बोतलबंद पानी के शौकीन हैं तो हो जाएं सावधान

punjabkesari.in Tuesday, Aug 17, 2021 - 05:45 AM (IST)

आज शुद्ध पेयजल की चुनौतियों के बीच बोतलबंद और कैन के पानी का उपयोग हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। मगर यह पानी सेहत और पर्यावरण के लिए कितना फायदेमंद या नुक्सानदायक है, इसको लेकर हाल ही में बाॢसलोना (स्पेन) में एक अध्ययन किया गया, जिसके अनुसार, बोतलबंद पानी का पारिस्थितिकी तंत्र पर 1400 गुना और जल स्रोतों पर 3500 गुना अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है।

बोतलबंद पानी को बनाने की प्रक्रिया में प्रतिवर्ष करीब 1.43 प्रजातियां धरती से खत्म हो रही हैं और जैव विविधता को नुक्सान पहुंच रहा है। गौरतलब है कि एक लीटर बोतलबंद पानी के लिए 1.6 लीटर पानी लगता है। इसमें भरा जाने वाला अधिकांश जल संसाधित भू-जल होता है, जिससे जलवाही स्तर घट रहा है। भारत में प्लास्टिक का व्यापक उत्पादन 6 दशक पहले शुरू हुआ था। 

बोतलबंद पानी की शुरूआत पॉलीथईलीन टेराप्थालेट (पी.ई.टी.) से सिंगल यूज बोतलों के बनने के बाद हुई। इस पॉलिस्टर प्लास्टिक ने तमाम पेय पदार्थों की बोतलबंद बिक्री शुरू करवा दी। इस प्लास्टिक को बायोडिग्रेड होने में वर्षों लग जाते हैं और जलाए जाने पर यह हानिकारक जहरीला धुआं छोड़ता है।

यूरोमॉनिटर के अनुसार, आज भारत में 5,000 से ज्यादा निर्माता हैं, जिनके पास ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड लाइसैंस हैं। भारत में बोतलबंद पानी के कारोबार को लेकर एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि यह सालाना लगभग 21 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रहा है। 2019 के आंकड़े गवाह हैं कि 160 अरब रुपए का यह कारोबार 2023 तक बढ़ कर 460 अरब के स्तर पर पहुंचने वाला है। इसका प्रत्यक्ष संबंध पर्यावरण से है। दुनिया भर में प्रचलित बोतलबंद पानी प्लास्टिक कचरे में बढ़ौतरी का मुख्य कारण है। जहां देश के सम्पन्न लोग बोतलबंद पानी पर अवलंबित होते जा रहे हैं, वहीं निर्धन जनता बूंद-बूंद पानी को तरस रही है। 

हम अपनी संस्कृति, सामथ्र्य और सिद्धांतों को त्यागकर हर चीज के बाजारीकरण में कूद रहे हैं और दूसरे देश हमारी परंपराएं अपना रहे हैं। पहले भारत में गर्मियों की शुरूआत से ही प्याऊ की व्यवस्था हो जाती थी। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक खराब पड़े सार्वजनिक हैंडपंपों और नलकूपों की मुरम्मत का काम शुरू हो जाता था। कुओं-तालाबों को साफ करने का काम होता था लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता यह व्यवस्था खत्म होती जा रही है। सड़क किनारे बने हैंडपंप हटाकर सड़कें चौड़ी की जा रही हैं। इससे हर तरफ पानी की किल्लत दिखने लगी है। बस, यहीं से व्यवसायियों को अवसर मिल रहा है। वे सीधे तौर पर प्राकृतिक जल को बोतलों में बंद करके बेच रहे हैं। भारत में बोतलबंद पानी नल से नहीं, बल्कि भूमिगत जल स्रोतों से आ रहा है। इसका कारोबार करने वाली कंपनियां सीधे-सीधे भूजल को बोतलों में भरकर बाजारों में बेच रही हैं। कई बार तो ऐसा भी सामने आया है कि इस जल को शुद्ध तक नहीं किया जाता। एक मायने में यह कहा जा सकता है कि यह भूमिगत जल का प्राइवेटाइजेशन हो गया है। 

पश्चिमी देशों में बोतलबंद पानी की शुरूआत 19वीं सदी में ही हो गई थी, हालांकि भारत में इसकी शुरूआत 1990 में हुई थी। नामी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने बोतलबंद पानी को बड़े बाजार के रूप में बदल दिया। शुरूआत में कुछ ब्रांड की बोतलें ही दिखती थीं लेकिन अब स्थानीय स्तर पर भी सैंकड़ों ब्रांड कारोबार कर रहे हैं। हर शहर में वहां के स्थानीय ब्रांड हैं, जो लोगों की प्यास बुझा रहे हैं। भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, इस समय देश में 5700 लाइसैंसी बॉटलिंग प्लांट हैं, जबकि नैचुरल मिनरल वाटर के सिर्फ 25 हैं। शोधकत्र्ताओं का कहना है कि इससे दोगुने प्लांट बिना लाइसैंस के चल रहे हैं। लोकसभा में पेश एक रिपोर्ट के मुताबिक, सूखा प्रभावित बुंदेलखंड में पानी का कारोबार करने वाली कंपनियों ने 25 बॉटलिंग प्लांट के लाइसैंस लिए हुए हैं। 

इस समय भारत दुनिया में बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करने वाला 10वां सबसे बड़ा देश है। इसका कारण एकदम स्पष्ट है। जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, पानी कम होने के साथ-साथ दूषित भी हो रहा है। बहरहाल, बोतल बंद पानी का ही सहारा है। भारत जैसे देश में नल से पीने योग्य पानी का आना बहुत ही आश्चर्यजनक लगता है। देश के बहुत से शहरों में सरकार या नगर निगम द्वारा आपूर्ति किए जा रहे पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो बेहद ही बुरा हाल है। ऐसे में हाल ही में ‘नल से पेयजल’ अभियान के तहत ओडिशा के पुरी ने 24 घंटे पीने का पानी उपलब्ध कराकर पूरे देश के सामने एक अनूठी मिसाल रखी है। 

पुरी में केवल पानी की गुणवत्ता को ही सुनिश्चित नहीं किया गया, बल्कि शहर के पानी को आई.एस. 10500 गुणवत्ता मानकों के स्तर पर पहुंचाया है। साथ ही लोगों को यह पानी हर जगह स्वच्छ और विश्वसनीय रूप से सुलभ हो सके, सरकार ने इसकी समुचित व्यवस्था भी की है, जिससे लोगों को पानी खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देश में पहली बार ड्रिंक फ्रॉम टैप योजना की शुरूआत के साथ अब पुरी शहर भी लंदन, लॉस एंजल्स तथा सिंगापुर जैसे शहरों की सूची में शामिल हो गया है। अगर पुरी जैसे भागीरथ प्रयास पूरे देश में देखने को मिलें तो बोतलबंद पानी के प्रति लोगों के रुझान में कमी आ सकती है।-देवेन्द्रराज सुथार 
 


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