सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक : हरित कुटीरों से मिलेगी विकास को नई दिशा

punjabkesari.in Tuesday, Jul 26, 2022 - 06:01 AM (IST)

सिंगल यूज प्लास्टिक रोक पर लिए गए भारत के फैसले आने वाले वर्षों में नए रंग बिखेरेंगे। रोजगार व उद्योगों के मद्देनजर सतही तौर पर ये फैसले अभी विकसित देशों के तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में कड़वे व कठिन भले ही लग रहे हों, लेकिन बहुत जल्द प्रदूषण के मामले में देश की फिजा ही नहीं बदलेगी, बल्कि कुटीर उद्योगों को भी नई ऊर्जा मिलेगी। सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक गांव-गांव में रोजगार के नए रास्ते भी खोलेगी, जो अंतत: ग्रामीण क्षेत्रों की आॢथकी को मजबूत करने में भी सहायक होगी। 

हाल ही की बात तरोताजा हो जाती है, जब पता चलता है कि मुंबई के माहिम बीच पर अमूमन शाम के वक्त घूमने-टहलने वाले लोग अब ऐसा नहीं कर पा रहे। इसकी वजह समुद्र की ओर से दिया गया वह रिटर्न गिफ्ट है, जिसकी उम्मीद किसी को नहीं रही होगी। पिछले दिनों हाईटाइड के वक्त समुद्र से बड़ी मात्रा में प्लास्टिक बह कर तट पर आ पहुंचा। दो महीने में ही बी.एम.सी. सिर्फ माहिम से 75 मीट्रिक टन कचरा एकत्र कर चुकी है, जिसमें बड़ा अनुपात प्लास्टिक कचरे का है। 

प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन नियम-2021 को अधिसूचित कर केंद्र सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री को 1 जुलाई से पूरी तरह प्रतिबंधित किया है। यह प्रतिबंध प्लास्टिक के कप, प्लेट, गिलास, चम्मच, चाकू, ट्रे, स्ट्रॉ, कैंडी और लॉलीपॉप में लगी स्टिक जैसे उन 19 सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादों पर है, जिनकी मोटाई 50 माइक्रॉन से कम है। इससे पहले 30 सितम्बर, 2021 से 75 माइक्रॉन तक की मोटाई वाले सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया था। एस.यू.पी. पर चरणबद्ध तरीके से लगने वाली रोक के अगले चरण में 31 दिसम्बर, 2022 से 120 माइक्रॉन मोटाई तक के प्लास्टिक पर रोक लग जाएगी। 

आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 11 किलो है, जबकि इसकी वैश्विक खपत 28 किलो है। रीसाइक्लिंग के आंकड़े प्लास्टिक के प्रति हमें और सचेत करते हैं। दुनिया में सिर्फ 9 फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) की 2019-20 की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 3.5 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा हर साल पैदा होता है। 

रिपोर्ट ने प्लास्टिक कचरे से मिट्टी और जल की गुणवत्ता पर पडऩे वाले असर पर चिंता जताई है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के बाजार का आकार 80,000 करोड़ रुपए का है। देश में 26,000 टन प्लास्टिक कचरा हर दिन पैदा होता है। दुर्भाग्य से देश में 60 फीसदी प्लास्टिक कचरे की रीसाइक्लिंग ही संभव है। 

भारत प्रति वर्ष 50 लाख टन से अधिक सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादित करता है, जबकि चीन अढ़ाई करोड़ टन, अमरीका 1.70 करोड़ टन एकल उपयोग प्लास्टिक पैदा करता है। इस वर्ष विश्व में प्लास्टिक का कुल उत्पादन 300 मिलियन टन रहने का अनुमान है। दुनिया में कुल उत्पादित प्लास्टिक का आधे से अधिक एकल उपयोग प्लास्टिक के रूप में है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम में कहा गया है कि यदि प्लास्टिक के बेतहाशा उपयोग पर तत्काल रोक नहीं लगी तो अगले कुछ दशकों में 10 लाख प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। महासागरों में जिस तेजी से प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है, उससे समुद्री परितंत्र में मूंगा चट्टान, शैवाल से लेकर अनेक सूक्ष्म जीव विलुप्त हो रहे हैं। प्लास्टिक पर बढ़ती निर्भरता से हमारी खाद्य शृंखला से लेकर अर्थतंत्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। सिर्फ एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के बढ़ते बेतहाशा उपयोग की एक बड़ी वजह पैकेजिंग के अन्य विकल्पों की कमी है। 

फिक्की की एक रिपोर्ट के अनुसार, 40 फीसदी पैकेजिंग जरूरत देश में प्लास्टिक से ही पूरी होती है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमैंट रूल्स 2016 और 2018 में इस चुनौती के समाधान के लिए पहली बार एक्सटैंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉनसिबिलिटी (ई.पी.आर.) का जिक्र हुआ, जिसमें प्लास्टिक उत्पादक को उसके निस्तारण के लिए जिम्मेदार बनाया गया। दरअसल, वस्तुओं के उत्पादकों द्वारा पैकेजिंग के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर निर्भरता बढ़ी है। नए नियमों में ई.पी.आर. के तहत मैन्युफैक्चर्स को उत्पाद में इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के लिए एकत्र करना होगा। कंपनियों को यह काम वार्षिक लक्ष्य के आधार पर करना होगा। 

वस्तुओं के उत्पादक, व्यवसायी और ग्राहक सिंगल यूज प्लास्टिक बैग को एक से अधिक बार उपयोग में ला सकें, इसके लिए उसकी संरचना में अहम बदलाव किए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टिक के उपयोग में कटौती या प्रतिबंध की किसी भी नीति की सफलता उसके ठोस विकल्प पर निर्भर करेगी। भारत में जूट और बांस आधारित उद्योग की क्षमता का उपयोग किया जा सकता है। यह कुटीर उद्योग को नया जीवन देने के साथ मेक इन इंडिया को भी मजबूती प्रदान करेगा। देश में पेपर पैकेजिंग इंडस्ट्री को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग प्रोडक्ट इस दिशा में काफी उपयोगी होंगे। 

भारत जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में घरेलू चुनौतियों के समाधान के साथ ही अपनी वैश्विक प्रतिबद्धता का भी निर्वहन कर रहा है। साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम (यू.एन.ई.पी.) ने विश्व पर्यावरण दिवस का थीम प्लास्टिक वेस्ट से मुक्ति को समॢपत किया, जिसका प्रायोजक देश भारत रहा। नवम्बर 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में भारत ने जलवायु न्याय को लेकर पंचामृत के जो लक्ष्य तय किए थे, उसमें कार्बन फुटपिं्रट कम करने के लिए ग्रीन इकोनॉमी की ओर कदम बढ़ाना प्रमुख है। सिंगल यूज प्लास्टिक से यदि हम निजात पाने में सफल हुए तो भविष्य के भारत की यात्रा कहीं अधिक समावेशी और टिकाऊ होगी।(लेखिका हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग की वरिष्ठतम सदस्य हैं।)-डा. रचना गुप्ता


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