही विभिन्न क्षेत्रों के कार्यकत्र्ताओं पर पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों से प्रताडि़त कराने की आजादी कैसे देता है, भ्रष्ट नौकरशाही को गले लगाने के लिए कैसे छोड़ देता है, नौकरशाही-कर्मचारी को जनता को प्रताडि़त करने और रिश्वतखोरी करने के लिए कैसे छोड़ देता है? जब तक उपर्युक्त प्रश्नों का भाजपा का शीर्ष नेतृत्व समाधान नहीं करता है तब तक राज्यों से भाजपा की सरकारें इसी तरह दफन होती रहेंगी। सिर्फ सरकारें ही दफन नहीं होती हैं बल्कि पार्टी संगठन भी कमजोर होता है, कार्यकत्र्ताओं का मनोबल भी टूटता है, समर्थक वर्ग भी आक्रोशित होकर दूसरी पाॢटयों की ओर चला जाता है। झारखंड विधानसभा चुनावों में यह देखा गया कि भाजपा का परम्परागत समर्थक वर्ग भी दूसरी पार्टियों की ओर जाते हुए स्पष्ट तौर पर देखा जा रहा था पर यह देखने की दृष्टि भाजपा और संघ परिवार में पेट व परिवार पालने वालों के पास थी ही नहीं। 

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को अब अपनी यह गलतफहमी भी तोड़ लेनी चाहिए कि वे अपने बल पर प्रादेशिक सरकारों के क्षरण को रोक देंगे, प्रादेशिक सरकारों की अराजकता को राजकता में बदल देंगे, जनता के गुस्से को खुशी में बदल देंगे? अगर ऐसा हुआ होता तो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के जोरदार चुनावी अभियानों और चुनावी भाषणों के बाद भी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की भाजपा सरकारें दफन न होतीं? नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के चुनावी प्रयासों के बाद भी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा सरकारें फिर से वापस नहीं आ सकी थीं। 

हरियाणा की मिसाल
हरियाणा में क्या हुआ, यह देख लीजिए। हरियाणा में भी भाजपा बहुमत से दूर हो गई थी। सरकार बनाने के लिए नवोदित दल के सामने न केवल भाजपा को झुकना पड़ा था बल्कि यह कहना सही होगा कि उस नवोदित दल के सामने चरणवंदना तक करनी पड़ी थी, फिर कहीं हरियाणा में गठबंधन की सरकार का नेतृत्व करने का अवसर भाजपा को मिला था। महाराष्ट्र में लगातार 5 साल शिवसेना की गालियां सुनने के बाद भी भाजपा की वीरता नहीं जगी थी, देवेन्द्र फडऩवीस के लिए उद्धव ठाकरे मित्र बने रहे, दुष्परिणाम महाराष्ट्र में क्या मिला, यह बताने की जरूरत है क्या? 

झारखंड में 40 से ज्यादा स्टार प्रचारक थे
मोदी और शाह ने रघुवर सरकार की अराजकता, रिश्वतखोरी, पुलिस-प्रशासनिक अत्याचार, औद्योगिक और कार्पोरेट प्रेम से उपजी जनता की नाराजगी को दूर करने के लिए बड़ी कोशिश की थी। आंकड़े कहते हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी और शाह ने 81 में से 60 सीटों पर प्रचार कवर किए थे। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इतनी बड़ी-बड़ी सभाएं कर भी विफल साबित हुए तब यह अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि रघुवर दास कितने अराजक, कितने असफल और कितने जनता विरोधी थे। सिर्फ  नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की चुनावी सभाओं की ही बात नहीं थी बल्कि भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित 40 से ज्यादा स्टार प्रचारक थे जबकि कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा तथा राजद के स्टार प्रचारकों की संख्या बहुत ही सीमित थीे। झारखंड मुक्ति मोर्चा की तरफ  से तो सिर्फ  मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हेमंत सोरेन ही स्टार प्रचारक थे। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी मात्र कुछ सीटों पर ही चुनाव प्रचार किया था। 

रघुवर दास बहुत घमंडी थे
भाजपा की प्रादेशिक सरकार को चलाने वाले तीन स्तम्भ होते हैं, यही तीनों की भूमिका होती है, सभी राजनीतिक निर्णयों में यही तीनों की सहमति-असहमति होती है। पहला मुख्यमंत्री, दूसरा प्रादेशिक संगठन मंत्री और तीसरा संघ का प्रादेशिक प्रमुख। माना कि मुख्यमंत्री रघुवर दास बहुत ही घमंडी थे, जनता की चिंताओं को पकडऩे की उनमें दृष्टि नहीं थी और वे भ्रष्ट नौकरशाही पर सवार थे तो फिर प्रादेशिक संगठन मंत्री और संघ के प्रादेशिक प्रमुख की भूमिका भी उसमें कहीं न कहीं शामिल थी। भाजपा और संघ को अंदर से जानने वालों को यह पता होता है कि प्रादेशिक सरकार को चलाने और नियंत्रण में रखने के लिए प्रादेशिक संगठन मंत्री और प्रादेशिक संघ प्रमुख की भूमिका कैसी होती है? प्रादेशिक संघ प्रमुख तो प्रचारक होते ही हैं, इसके अलावा भाजपा का संगठन मंत्री भी संघ का प्रचारक होता है, संघ ही संगठन मंत्री के रूप में अपने प्रचारकों को भेजता है। झारखंड में भाजपा के संगठन मंत्री और संघ के प्रादेशिक प्रमुख भी सरकार की अराजकता के रंग में रंग गए थे। 

जब मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद हिन्दुत्व विरोध में खड़े होकर गौ रक्षकों को जेल भिजवा रहे थे, गौ रक्षकों को आजीवन सजा करा रहे थे, हिन्दुओं को चिढ़ाने के लिए हज हाऊस बना रहे थे तब संगठन मंत्री पैरवीकार की भूमिका में थे, संघ प्रमुख अपनी जाति को आगे बढ़ाने में लगे हुए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि रघुवर दास की पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद और अन्य इकाइयों के सैंकड़ों लोगों पर मुकद्दमे डाल दिए, लातेहार के बीस सूत्रीय कार्यक्रम के उपाध्यक्ष  राजधानी यादव ने एक अधिकारी की जनविरोधी-रिश्वतखोरी के खिलाफ  मुंह खोला तो फिर उस पर गलत मुकद्दमे लगा कर उन्हें महीनों जेल में सड़ाया गया, जब शिकायत रघुवर दास से हुई तो फिर उनका नौकरशाही प्रेम जाग गया, झिड़क दिया कि साहेब से लडऩे वाले जेल ही जाएंगे। 

इस उदाहरण से भाजपा के नेता और कार्यकत्र्ता सिर्फ चुपचाप तमाशबीन बनना ही उचित समझते थे। रिश्वतखोर अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ बोल कर कौन कार्यकत्र्ता जेल जाना चाहता? ऐसी स्थिति में झारखंड में नरेन्द्र मोदी-अमित शाह का हिन्दुत्व तो दफन होना ही था, ऐसी स्थिति में तो नरेन्द्र मोदी-अमित शाह के भाषणों को बेअसर होना ही था। झारखंड के लोग कहते थे कि केन्द्र में मोदी जरूरी पर राज्य में भ्रष्ट और रिश्वतखोर वाली नौकरशाही प्रेम की सरकार हमें नहीं चाहिए। 

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अब अपनी खुशफहमी तोडऩी चाहिए, हिन्दुत्व से गद्दारी करने वाले अपने प्रादेशिक नेतृत्व पर लगाम लगानी ही होगी, ऐसा न कर दुष्परिणाम भी तो यही झेल रहे हैं, अगर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार के बाद सबक लिया होता और झारखंड की रघुवर सरकार की हिन्दुत्व विरोधी नीति पर लगाम लगाई होती, भ्रष्ट नौकरशाही और भ्रष्ट कर्मचारियों को पालने के खिलाफ कार्रवाई की होती, रघुवर दास की सरकार को जनाकांक्षी बनाने पर ध्यान दिया होता तो आज झारखंड की भाजपा सरकार का पतन नहीं होता। पर फिर भी यही प्रश्न उठता है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपने प्रादेशिक नेतृत्व की कमजोरियों को दूर करने और उनकी अराजकता तथा अदूरदर्शिता पर लगाम लगाने के लिए तैयार है। भाजपा से अभी तो 6 ही प्रदेश बाहर गए हैं, आगे भी एक-एक कर अन्य प्रदेशों की भाजपा सरकारें इसी तरह दफन होती रहेंगी।-विष्णु गुप्त
 


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