... क्योंकि ‘जंग किसी मसले का हल नहीं’

punjabkesari.in Tuesday, Jun 01, 2021 - 04:43 AM (IST)

इसराईल और फिलस्तीन पिछले 74 वर्षों से नफरत के बारूद पर बैठे हुए हैं। मामूली-सी घटना को जंग में बदलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। समझदार पड़ोसियों की तरह दोस्ताना माहौल बनाने में अब तक बुरी तरह नाकामयाब हुए हैं।

दोनों में 11 दिन घमासान की लड़ाई हुई और फिर अमरीका का मोहतबराना और मित्रतापूर्ण दबाव तथा मिस्र की बुद्धिमता पूर्ण मध्यस्थता और नेतन्याहू की दूरदर्शिता से युद्ध विराम हो गया। युद्ध के दौरान 57 मुस्लिम देशों के संगठन ने फिलस्तीन की सहायता के लिए हंगामी सभा बुला ली और दूसरी तरफ अन्य 25 देशों ने इसराईल के समर्थन में बड़ी दृढ़ता से घोषणा कर दी। 

ऐसा मालूम होता था कि इस तनावग्रस्त स्थिति में विश्व तीसरे युद्ध की तरफ बढ़ रहा है परंतु युद्ध विराम से खतरा टल गया, लोगों ने सुख की सांस ली परंतु जेहादियों और युद्ध के उनमादियों की आशाओं पर पानी फिर गया। इसराईल 4 हजार वर्ष पूर्व मिस्र की नील नदी से लेकर ईराक में दजला और फुरात नदी तक फैला हुआ था पर वक्त ने ऐसी करवट ली कि यहूदियों को यहां से बेघर होना पड़ा और वे बेचिराग दर-ब-दर और खाना-बदोशों की जिंदगी बसर करने लगे। अपना देश न होने के कारण यहूदी इंगलैंड, जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, स्पेन, ऑस्ट्रिया, अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत और कुछ अरब देशों में रहने लगे। 

यहीं रहकर उन्होंने अपनी क्षमता, दक्षता, व्यवहार कुशलता और अनवेश्क प्रवृत्तियों, दूरदर्शता से खूब धन भी कमाया, ऊंचे स्थान हासिल किए मगर अपने देश को पुन: हासिल करने की हमेशा कोशिश करते रहे। 60 लाख यहूदियों को जर्मनी में हिटलर ने गैस चैंबरों में डालकर जला दिया था। यहीं हाल पोलैंड और ऑस्ट्रिया में रहने वालों का हुआ। यहूदियों ने सबसे ज्यादा प्रताडऩा और यातनाएं सही हैं। विकराल परिस्थितियों का सामना करते हुए वे भयानक से भयानक परिस्थितियों में भी भय ग्रस्त नहीं होते। डर भी उनसे डरने लगता है। यही उनकी मजबूती का कारण बना। 

यरूशलम इसराईल का एक प्राचीन शहर है। यहीं से यहूदी, ईसाई और इस्लाम का जन्म हुआ है और तीनों के पवित्र धार्मिक स्थान भी साथ-साथ हैं। इस इलाके में सर्वप्रथम इन सब के बुजुर्ग इब्राहिम हुए हैं। इब्राहिम से ही इन तीनों का जन्म माना जाता है। इसलिए इन्हें एब्रानी भी कहा जाता है। एक ही बुजुर्ग की औलाद होने के बावजूद तीनों धर्मों के लोग सदियों से आपस में लड़ रहे हैं। ईसाइयों ने तो 8 बार यरूशलम पर आक्रमण किया और लड़ाई के दौरान उन्होंने यहूदियों और मुसलमानों का भी कत्ल किया। 

दुर्भाग्य यह है कि इस इलाके को 52 बार युद्धों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले मिस्र के राजाओं ने इसराईल पर कब्जा कर लिया और उन्हें गुलाम बना लिया और फिर आक्रमणकारियों की  लहर चलती रही। इनमें आसरीयन, परशियन, यूनानी, रोमन, अरब, ममलूक, टॢकश साम्राज्य के बाद कुछ वर्ष अंग्रेजों को भी यहां शासन करने का मौका मिला।

प्रथम युद्ध 1914-18 के दौरान जब अंग्रेज तुर्की और अन्य देशों के साथ लड़ रहे थे तो 1917 में ब्रिटेन के विदेश मंत्री वालफोर ने यहूदियों को इसराईल में अपना देश बनाने की घोषणा की और यह आशा व्यक्त की कि यहूदी उनकी खुलकर मदद करें, अंग्रेजों ने भारत में भी इसी लड़ाई के दरमियान जि मेदार सरकार देने का वायदा किया था। 

यहूदी बड़े धनवान लोग हैं, उनमें से कई लोगों ने इसराईल जाकर जमीनें खरीदनी शुरू कर दीं। टॢकश साम्राज्य के पतन के बाद कई नए देशों ने जन्म लिया और अंग्रेजों के पास पूरा फिलस्तीन का इलाका आ गया। यहां यहूदियों को अपना देश बनाने में अंग्रेजों की तरफ से खुली छुट्टी मिल गई। फिर द्वितीय विश्व युद्ध 1939-45 के पश्चात 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, उसी समय यू.एन.ओ. में इसराईल के जन्म का भी फैसला कर दिया गया। यरूशलम में तीनों धर्मों के पवित्र धार्मिक स्थान होने के कारण इस शहर की देखरेख यू.एन.ओ. के पास रहेगी परंतु वास्तव में इसका प्रबंध तो इसराईल सरकार के पास ही आ गया। 

1948 में ब्रिटिश हुकूमत ने इसराईल और फिलस्तीन छोडऩे का फैसला किया और कुछ अरब देशों ने इसराईल पर आक्रमण कर दिया। विश्व का यह पहला देश है, जिसे जन्म लेते ही कई देशों से लडऩा पड़ा परंतु इसमें इसराईल को सफलता मिली। 1967 में 11 अरब देशों ने फिर इसराईल पर आक्रमण कर दिया। 

छह दिन की लड़ाई में इसराईल ने इन देशों को बुरी तरह पराजित करके उनके कई इलाकों पर कब्जा कर लिया और फिलस्तीन का भी बहुत सारा इलाका छीन लिया। इस तरह हर युद्ध में फिलस्तीन छोटा होता गया और इसराईल का क्षेत्रफल बढ़ता चला गया। विश्व मानचित्र पर यदि नजर डाली जाए तो इसराईल को ढूंढना अति मुश्किल नजर आता है परंतु एक छोटे से देश ने थोड़े ही वर्षों में अपनी बंजर जमीन को उपजाऊ बना लिया। 500 से ज्यादा क पनियां यहां काम करती हैं। खतरनाक असले का भंडार है, टैक्नोलॉजी में सबसे आगे है और कृषि क्षेत्र में ड्रीप प्रणाली की खोज करके इसराईल ने एक बहुत बड़ी क्रांति ला दी है। विश्व में नोबेल प्राइज जीतने वालों में यहूदियों की सं या अधिक है। 

इसराईल ने समूचे देश के नागरिकों को कोरोना टीका भी लगाने में एक नया कीॢतमान स्थापित किया। हकीकत में इसराईल प्रगति विकास शक्ति और राष्ट्र को सुरक्षित रखने की एक लासानी उदाहरण विश्व के देशों स मुख रखता है। क्योंकि भारतीय सरकार 1947 से लेकर आज तक फिलस्तीनियों को सुरक्षित रखने के अधिकार का समर्थन करती आई है, दोनों के शांति से रहने में ही विश्व का भला है। इसराईल और फिलस्तीन को धर्म के आधार पर नहीं देखना चाहिए बल्कि इनका राजनीतिक तौर पर एक पक्का हल निकालना चाहिए और विश्व में आतंकवादी संगठनों की सहायता करने वाले देश या देशों का विश्व स्तर पर बायकाट करना चाहिए ताकि विश्व में शांति बनाई जा सके और लोगों की समस्याओं का पु ता समाधान किया जा सके क्योंकि जंग किसी मसले का हल नहीं है।-प्रो.दरबारी लाल.पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा


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