बादल साहिब, शिअद के ‘वजूद’ को बचाएं

punjabkesari.in Thursday, Mar 19, 2020 - 04:23 AM (IST)

बीते लम्बे समय से पंजाब में होते आ रहे राजनीतिक उतार-चढ़ाव के गवाह बने चले आ रहे राजनीतिज्ञों का मानना है कि यदि शिरोमणि अकाली दल  (बादल) के वजूद को बचाए रखना है तो प्रकाश सिंह बादल को ‘पुत्र मोह’ का त्याग करना होगा और अकाली दल को पारिवारिक जकड़ से मुक्त कर पंथ को लौटा देना होगा ताकि उसमें लोकतंत्र के साथ ही उसकी मूल मान्यताएं, परम्पराएं और मर्यादाएं बहाल हो सकें। नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब बादल साहिब को अपने जीवनकाल में ही पारिवारिक दल का ‘अंत’ देखने को विवश हो जाना पड़ेगा। 

इन राजनीतिज्ञों का मानना है कि जब से बादल साहिब ने सुखबीर सिंह बादल को शिअद (बादल) का अध्यक्ष पद सौंपा है, तब से ही सुखबीर की नीतियां दल के लिए घातक साबित हो रही हैं। एक ओर दल पर पारिवारिक पकड़ मजबूत होती गई तो दूसरी ओर एक-एक कर वरिष्ठ अकाली नेता, जो कभी दल के लिए मार्गदर्शक एवं मजबूत स्तम्भ हुआ करते थे और उनके समर्थक कार्यकत्र्ता दल को अलविदा कहते जाने लगे। परिणामस्वरूप दल का आधार खिसकता और पतन निकट आता चला जा रहा है। 

इन राजनीतिज्ञों के अनुसार, उपमुख्यमंत्री के रूप में सुखबीर की नीतियों के चलते ही पंजाब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बे-अदबी की घटनाएं हुईं और इन घटनाओं के लिए पुलिस के दोषियों तक न पहुंच पाने और  बरगाड़ी में हुए गोलीकांड के लिए भी उन्हें ही दोषी माना गया, जिसका प्रतिक्रम पंजाब विधानसभा के चुनावों में सामने आया। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि यदि उन चुनावों में कैप्टन अमरेन्द्र संकट-मोचक के रूप में प्रकाश सिंह बादल और जरनैल सिंह (आप) के बीच में न आ जाते, तो बादल साहिब को अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में पहली बार एक ऐसी हार का सामना करना पड़ता, जिसे वह शायद ही सहन कर पाते। इतना ही नहीं, चर्चा तो यह भी सुनने को मिल रही है कि शिरोमणि अकाली दल (बादल) के पतन की ओर बढ़ रहे कदमों के चलते भाजपा का नेतृत्व भविष्य के लिए पंजाब में सुखबीर सिंह बादल और सुखदेव सिंह ढींडसा और दिल्ली में सुखबीर सिंह बादल और मनजीत सिंह जी.के. में से किसी को साथी के रूप में चुनने के उद्देश्य से उनके जमीनी प्रभाव को तोलने के लिए विवश हो रहा है। 

चंदूमाजरा का ‘मौका आण ते’ 
कनॉट प्लेस के एक होटल में दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की धर्म प्रचार कमेटी के पूर्व चेयरमैन परमजीत सिंह राणा का जन्मदिन मनाने के लिए उनके शुभङ्क्षचतकों की महफिल जमी हुई थी। इस महफिल में डा. जसपाल सिंह, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, मनजीत सिंह जी.के., हरिन्द्रपाल सिंह आदि प्रमुख सिख नेता भी शामिल थे। केक काटने की  रस्म के पूरा होने के साथ ही मनजीत सिंह जी.के. ने वहां से निकलने के लिए सीट छोड़ी ही थी कि डा. जसपाल सिंह ने उनका हाथ थाम, मुस्कुराते हुए पूछ लिया  कि ‘तो फिर बादल अकाली दल में वापसी कब हो रही है?’ 

संभवत: डा. जसपाल सिंह का यह सवाल कुछ ही समय पहले अरुण जेतली के बेटे के शादी समारोह में सुखबीर सिंह बादल और मनजीत सिंह जी.के. की पड़ी ‘जफ्फी’ को लेकर अकाली सफों में चल रही चर्चा को लेकर था। डा. जसपाल सिंह के इस सवाल के जवाब में मनजीत सिंह जी.के. ने भी उसी प्रकार मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मेरी बादल दल में वापसी की बात छोडि़ए, हम तो बाजे-गाजे के साथ प्रेम सिंह चंदूमाजरा को भी अपने साथ ला रहे हैं। जी.के. का इतना कहना था कि डा. जसपाल सिंह ने प्रेम सिंह चंदूमाजरा की ओर ऐसे देखा जैसे उनसे पूछ रहे हों कि यह क्या कह रहे हैं? बताने वालों ने बताया कि प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया कि ‘मौका आण ते’। उनका ‘मौका आण ते’ कहना महफिल में कई सवाल छोड़ गया। 

दिल्ली प्रदेश बादल दल में बिखराव
माना जाता है कि दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिन्द्र सिंह सिरसा की महत्वाकांक्षा, कि दिल्ली में बादल अकाली दल के वही सर्वेसर्वा हों, के चलते, बादल दल में वह बिखराव लगातार बढ़ता चला जा रहा है, जिसे मनजीत सिंह जी.के. ने उन दिनों में भी संभाले रखा, जब पंजाब में सिखों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली हुई घटनाओं के चलते, बादल अकाली दल की विधानसभा चुनावों में हुई शर्मनाक हार के कारण, उसके बिखरने की अधिक संभावना थी। दल के वे मुखी जिन्होंने किसी समय मनजीत सिंह जी.के. के विरुद्ध उनकी (स. सिरसा की) कथित साजिशों, उन्हें गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष पद से हटाने, पार्टी से निकलवाने और गुरुद्वारा कमेटी की सदस्यता से बेदखल किए जाने आदि में उनका साथ दिया था, यह महसूस करने को विवश हो रहे हैं कि मनजीत सिंह जी.के. के साथ कदम-कदम पर अन्याय हुआ है। 

बादल अकाली दल दिल्ली के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, स. सिरसा, लगभग 7 वर्ष जी.के. के साथ गुरुद्वारा कमेटी में महासचिव पद पर रहते हुए, जी.के. की उस कार्यशैली, जिसके चलते वह लोकप्रियता हासिल कर रहे थे, से कुछ सीखने के स्थान पर, उनके विरुद्ध ऐसी साजिशें रचने में जुटे रहे, जिनके सहारे वह उन्हें (जी.के.) अपने रास्ते से हटा, गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष पद पर आसीन हो, कमेटी में अपनी चम की चलाते रह सकें। उनके अनुसार लगभग 7 वर्ष बाद वह अपने उद्देश्य में सफल हो गए, लेकिन इस पद पर रहते, साथियों और लोगों से कैसा व्यवहार कर उनके दिलों में अपनी जगह बनानी है, यह वह समझ नहीं पाए। उन पर गुरुद्वारा कमेटी में सबसे धनी होने का अहं हावी रहा, जिसके चलते वह लिफाफा कल्चर के सहारे दल की उच्च कमान की आंखों का तारा तो बने रहे, परन्तु अवतार सिंह हित जैसे दल के समॢपत मुखियों तक को अपने साथ न रख सके। उन्हें न केवल अपना साथ छोड़ देने पर मजबूर कर दिया, अपितु उन्हें खुलकर अपने पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाने को भी उत्तेजित कर दिया। कुछेक तो यहां तक कहने को चले गए कि वह (स. सिरसा) दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के अब तक के सबसे भ्रष्ट अध्यक्ष हैं, जिनके नेतृत्व में आगामी गुरुद्वारा चुनाव जीतने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 

... और अंत में
मिली जानकारी के अनुसार, देश की राजधानी दिल्ली के सिखों का एक गुट, जो अभी छोटा-सा ही बताया जा रहा है, राजधानी में सिखों का स्वतंत्र अस्तित्व कायम करने के प्रति लोकराय बनाने में जुट गया है। उसके मुखियों का मानना है कि सिखों को न तो कांग्रेस की उंगली पकड़ कर चलना चाहिए और न ही भाजपा की गोद का शृंगार बनना चाहिए। उनका मानना यह है कि पंजाब से बाहर के सिखों का स्वतंत्र अस्तित्व होना चाहिए, जो पार्टी ईमानदारी से उनकी ओर सहयोग का हाथ बढ़ाए, उसी के हाथ को वे थामें। उनकी ओर से किसी भी स्तर पर यह प्रभाव नहीं दिया जाना चाहिए कि दिल्ली के सिख किसी एक पार्टी विशेष के साथ ही बंधे हुए हैं, किसी अन्य पार्टी के साथ नहीं जा सकते।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 


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