...क्योंकि नारों को समझ नहीं पाई थी ब्रिटेन की पुलिस

punjabkesari.in Monday, Sep 26, 2022 - 06:04 AM (IST)

मेरे भारतीय वार्ताकार ने लीसेस्टर से फोन पर कहा कि, ‘‘यहां की पुलिस हिन्दी नहीं समझती जय श्री राम का उनके लिए कोई मतलब नहीं।’’ ठीक यही बात मुस्लिम विरोधी आंदोलनकारी नारे लगा रहे थे। जाहिर है कि मुसलमान हिन्दुओं को भड़काने के लिए ऐसा ही कुछ कर रहे थे। पुलिस का दायरा बड़ा दिया गया था क्योंकि ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के अंतिम संस्कार के कारण ड्यूटी के लिए कई पुलिस यूनिट्स को लंदन ले जाया गया था।

ब्रिटेन में उपमहाद्वीप साम्प्रदायिकता का निर्यात अब एक तमाशा बनाने के लिए पर्याप्त रूप से परिपक्व हो गया है। ‘द संडे टाइम्स’ ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान जब मैंने पहली मर्तबा इस तरह के मुद्दों से खुद को परिचित कराया तो ब्रिटेन को कोई हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष दिखाई नहीं दिया था। हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का निर्यात नहीं किया गया था क्योंकि तब यह अस्तित्व में नहीं था। मगर हां, कंजर्वेटिव सांसद हनोक पॉवेल द्वारा 1968 में अपना प्रसिद्ध ‘खून की नदियां’ भाषण दिए जाने के बाद एक बड़ी प्रवासी समस्या उत्पन्न हो गई थी। मैं खून से लथपथ तिबर नदी को देखता हूं।

जिस तरह के संघर्ष से मैंने बपतिस्मा लिया वह धार्मिक से अधिक नस्लीय था जब द संडे टाइम्स के वरिष्ठ संपादक ब्रूस पेज ने मुझसे कहा कि हैरी इवांस का सुझाव है कि आपके पास वेस्ट मिडलैंड्स में हनोक पॉवेल के निर्वाचन क्षेत्र वॉल्वरहैम्पटन में अतिरिक्त अंतर्दृष्टि हो सकती है। हैरी  इवांस महान संपादकों में से एक था। वॉल्वरहैम्पटन पहुंचने पर मेरा सामना एक पहेली से हुआ। कार्यालय में इस कार्य के लिए मुझ जैसे नौसिखिया को क्यों चुना गया था? मैं हैरान था क्योंकि इस सारी कहानी में भारत-पाक या दक्षिण एशियाई कोई कोण नजर नहीं आया जिस सड़क पर हनोक पॉवेल रहते थे उस पार 100 प्रतिशत पश्चिम भारतीयों का कब्जा था।

कसाई की दुकान, पब और लांड्री सभी अश्वेतों द्वारा चलाए जा रहे थे। क्या हनोक पॉवेल का घर एकांत में था? उपमहाद्वीप के शुरूआती प्रवासियों ने मनोरंजक कहानियां दी थीं। ‘ईवङ्क्षनग  स्टैंडर्ड’ ने डोवर में गिरफ्तार 3 पाकिस्तानियों के बारे में कहानी को आगे बढ़ाया। अगली सुबह समाचार पत्र ने गलती में सुधार किया क्योंकि गिरफ्तार किए गए तीनों ही लोग भारतीय थे। अवैध रूप से प्रवेश के लिए डोवर में पकड़े गए तीन सिखों ने खुद को पाकिस्तानी घोषित कर दिया था। दस्तावेजों ने उन्हें भारतीय के रूप में स्थापित किया।

एक नकारात्मक प्रचार से बचने के लिए एक राष्ट्रीयता की मांग की गई थी। एक छोटा सा धोखा पूरी तरह से द्वेष से रहित था। 60 के दशक में अंग्रेजों के पास पाकिस्तान नामक एक नया देश एक सबसे खतरनाक धारणा थी। नए देश के अस्तित्व की पहली रूपरेखा एक अशांत अंग्रेजी माथे पर दर्ज की गई जब फजल महमूद ने 1954 में 12 विकेटों के साथ ओवल टैस्ट जीता था। उसके बाद पूर्वी पाकिस्तान के सिलहिट (अब बंगलादेश) से बावर्ची आए जिन्होंने भारतीय रेस्तरां खोले।

एक समय तो लंदन में 90 प्रतिशत भारतीय रेस्तरांओं के मालिक सिलहिट से आने वाले लोग थे। बलबीर सिंह और दिलजीत सिंह ने कुछ विचित्र कारण के लिए अपनी राष्ट्रीयता को छुपाया, वहीं मीरपुर खास के मुसलमानों को भारतीयों के लिए ले जाने से चिढ़ थी। इसलिए वे अपनी पाकिस्तानी राष्ट्रीयता का दावा करने के लिए अधिक आक्रामक थे। भारतीय दो रूपों में उभरने लगे।  एक तो पब वाले थे और दूसरे ज्यादातर गैर पंजाबी थे जो बड़े विनम्र और मेहनती थे। दोनों समूहों के बीच या फिर सीमाओं के पार भी कोई शत्रुता वाली चीज न थी।

मेरे मित्र विनोद मेहता जो भारत में एक प्रसिद्ध संपादक बनने वाले थे ने इंगलैंड में अपने विज्ञापन संबंधी कार्यों के दौरान मीरपुर और सिलहिट के जावेद भट्ट और महफूज रहमान के साथ एक हंसमुख रिश्ता कायम किया था। हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक अंतर पहले भारतीय और फिर पाकिस्तानी विविधताओं के रूप में सामने आया। एक गंभीर विषय यह था कि पाकिस्तानी हलाल मीट की खोज करते थे। भले ही सिख और उनके पंजाबी भाई कभी-कभी अपने कपड़ों को सुखाने के लिए लॉन का प्रयोग करते थे।

उन्होंने अंग्रेजों द्वारा प्रशंसित पारिवारिक मूल्यों को संरक्षित किया। भारतीय आप्रवासी हमेशा अपने परिवारों के साथ आते थे। दूसरी ओर मीरपुर से आने वाले लोग दावा करते थे कि उनका परिवार तथा बच्चे पीछे रह गए हैं। इसने अजीबो-गरीब तरीके से अंग्रेजी ङ्क्षलग संतुलन को बाधित कर दिया। 60 और 70 के दशक तक यू.के. की ओर जाने वाले युवा भारतीयों को ब्रिटिश उच्चायोग द्वारा एक निबंध दिया जाता था जिसमें से एक खंड एक ऐसा रत्न था जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। लंदन में रहने के दौरान आपको एक अकेली महिला द्वारा चाय पर अपने अपार्टमैंट में आमंत्रित किया जा सकता था।

एक अवधि के दौरान मीरपुर से आए लोगों में इतनी दुर्भावना भर गई कि जब नस्लीय संबंध बिगड़ गए तो नस्लीय विभाजन को परिभाषित करने वाली अभिव्यक्ति पाकिस्तान को कोसती थी। एक हिन्दू को कोसने जैसी अभिव्यक्ति क्षण भर की थी। भारत के दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा एन.आर.आई. भीषम अग्निहोत्री को एन.आर.आई. मुद्दों पर वाशिंगटन डी.सी. में भारतीय राजदूत के विशेष सलाहकार के रूप में नियुक्त करने के बाद ही भारत सरकार ने हिन्दुओं से संबंधित मुद्दों पर पक्ष लेना शुरू किया।

यह अनुमान कि ब्रिटिश सरकार लीसेस्टर में मार्च करने वालों के साथ सहानुभूति रखेगी और मुसलमानों पर छींटाकशी करेगी, शायद इसकी उत्पत्ति 9/11 के बाद के वैश्विक इस्लामी फोबिया में हुई है। जिसने हमारे अपने हिन्दुत्व के लिए एक बड़ा कवर प्रदान किया जब मोदी  गुजरात के मुख्यमंत्री बने और टोनी ब्लेयर ने ब्रिटेन पर शासन किया है।-सईद नकवी


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