अयोध्या : 6 दिसम्बर की ‘आंखों देखी’

punjabkesari.in Wednesday, Aug 05, 2020 - 03:57 AM (IST)

वे लोग भाग्यशाली होते हैं जो किसी घट रहे इतिहास को अपनी आंखों से देखते हैं। यह मेरा सौभाग्य था कि मैं पत्रकार के नाते 6 दिसंबर 1992 को रामलला जन्मभूमि के उस परिसर में खड़ा था, जहां हमारी आंखों के सामने भगवा पट्टी माथे पर बांधे सैंकड़ों कार सेवक देखते-देखते गुम्बद पर चढ़ गए  बस घंटे-दो घंटे में विवादित ढांचे को धूल-धूसरित कर दिया। मैं मध्य प्रदेश के स्वदेश समाचार-पत्र का विशेष संवाददाता था। 

सन् 1986 से तत्कालीन बजरंग दल के नेता जयभान सिंह पवैया के साथ रामनवमी पर रिपोर्टिंग करने और रामलला के दर्शन करने लगभग प्रतिवर्ष जाते थे। हम मिथिलावासी हैं। हम मां मिथिलेश कुमारी (सीताजी) के वंशज हैं। भगवान राम से हमारा नाता शास्त्रों के अनुसार, साले-बहनोई का है। मिथिलावासी सीताजी के कारण अवध निवासी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अपना बहनोई मानते हैं। बहन सीता के कारण अयोध्या से मेरा लगाव पहले से ही रहा है। अत: अयोध्या में रामनवमी पर लगाने वाले मेले का आंखों देखा हाल लिखने का दायित्व स्वदेश द्वारा मुझे ही दिया जाता था। 

वर्ष 1992 को 6 दिसंबर दुनिया को पता है। तब की घटना की रिपोर्टिंग करने के लिए मैं एक दिसंबर को ही अयोध्या पहुंच गया था। हाथ में डायरी और कलम थी साथ ही बैग में कैमरा। मैंने सुन रखा था कि 6 दिसंबर को कार सेवक आएंगे और वे कार सेवा करेंगे। हम दिनभर में अनेक बार राम के जन्म स्थान पर और कारसेवकपुरम जाते थे। हम पूरी अयोध्या घूमते थे। चौक-चौराहों पर यह चर्चा सुनते थे। पता नहीं मंदिर कब बनेगा। 

पूरी की पूरी फैजाबाद जो आज का अयोध्या जिला, वहां के साधु-संतों के मुख पर एक ही बात आती थी कि मंदिर बनना कब शुरू होगा। अन्यान्य राज्यों के कारसेवक के रूप में लोगों का आना शुरू हो चुका था। केरल से कश्मीर तक कोई संघ के अधिकारी, ऐसा राज्य नहीं था जहां से लोगों का आना न हो रहा हो। उन कारसेवकों की चिंता के लिए कारसेवकपुरम में विश्व हिन्दू परिषद के नेता स्व. अशोक सिंघल जी, स्व. गिरिराज किशोर जी, स्व. मोरोपंत पिंगले जी व्यवस्था की दृष्टि से अलग-अलग बैठकें ले रहे थे। 2 दिसंबर, 1992 को लोगों के आने का सिलसिला और बढ़ गया। मैं वर्षों से अयोध्या जाता रहा हूं, पर इस बार का हुजूम कुछ और ही लग रहा था। 

हम पत्रकारों ने 3 दिसम्बर की रात्रि से ही यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया था कि 6 दिसम्बर तक यहां 3-4 लाख कारसेवकों की संख्या हो जाएगी। 4 दिसंबर को अयोध्या के राष्ट्रीय राजमार्ग पर जब हमने निगाहें दौड़ाईं तो कारसेवकों के सिवाय कुछ और नहीं दिख रहा था। एक तरफ जहां देशभर से कारसेवक आ रहे थे, वहीं सर्वाधिक कारसेवक उत्तर प्रदेश से आ रहे थे। राष्ट्रीय राजमार्ग थम-सा गया था। 

हजारों वाहनों के पहिए रुक गए थे। गले में भगवा पट्टी और माथे पर भगवा साफा बांधे हजारों लोग पंक्तिबद्ध कतार में दिख रहे थे। लोग नारे लगा रहे थे ‘‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’’। वे कह रहे थे-‘‘जो राम राम का नहीं, वह किसी काम का नहीं’’ हनुमानगढ़ी, कनक भवन, वाल्मिकी मंदिर, छोटी छावनी से लेकर सैंकड़ों मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। लखनऊ, फैजाबाद और अयोध्या से प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस का वाहन अयोध्या की ओर आ रहा था। पूरी अयोध्या पुलिस छावनी का रूप धारण कर चुकी थी। 

5 दिसम्बर को अढ़ाई बजे रात से ही लोग सिर पर पोटली लिए सरयू तट की ओर निकल पड़े थे। इस भीड़ में गरीब-अमीर का भेद नहीं था। सब रामरस में सराबोर होकर समरस हो गए थे। हमें मानव सिर के अलावा कुछ और दिख ही नहीं रहा था। सरयू में डुबकी लगाने की होड़ लग गई थी। हम कुछ पत्रकार मित्र भी धक्का खाते हुए सरयू तट पर पहुंच गए थे। वहां पर स्व-अनुशासन का संगम दिख रहा था। 6 दिसंबर सूर्योदय को देख हमें नहीं लगा था कि आज कोई इतिहास रचा जाएगा। हम सभी को लग रहा था कि सभी नेताओं के भाषण होंगे और रामशिला का पूजन होगा, लेकिन 6 दिसंबर के सूर्योदय के गर्भ में सच में इतिहास छिपा था जिसकी जानकारी दोपहर 11-12 बजे के बीच दुनिया को मिल गई। सुबह के 10 बजते ही विहिप के अध्यक्ष और जन्मभूमि आंदोलन के प्रणेता अशोक सिंघल मंच पर हैं, उपस्थित कारसेवकों को कहते हैं कि बैरीकेड्स को कोई भी पार न करे। हमने भगवा ब्रिगेड को कार सेवकों की सुरक्षा के लिए लगाया है। 

इसी बीच मंच पर श्री अडवानी जी, डा. जोशी जी, साध्वी उमा भारती जी, साध्वी ऋतंभरा जी और आचार्य धर्मेन्द्र आते हैं। हम लोग भीड़ में सुदर्शन जी के पास खड़े थे। बी.बी.सी. के साऊथ एशिया रिपोर्टर मार्क टुली सुदर्शन जी से अंग्रेजी में कुछ चर्चा कर रहे थे। मार्क टुली जानना चाहते थे कि आगे क्या होने वाला है। सुदर्शन जी ने मार्क टुली को कहा-‘‘हिंदुत्व इस सोल ऑफ इंडिया नाऊ यू सी दिज वेव ऑफ ङ्क्षहदुत्व इन अयोध्या।’’ इसी बीच सुदर्शन जी हम पत्रकारों के बीच से कहीं निकल गए। जैसे ही घड़ी की सुई ने 11 बजने का इशारा किया अचानक हजारों कारसेवक विवादित ढांचे के परकोटे की ओर कूद पड़े। 

रोकने वाले कार सेवकों को रोकते रहे, पर कारसेवक विवादित ढांचे को तोड़ते रहे। साधु-संत, बूढ़े-जवान सब उस घट रहे इतिहास का साक्षी बनना चाह रहे थे। पुलिस भीड़ को तितर-बितर कर रही थी। इस बीच पता चला कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने प्रशासन को सख्त निर्देश दिए थे कि चाहे जो मजबूरी हो, लेकिन कार सेवकों पर गोली नहीं चलेगी। यहां तो यह भी दिख रहा था कि कई पुलिस वाले भी जय श्री राम के नारे लगा रहे थे। 11.25 बजे पहला गुम्बद टूटने लगा। वह कौन-सी अदृश्य शक्ति थी, वह कौन-सा अदृश्य साहस था जो विवादित ढांचे को तोड़ रहा था इसे कोई नहीं देख पा रहा था। डेढ़ से दो घंटे में पूरा विवादित ढांचा धूल-धूसरित हो गया। 

मैं पत्रकारिता धर्म का निर्वाह कर रहा था। ढांचे के पास से ही अपने सम्पादक श्री जय किशन शर्मा जी को टैलीफोन से आंखों देखा हाल बता रहा था। इस स्थिति में भी पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करने का साहस स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम दे रहे थे। एक-एक घटनाक्रम की जानकारी मैं स्वदेश के सम्पादकीय विभाग को देता रहा।  5 अगस्त, 2020 को  होने वाला रामलला मंदिर निर्माण भूमि पूजन 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या की आंखों देखी को फिर ताजा करने वाला होगा। यह रामजन्म भूमि आंदोलन के हुतात्माओं के प्रति पत्रकार की श्रद्धांजलि रूपी श्रद्धांजलि होगी। 

जब अयोध्या में ढांचा टूट गया, उसके बाद वहां पर अफवाह फैलाई गई कि ढांचा तोड़ने की योजना पूर्व में कार सेवकों द्वारा बना ली गई थी। यह सरासर गलत था। कोई योजना नहीं थी। कारसेवक बार-बार अयोध्या आ-आकर थक गए थे।-प्रभात झा भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद 


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